Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सोलहवां अध्ययन सूत्र ५१-५९
दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धिं पट्टयं दुरूहावेइ, दुरूहावेत्ता सेयापीएहिं कलसेहिं मज्जावेद, मज्जावेत्ता अग्गिहोमं करावेद, करावेत्ता सागरगं दारयं सूमालियाए दारियाए पाणिं गेण्हावे ।।
सागरस्स पलायण-पदं
५२. तए णं सागरए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं पाणिफासं पडिसवेदेश, जे जहानामए-असिपले इ वा करपत्ते इ वा खुरपते इ वा कलंबचीरिगापत्ते इ वा सत्तिअग्गे इ वा कोंतग्गे इ वा तोमरग्गे इ वा भिंडिमालग्गे इ वा सूचिकलावए इ वा विच्छुयडंके इवा कविकच्छू इ वा इंगाले इ वा मुम्मरे इ वा अच्ची इ वा जाले इ वा अलाए इ वा सुद्धागणी इ वा भवे एयारूवे?
नो इट्ठे समट्ठे । एत्तो अणिट्ठतराए चेव अकंततराए चैव अप्पियतराए के अमगुण्णतराए के अमणामतराए चैव पाणिफासं विदेश ||
५३. तए णं से सागरए अकामए अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ ।। ५४. तए णं सागरदत्ते सत्यवाहे सागरस्स अम्मापियरो मित्त-नाइनियम-सवण-संबंध परियण विपुलेणं असण पाण-लाइमसाइमेणं पुण्वत्य-गंध मल्लालंकारेण य सवकारेता सम्माणेता पडिविसज्जेइ ।।
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५५. तए णं सागरए सूमालियाए सद्धिं जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुमानियाए दारियाए सद्धिं ततिमंसि निजइ ॥
५६. तए णं से सागरए दारए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं अंगफासं पडिसवेदेइ, से जहानामए - - असिपत्ते इ वा जाव एत्तो अमणामतरागं चैव अंगफासं पञ्चणुन्भवमाणे विहरह ।।
५७. तए णं से सागरए दारए सूमालियाए दारियाए अंगफासं असहमाणे अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिद्वद्द ।।
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५८. तए णं से सागरदारए सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए दारियाए पासाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिज्जंसि निवज्जइ । ।
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५९. तए णं सा सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया पइमणुरत्ता पदं पासे अपस्समाणी तलिमाओ उडेइ, उद्वेला जेणेव से सयणिज्जे तेगेव उवागच्छ, उवागच्छिता सागरस्स पासे णुवज्जइ ॥
नायाधम्मकहाओ
को कुमारी सुकुमालिका के साथ पट्ट पर बिठाया। बिठाकर चांदी और सोने के कलशों से मज्जन कराया। मज्जन कराकर अग्निहोम करवाया। अग्निहोम कराकर बालक सागर का कुमारी सुकुमालिका के साथ पाणिग्रहण करवाया।
सागर का पलायन-पद
५२. सागर ने कुमारी सुकुमालिका के हस्त-स्पर्श का ऐसा प्रतिसंवेदन किया, जैसे--कोई असिपत्र, करपत्र, क्षुरपत्र, कलम्बचीरिकापत्र, शक्ति की नौक, भाले की नौक, तोमर की नौक, भिन्दीपाल की नौक, सूक्ष्यों का समूह, बिच्छू का डंक, कपिच्छू (खूजली पैदा करने वाली ) वनस्पति, अंगारे, मुम्मुर, अर्चि, ज्वाला, अलात अथवा शुद्ध अग्नि हो । क्या ऐसा ही स्पर्श था?
नहीं, ऐसा नहीं सागर उसके हस्तस्पर्श का इससे भी अनिष्टतर अकमनीयतर, अप्रियतर, अमनोज्ञतर और अमनोगततर प्रतिसंवेदन कर रहा था।
५३. वह सागर अनचाहे ही विवशता से मुहूर्त भर वहां ठहरा।
५४. सागरदत्त सार्थवाह ने सागर के माता-पिता को तथा उनके मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, संबंधी और परिजनों को विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य तथा पुष्प, वस्त्र, गन्धचूर्ण, माला और अलंकारों से सत्कृत सम्मानित कर प्रतिविसर्जित किया।
५५. सागर सुकुमालिका के साथ, जहां उसका निवास पर था, वहां आया। वहां आकर कुमारी सुकुमालिका के साथ शय्या पर सोया ।
५६. कुमार सागर ने कुमारी सुकुमालिका के अंग-स्पर्श का ऐसा प्रतिसंवेदन किया, जैसे-- कोई असिपत्र हो यावत् इससे भी अमनोगततर अंग-स्पर्श का प्रतिसंवेदन करता हुआ विहार कर रहा था ।
५७. वह कुमार सागर कुमारी सुकुमालिका के अंग-स्पर्श को सहन न करता हुआ, विवशता से मुहूर्त भर वहां रहा ।
५८. वह कुमार सागर कुमारी सुकुमालिका को सुखपूर्वक सोयी जानकर सुकुमालिका बालिका के पास से उठा । उठकर जहां उसका अपना शयनीय था, वहां आया। वहां आकर शयनीय पर सो गया ।
५९. उसके मुहूर्तभर पश्चात् कुमारी सुकुमालिका जागी। पतिव्रता, पति के प्रति अनुरक्ता, उस कुमारी सुकुमालिका ने जब पति को अप नहीं देखा, तो वह शय्या से उठी। उठकर जहां पति का शयनीय था वहां आयी। वहां आकर सागर के पास सो गई ।
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