Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सोलहवां अध्ययन सूत्र २८४-२८९
२८४, तए गं से कहे वासुदेवे गंगाए महानईए बहुमज्झदेसभाए संपत्ते समाणे संते तंते परितंते बद्धसेए जाए यावि होत्था ।।
२८५. तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्त इमेवारूवे अथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -- अहो णं पंच पंडवा महाबलवगा जेहिं गंगा महानई वासद्धिं जोयणाई अद्धजोवणं च वित्पिण्णा बाहाहिं उत्तिण्णा ।
इच्छंतएहिं णं पंचहिं पंहहिं पउमनाभे हय-महिय पवरवीरघाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं नो पडिसेहिए ।।
२८६. नए णं गंगादेवी कण्हल्स वासुदेवस्स इमं एपारूवं अज्मत्थियं चिंतियं पत्थियं मणोगयं संकष्पं जाणित्ता याहं वियर ।।
२८७. तए णं से कहे वासुदेवे मुहुत्ततरं समासाद, समासासेत्ता
गंगं महानदिं बासहिं जोयणाई अद्धजोयणं च वित्पिण्णं बाहाए उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छछ, उवागच्छित्ता पंच पंडवे एवं क्यासी अहो णं तुम्भे देवाणुप्पिया! महाबलवगा, जेहिं णं तुम्भेहिं गंगा महानई वासद्धिं जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णा बाहाहिं उत्तिण्णा । इच्छंतएहिं णं तुब्भेहिं पउमनाहे हय-महिय पवरवीर घाइय-विवडियसिंघ धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं नो पडिसेहिए ।।
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२८८. तए गं ते पंच पंढवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वृत्ता समाणा कण्हं वासुदेवं एवं क्यासी एवं खलु देवाणुपिया! अम्हे तुम्बेहिं विसज्जिया समाणा जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एमट्टियाए मगन गवेसणं करेमो, करेत्ता एगट्टियाए गंगं महान उत्तरेमो, उत्तरेत्ता अण्णमण्णं एवं क्यामो पहू णं देवाणुप्पिया! कण्हे वासुदेवे गंगं महानहं बाहाहिं उत्तरित्तए, उदाहु नो पहू उत्तरित्तए ? त्ति कट्टु एमट्टियं भूमेमो, तुम्भे पडिवालेमाणा चिट्ठामो ।।
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कण्हेण पंडवाणं निव्वासण-पदं २८९. तए णं से कण्हे वासुदेवे तेसिं पंच पंडवाणं एयमट्ठे सोच्चा निसम्म आसुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं महिं निाले साह एवं क्यासी- अहो णं जया मए लवणसमुदं दुवे जोयणसयसहस्सवित्यिण्णं वीईवइत्ता पउमनाभं हय-महियपवरवीर घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसिं पडिसेहित्ता अवरकंका संभग्गा, दोवई साहित्पिं उवणीया, तया णं तुभेहिं मम महाप्पं न विण्णायं, इयाणिं जाणिस्सह ति
नायाधम्मकहाओ
२८४. जब कृष्ण वासुदेव महानदी गंगा के ठीक मध्यभाग तक पहुंचे तब वे श्रान्त, क्लान्त और परिक्लान्त हो गये। उनके शरीर से पसीना बहने लगा ।
२८५. कृष्ण वासुदेव के मन में इस प्रकार का आन्तरिक, चिन्तित, अभिलषित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ अह पांचों पाण्डव महाबलिष्ठ हैं, जिन्होंने साढे बासठ योजन विस्तीर्ण महानदी गंगा को भुजाओं से पार कर दिया। लगता है पांचों पाण्डवों ने इच्छापूर्वक राजा पद्मनाभ को हत मथित कर उसके प्रवर वीरो को यमधाम पहुंचा, सेना के चिह्न-ध्वजाओं और पताकाओं को गिरा, उसके प्राण संकट में डाल, सब दिशाओं से उसके प्रहारों को विफल नहीं किया।
२८६. कृष्ण वासुदेव के इस प्रकार के आन्तरिक, चिन्तित, अभिलषित, मनोगत संकल्प को जानकर गंगादेवी ने उन्हें थाह दे दिया ।
२८७. वे कृष्ण-वासुदेव वहां मुहूर्त भर आश्वस्त हुए। आश्वस्त होकर
साढे बासठ योजन विस्तीर्ण महानदी गंगा को पार किया। पार कर, जहां पांचों पाण्डव थे वहां आए। वहां आकर, पांचों पाण्डवों से इस प्रकार कहा - अहो देवानुप्रियो! तुम तो महाबलिष्ठ हो, जिन्होंने साढ़े बासठ योजन विस्तीर्ण महानदी गंगा को भुजाओं से पार कर दिया। लगता है तुम लोगों ने इच्छापूर्वक पद्मनाभ को हत-मधित कर उसके प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा, सेना के चिह्न-ध्वजाओं और पताकाओं को गिरा, उसके प्राण संकट में डाल, सब दिशाओं से उसके प्रहारों को विफल नहीं किया।
२८८. कृष्ण वासुदेव के ऐसा कहने पर वे पांचों पाण्डव कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोले- देवानुप्रिय! तुम से विसर्जित होकर हम जहां महानदी गंगा थी, वहां आए। वहां आकर हमने नौका की खोज की। खोज कर नौका से महानदी गंगा को पार किया। पारकर परस्पर इस प्रकार बोले--देवानुप्रियो ! कृष्ण वासुदेव महानदी गंगा को भुजाओं से तैरने में समर्थ हैं अथवा समर्थ नहीं है? यह देखने के लिए हमने नौका को छिपा दिया छिपाकर तुम्हारी प्रतीक्षा करने लगे।
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कृष्ण द्वारा पाण्डवों का निर्वासन पद
२८९. उन पांचों पाण्डवों से यह अर्थ सुनकर, अवधारण कर कृष्ण वासुदेव क्रोध से तमतमा उठे। वे रुष्ट, कुपित, रौद्र और क्रोध से जलते हुए, त्रिवली युक्त भृकुटि को ललाट पर चढ़ा कर इस प्रकार बोले अहो! जब मैंने दो लाख योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र को लांघकर राजा पद्मनाभ को हत मथित कर उसके प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा, सेना के चिह्न ध्वजाओं और पताकाओं को गिरा, उसके प्राण संकट में डाल, सब दिशाओं से उसके प्रहारों को विफल किया,
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