Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
३४९ भगिणिं दोवइं देविं इहं हव्वमाणेमाणे? तं एवमवि गए नत्थि? ते ममाहिंतो इयाणिं भयमत्थि? त्ति कट्ठ पउमनाभं पडिविसज्जेइ, दोवइं देविं गेण्हइ, गेण्हित्ता रहं दुरुहेइ, दुहित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचण्हं पंडवाणं दोवइं देविंसाहत्थिं उवणेइ।
सोलहवां अध्ययन : सूत्र २६६-२७२ तू क्या इसका परिणाम नहीं जानता था? ऐसा कार्य करते हुए क्या तू डरा नहीं? अब तू मुझसे डर रहा है। ऐसा कहकर उसने पद्मनाभ को प्रतिविसर्जित किया। द्रौपदी देवी को लिया। लेकर रथ पर बैठे। बैठकर जहां पांचों पाण्डव थे, वहां आए। वहां आकर द्रौपदी देवी को पांचों पाण्डवों के हाथों में सौंपा।
२६७. तए णं से कण्हे वासुदेवे पंचहिं पंडवेहिं सद्धिं अप्पछटे छहिं
रहेहिं लवणसमुदं मझमजोणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
२६७. कृष्ण वासुदेव ने पांच पाण्डव और छठे स्वयं--छहों के रथों के साथ
लवणसमुद्र के बीचोंबीच होते हुए, जहां जम्बूद्वीप द्वीप था और जहां भारतवर्ष था, उधर प्रस्थान किया।
वासुदेव-जुयलस्स संखसद्देण मिलण-पदं २६८. तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसडे दीवे पुरथिमद्धे भारहे
वासे चंपा नाम नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए।
वासुदेव युगल का शंख-शब्द से मिलन-पद २६८. उस काल और उस समय धातकीखण्ड द्वीप और पूर्व दिशावर्ती अर्द्ध __ भारतवर्ष में चम्पा नाम की नगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था।
२६९. तत्थ णं चंपाए नयरीए कविले नामं वासुदेवे राया
होत्था--महताहिमवंतमहंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ।।
२६९. उस चम्पा नगरी में कपिल नाम का वासुदेव राजा था। वह महान
हिमालय, महान मलय, मेरु और महेन्द्र पर्वत के समान उन्नत था।
वर्णक
२७०. तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुव्वए अरहा चंपाए पुण्णभद्दे २७०. उस काल और उस समय मुनिसुव्रत अर्हत् चम्पा के पूर्णभद्र चैत्य समोसढे । कविले वासुदेवे धम्म सुणेइ।
में समवसृत हुए। कपिल वासुदेव ने धर्म सुना।
२७१. तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुब्वयस्स अरहओ अंतिए
धम्मं सुणेमाणे कण्हस्स वासुदेवस्स संखसई सुणेइ॥
२७१. कपिल वासुदेव ने अर्हत् मुनिसुव्रत के पास धर्म सुनते हुए कृष्ण
वासुदेव के शंख का शब्द सुना।
२७२. तए णं तस्स कविलस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए २७२. उस कपिल वासुदेव के मन में इस प्रकार का आन्तरिक, चिन्तित,
चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--किमण्णे धायइसडे अभिलषित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ। क्या धातकीखण्ड द्वीप दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पण्णे, जस्स णं अयं संखसद्दे भारतवर्ष में दूसरा वासुदेव उत्पन्न हो गया है? जिसका यह शंख मम पिव मुहवायपूरिए वियंभइ! कविला वासुदेवा भद्दाइ! शब्द ऐसा लगता है, मानो मैंने ही अपने मुखवात से पूरित किया मुणिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी--से नूणं कविला हो। वासुदेवा! ममं अंतिए धम्म निसामेमाणस्स ति?) संखसई भद्र कपिल वासुदेव! अर्हत् मुनिसुव्रत ने कपिल वासुदेव से इस आकण्णित्ता इमेयारूवे अझथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे प्रकार कहा--कपिल वासुदेव! मेरे पास धर्म सुनते हुए तेरे मन में शंख समुप्पज्जित्था--किमण्णे घायइसडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे का शब्द सुनकर इस प्रकार का आन्तरिक, चिन्तित, अभिलषित, समुप्पण्णे, जस्स णं अयं संखसद्दे ममं पिव मुहवायपूरिए वियंभइ? मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ--क्या धातकीखण्ड द्वीप भारतवर्ष में से नूणं कविला वासुदेवा! अढे समढे?
दूसरा वासुदेव उत्पन्न हो गया है? जिसका यह शंख शब्द ऐसा लगता हंता! अत्थि । तं नो खलु कविला! एवं भूयं वा भव्वं वा है, मानो मैंने ही अपने मुखवात से पूरित किया हो। भविस्सं वा जण्णं एगखेत्ते एगजुगे एगसमए णं दुवे अरहंता वा कपिल वासुदेव! क्या यह अर्थ समर्थ है? चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा उप्पज्जिंस वा उप्पज्जति
हां है। वा उप्पज्जिस्संति वा।
इसलिए कपिल! ऐसा न कभी हुआ है, न होता है और न होगा ___ एवं खलु वासुदेवा! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ कि एक क्षेत्र में, एक युग में, एक समय में दो अर्हत, दो चक्रवर्ती, दो हत्यिणाउराओ नयराओ पंडुस्स रण्णो सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया बलदेव अथवा दो वासुदेव उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं अथवा दोवई देवी तव पउमनाभस्स रण्णो पुव्वसंगइएणं देवेणं अवरकंक उत्पन्न होंगे।
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