Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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सोलहवां अध्ययन : सूत्र २८९-२९७ कटु लोहदंडं परामुसइ, पंचण्हं पंडवाणं रहे सुसूरेइ, सुसूरेत्ता अवरकंका राजधानी को संभग्न किया और द्रौपदी को हाथों हाथ प्राप्त (पंच पंडवे?) निव्विसए आणवेइ, तत्थ णं रहमद्दणे नामं कोटे किया। उस समय तुमने मेरा माहात्म्य नहीं जाना, उसे अब जानोगे? निविटे।
(पांचों पांडवों को?) यह कह कर उन्होंने लोहदण्ड उठाया, पांचों पाण्डवों के रथों को चूर-चूर कर दिया, चूर-चूरकर उन्हें देश छोड़कर चले जाने की आज्ञा दी। वहां रथमर्दन नाम का स्मारक बसाया गया।
२९०. तएणं से कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारे तेणेव उपागच्छइ,
उवागच्छित्ता सएणं खंधावारेणं सद्धिं अभिसमण्णागए यावि होत्था।
२९०. कृष्ण वासुदेव जहां उनका अपना स्कन्धावार था, वहां आये। वहां
आकर वे अपने स्कन्धावार के साथ हो गये।
२९१. तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ,
उवागच्छित्ता (सयं भवणं?) अणुप्पविसइ ।
२९१. कृष्ण वासुदेव! जहां द्वारवती नगरी थी, वहां आये। वहां आकर
(अपने भवन में?) प्रवेश किया।
२९२. तए णं ते पंच पंडवा जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छति,
उवागच्छित्ता जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी--एवं खलु ताओ! अम्हे कण्हेणं निव्विसया आणत्ता।
२९२. वे पांचों पाण्डव जहां हस्तिनापुर नगर था, वहां आये। वहां आकर
जहां पाण्डु राजा था, वहां आये। वहां आकर सटे हुए नखों वाली दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर, मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार बोले--तात! कृष्ण ने हमें देश छोड़कर चले जाने की आज्ञा दी।
२९३. तए णं पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी--कहणं पुत्ता!
तुब्भे कण्हेणं वासुदेवेणं निव्विसया आणत्ता?
२९३. पाण्डु राजा ने उन पांचों पाण्डवों से इस प्रकार कहा--पुत्रो! कृष्ण
वासुदेव ने तुम्हें निर्वासन का आदेश क्यों दिया?
२९४. तए णं ते पंच पंडवा पंडं रायं एवं वयासी--एवं खलु ताओ!
अम्हे अवरकंकाओ पडिनियत्ता लवणसमुदं दोणि जोयणसयसहस्साई वीईवइत्था । तए णं से कण्हे वासुदेवे अम्हे एवं वयइ-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! गंगं महानइं उत्तरह जाव ताव अहं सुट्ठियं लवणाहिवई पासामि, एवं तहेव जाव। चिट्ठामो॥
२९४. पांचों पाण्डव पाण्डु राजा से इस प्रकार बोले--तात! अवरकंका से
लौटते हुए हमने दो लाख योजन परिमित लवण समुद्र को पार किया। तब कृष्ण वासुदेव ने हमें इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! तुम जाओ। महानदी गंगा को पार करो इतने में मैं लवणाधिपति सुस्थित से मिलता हूं। उसी प्रकार यावत् हम कृष्ण वासुदेव की प्रतीक्षा करने लगे।
२९५. तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवई दठूण जेणेव
गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ, तं चेवं सव्वं नवरं कण्हस्स चिंता न बुज्झइ जाव निव्विसए आणवेइ ।।
२९५. वे कृष्ण वासुदेव लवणाधिपति सुस्थित से मिलकर जहां महानदी
गंगा थी वहां आये। वही सारी वक्तव्यता, इतना विशेष है कि कृष्ण की चिन्ता शान्त नहीं हुई यावत् वासुदेव कृष्ण ने पांचों पांडवों को देश छोड़कर चले जाने की आज्ञा दी।
पिता
२९६. तए णं से पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी--दुछु णं पुत्ता!
कयं कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणेहिं।।
२९६. पाण्डु राजा ने उन पांचों पाण्डवों से इस प्रकार कहा--पुत्रो! कृष्ण
वासुदेव का विप्रिय करते हुए तुमने बहुत बुरा किया।
२९७. तए णं से पंडू राया कोंतिं देविं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं
वयासी--गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिए! बारवई नयरिं कण्हस्स वासुदेवस्स एवं निवेएहि--एवं खलु देवाणुप्पिया! तुमे पंच पंडवा निव्विसया आणत्ता। तुमं च णं देवाणुप्पिया! दाहिणभरहस्स सामी। तं संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! ते पंच पंडवा कयरं देसं वा दिसं वा विदिसं वा गच्छंतु।
२९७. उस पाण्डु राजा ने कुन्ती देवी को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार ___ कहा--देवानुप्रिये! तुम द्वारवती नगरी जाओ और वहां कृष्ण वासुदेव
से इस प्रकार निवदेन करो--देवानुप्रिय! तुमने पांचों पाण्डवों को देश छोड़कर चले जाने की आज्ञा दी, किन्तु देवानुप्रिय! पूरे दक्षिणार्द्धभरत के स्वामी तुम हो। अत: देवानुप्रिय! तुम्हीं कहो वे पांचों पाण्डव किस देश, किस दिशा और किस विदिशा में जाएं?
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