Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 372
________________ ३४६ सोलहवां अध्ययन : सूत्र २५१-२५६ २५१. तए णं ते पंच पंडवा सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया उप्पीलिय- सरासण-पट्टिया पिणद्ध-विज्जा आविद्ध-विमल- वरचिंधपट्टा गहियाउह-पहरणा रहे दुरुहंति, दुरुहित्ता जेणेव पउमनाभे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी-अम्हे वा पउमनाभे वा राय त्ति कटु पउमनाभेणं सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था ।। नायाधम्मकहाओ २५१. पांचों पाण्डवों ने सन्न्द्ध बद्ध हो कवच पहने। धनुषपट्टी को बांधा। गले में ग्रीवा रक्षक उपकरण पहने। विमल और प्रवर चिह्न पट्ट बांधे तथा हाथों में आयुध और प्रहरण लिए। उसके पश्चात् रथ पर आरुढ़ हुए। आरूढ़ होकर जहां पद्मनाभ राजा था, वहां आए। वहां आकर इस प्रकार बोले--या तो हम रहेंगे या राजा पद्मनाभ रहेगा--यह कहकर वे पद्मनाभ के साथ युद्ध करने लगे। पंडवाणं पराजय-पदं २५२. तए णं से पउमनाभे राया ते पंच पंडवे खिप्पामेव हय- महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं पडिसेहेइ॥ पाण्डवों का पराजय-पद २५२. पद्मनाभ राजा ने उन पांचों पाण्डवों को शीघ्र ही हत-मथित कर दिया। उनके प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा दिया। सेना के चिह्नध्वजाएं और पताकाएं गिर गयी। उनके प्राण संकट में पड़ गये और सब दिशाओं से उनके प्रहारों को विफल कर दिये। २५३. तए णं ते पंच पंडवा पउमनाभेणं रण्णा हय-महिय-पवर वीर-घाइय-विवडिय-चिंध-घय-पडागा किच्छोवगयपाणा दिसोदिसिं पडिसेहिया समाणा अत्थामा अबला अवीरिया अपरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमिति कटु जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छति॥ २५३. जब वे पांचों पाण्डव पद्भनाभ राजा द्वारा हत मथित हो गये। उनके प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा दिया। सेना के चिह्न-ध्वजाएं और पताकाएं गिर गई। उनके प्राण संकट में डाल दिए और सब दिशाओं से उनके प्रहार विफल हो गये, तब वे शक्तिहीन, बलहीन तथा पुरुषकार और पराक्रम में हीन हो गये। अब (रण भूमि में डटे रहना) शक्य नहीं है--ऐसा सोचकर वे जहां कृष्ण वासुदेव थे वहां आए। कण्हेण पराजय-हेउ-कहणपुव्वं जुज्झ-पदं २५४. तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंचपंडवे एवं वयासी--कहण्णं तुन्भे देवाणुप्पिया! पउमनाभेणं रण्णा सद्धिं संपलग्गा? कृष्ण द्वारा पराजय-हेतु कथनपूर्वक युद्ध-पद २५४. कृष्ण वासुदेव ने उन पांचों पाण्डवों से इस प्रकार पूछा--देवानुप्रिय! तुमने राजा पद्मनाभ के साथ युद्ध कैसे किया? २५५. तए णं ते पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणा सण्णद्ध-बद्धवम्मिय-कवया रहे दुरुहामो, दुरुहेता जेणेव पउमनाभे तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एवं वयामो--अम्हे वा पउमनाभे वा रायत्ति कटु पउमनाभेणं सद्धिं संपलग्गा। तए णं से पउमनाभे राया अम्हं खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिघ-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं पडिसेहेइ॥ २५५. वे पांचों पाण्डव कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोले--देवानुप्रिय तुम से अनुज्ञा प्राप्त कर हम सन्नद्ध बद्ध हो कवच पहन, रथ पर आरूढ़ हुए। आरूढ़ होकर जहां पद्मनाभ था वहां आए। वहां आकर हम इस प्रकार बोले--या तो हम रहेंगे या राजा पद्मनाभ रहेगा--यह कहकर हम उसके साथ युद्ध करने लगे। उस पद्मनाभ राजा ने हमें शीघ्र ही हत-मथित कर दिया। हमारे प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा दिया। सेना के चिह्न-ध्वजाओं और पताकाओं को गिरा दिया। हमारे प्राण संकट में डाल दिए और सब दिशाओं से हमारे प्रहारों को विफल कर दिया। २५६. तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच पंडवे एवं वयासी--जइ णं तुम्भे देवाणुप्पिया! एवं वयंता-अम्हे णो पउमनाभे रायत्ति कटु पउमनाभेणं सद्धिं संपलग्गंता तो णं तुन्भे नो पउमनाभे हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं पडिसेहित्था । तं पेच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! अहं णो पउमनाभे रायत्ति कटु पउमनाभेणं रण्णा २५६. कृष्ण वासुदेव ने उन पांचों पाण्डवों से इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! यदि तुम इस प्रकार कहते--हम रहेंगे पद्मनाभ राजा नहीं रहेगा--यह कह कर युद्ध करने लगते तो राजा पद्मनाभ तुम्हें इस प्रकार हत-मथित कर, प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा, सेना के चिह्नध्वजाओं और पताकाओं को गिरा, तुम्हारे प्राण संकट में डाल, सब दिशाओं से तुम्हारे प्रहारों को विफल नहीं कर पाता। Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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