Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सत्रहवां अध्ययन : सूत्र २७-३५
३६८
नायाधम्मकहाओ २७. तए णं ते आसा ते उक्किट्ठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे २७. उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध-द्रव्यों का आसेवन
आसेवमाणा तेहिं बहूहिं कूडेहि य पासेहि य गलएसु य पाएसु य करते हुए अनेक कूट-बन्धनों और पाश-बन्धनों में उन अश्वों के गले बझंति ।।
और पांव बंध गए।
२८. तए णं ते कोडुबियपुरिसा ते आसे गिण्हंति, गिण्हित्ता एगट्ठियाहिं पोयवहणे संचारेंति, कट्ठस्स य तणस्स य पाणियस्य य तंदुलाण य समियस्य य गोरसस्य य जाव अण्णेसिंच बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति॥
२८. कौटुम्बिक पुरुषों ने उन अश्वों को पकड़ा। पकड़कर नौकाओं द्वारा
पोत वहन में संचालित किया। काठ, घास, पानी, चावल, गेहूं का ____ आटा, गौरस यावत् अन्य अनेक पोतवहन प्रायोग्य पदार्थों से उस पोत
वहन को भरा।
२९. तए णं से संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं
जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लबेंति, लंबेत्ता ते आसे उत्तारेंति, उत्तारेत्ता जेणेव हत्थिसीसे नयरे जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्रहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति ते आसे उवणेति ।।
२९. वे सांयात्रिक-पोतवणिक् दक्षिणानुकूल पवन के साथ जहां गम्भीरक बन्दरगाह था, वहां आए। वहां आकर जहाज का लंगर डाला। लंगर डालकर उन घोड़ों को उतारा। जहां हस्तिशीर्ष नगर था और जहां कनककेतु राजा था, वहां आए। वहां आकर सटे हुए दस नखों वाली दोनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर जय-विजय की ध्वनि से वर्धापन किया और उन अश्वों को समर्पित किया।
३०. तए णं से कणगकेऊ राया तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं
उस्सुकं वियरइ, सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ।।
३०. कनककेतु राजा ने उन सांयात्रिक-पोतवणिकों को कर-मुक्त किया।
उन्हें सत्कृत किया। सम्मानित किया। सत्कृत-सम्मानित कर प्रतिविसर्जित किया।
३१. तए णं से कणगकेऊ राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता
सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥
३१. कनककेतु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर उन्हें
सत्कृत-सम्मानित किया। सत्कृत-सम्मानित कर प्रतिविसर्जित किया।
३२. तए णं से कणगकेऊ राया आसमद्दए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं
वयासी--तुब्भे णं देवाणुप्पिया! मम आसे विणएह ।।
३२. कनककेतु राजा ने अश्वमर्दकों (अश्व-प्रशिक्षकों) को बुलाया।
बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! तुम मेरे इन अश्वों को प्रशिक्षित करो।
३३. तए णं ते आसमद्दगा तहत्ति पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता ते आसे
बहूहिं मुहबंधेहि य कण्णबंधेहि य नासाबंधेहि य वालबंधेहि य खुरबंधेहि य कडगबंधेहि य खलिणबंधेहि य ओवीलणाहि य पडयाणेहि य अंकणाहि य वेत्तप्पहारेहि य लयप्पहारेहि य कसप्पहारेहि य छिवप्पहारेहि य विणयंति, विणइत्ता कणगकेउस्स रण्णो उवणेति ॥
३३. उन अश्व-प्रशिक्षकों ने तथेति' कहकर स्वीकार किया। स्वीकार कर
उन अश्वों को विविध प्रकार के मुख-बन्धनों, कर्ण-बन्धनों, नासा-बन्धनों, बाल-बन्धनों, खुर-बन्धनों, कटक-बन्धनों, खलीन-बन्धनों, अवपीड़नबन्धनों, पर्याणों, अंकनों, वेत्र-प्रहारों, लता-प्रहारों, कशा-प्रहारों और छिवा-प्रहारों से प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षित कर उन्हें राजा कनककेतु को समर्पित किया।
३४. तए णं से कणगकेऊ राया ते आसमद्दए सक्कारेइ सम्माणेइ,
सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥
३४. राजा कनककेतु ने उन अश्व-प्रशिक्षकों को सत्कृत किया। सम्मानित किया। सत्कृत-सम्मानित कर उन्हें प्रतिविसर्जित किया।
३५. तए णं ते आसा बहूहिं मुहबंधेहि य जाव छिवप्पहारेहि य बहूणि
सारीरमाणसाइंदुक्खाई पावेंति।।
३५. वे अश्व बहुत से मुख-बन्धनों यावत् छिवा-प्रहारों से अनेक-अनेक
शारीरिक और मानसिक दु:ख को प्राप्त हुए।
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