Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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सोलहवां अध्ययन : सूत्र २००-२०४ तए णं से कूवदवरे तं सामुद्दयं एवं वयासी--केमहालए णं कूप-मण्डूक ने उस समुद्र के मेंढ़क से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय देवाणुप्पिया! से समुद्दे?
कितना बड़ा है वह समुद्र? तए णं से सामुद्दएं ददरे तं कूवदरं एवं वयासी--महालए वह समुद्र का मेंढ़क कूप-मण्डूक को इस प्रकार बोला--देवानुप्रिय! णं देवाणुप्पिया! समुद्दे ।
बहुत बड़ा है वह समुद्र। तए णं से कूवददुरे पाएणं लीहं कड्ढेइ, कड्ढेत्ता एवं कूप-मण्डूक ने पांव से लकीर खींची, खींचकर इस प्रकार वयासी--एमहालए णं देवाणुप्पिया! से समुद्दे?
बोला--देवानुप्रिय! इतना बड़ा है वह समुद्र? नो इणढे समढे । महालए णं से समुद्दे।
__यह अर्थ समर्थ नहीं है। इससे भी अधिक बड़ा है वह समुद्र । तए णं से कूवदद्दुरे पुरथिमिल्लाओ तीराओ उप्फिडित्ता तब वह कूप-मण्डूक पूर्वीय तट से छलांग भरकर पश्चिमी तट पर णं पच्चत्थिमिल्लं तीरं गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी--एमहालए गया। जाकर इस प्रकार बोला--देवानुप्रिय! इतना बड़ा है वह समुद्र? णं देवाणुप्पिया! से समुद्दे?
यह अर्थ समर्थ नहीं है। नो इणद्वे समटे । एवामेव तमं पि पउमनाभा! अण्णेसिं पद्मनाभ ! इसी प्रकार तुम भी अन्य बहुत से राजा, ईश्वर बहूणं राईसर जाव सत्थवाहप्पभिईणं भज्जंवा भगिणिं वा धूयं यावत् सार्थवाह इत्यादि की भार्या, भगिनी, पुत्री अथवा पुत्रवधू को वा सुण्हं वा अपासमाणे जाणसि जारिसए मम चेव णं ओरोहे, बिना देखे यही जानते हो, जैसा मेरा अन्त:पुर है, वैसा दूसरों का तारिसए णो अण्णेसिं।
नहीं है। एवं खलु देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्यिणाउरे देवानुप्रिय! जम्बूद्वीप द्वीप, भारतवर्ष और हस्तिनापुर नगर में नयरे दुपयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया पंडुस्स सुण्हा राजा द्रुपद की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा, पाण्डु की पुत्रवधू, पांच पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई नामं देवी रूवेण य जोव्वणेण य पाण्डवों की भार्या द्रौपदी नाम की देवी रूप, यौवन और लावण्य से लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा। दोवईए णं देवीए उत्कृष्ट और उत्कृष्ट शरीर वाली है। तेरा यह अन्त:पुर तो देवी छिन्नस्सवि पायंगुट्ठस्स अयं तव ओरोहे सयंपि कलं न अग्घइ त्ति द्रौपदी के कटे हुए पादांगुष्ठ के शतांश में भी नहीं आता--यह कह नारद कटु पउमनाभं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए ने पद्मनाभ से जाने के लिए पूछा। पूछकर जिस दिशा से आया था, उसी तामेव दिसिं पडिगए।
दिशा में चला गया।
दोवईए साहरण-पदं
द्रौपदी का संहरण-पद २०१. तए णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयस्स अंतिए एयमटुं २०१. वह पद्मनाभ राजा कच्छुल्ल नारद के पास यह अर्थ सुनकर,
सोच्चा निसम्म दोवईए देवीए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य अवधारण कर द्रौपदी देवी के रूप, यौवन और लावण्य के प्रति मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जेणेव पोसहसाला तेणेव ___मूर्च्छित, ग्रथित, गृद्ध और अध्युपपन्न हो गया। वह जहां पौषधशाला उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता थी, वहां आया। आकर पौषधशाला में प्रवेश किया। प्रवेश कर अपने पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ।। पूर्वसांगतिक देव के साथ मानसिक तादात्म्य स्थापित किया।
२०२. तए णं पउमनाभस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पुव्वसंगइओ देवो जाव आगओ।
भणंतु णं देवाणुप्पिया! जंमए कायव्वं ।।
२०२. राजा पद्मनाभ के अष्टमभक्त तप परिणत हो रहा था उस समय पूर्वसांगतिक देव यावत् आया।
कहो देवानुप्रिय! जो मुझे करना है।
२०३. तए णं से पउमनाभे पुव्वसंगइयं देवं एवं वयासी--एवं खलु
देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे नयरे दुपयस्स रणो धूया चुलणीए देवीए उत्तया पंडुस्स सुहा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई नाम देवी स्वेण व जोवण्णेण य लाव्वणेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठासरीरा। तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! दोवई देविं इह हव्वमाणीयं॥
२०३. उस पद्मनाभ ने पूर्वसांगतिक देव से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय!
जम्बूद्वीप द्वीप, भारतवर्ष और हस्तिनापुर नगर में राजा द्रुपद की ___पुत्री, वी चुलनी की आत्मजा, पाण्डु की पुत्रवधू, पांच पाण्डवों की
भार्या द्रौपदी नाम की देवी रूप, यौवन और लावण्य से उत्कृष्ट और उत्कृष्ट शरीर वाली है। अत: देवानप्रिय! मैं शीघ्र ही द्रौपदी देवी को यहां लाना चाहता हूँ।
२०४. तए णं से पुव्वसंगए देवे पउमनाभं एवं वयासी--नो खलु
देवाणुप्पिया! एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जण्णं दोवई देवी
२०४. उस पूर्वसांगतिक देव ने पद्मनाभ से इस प्रकार कहा-- देवानुप्रिय!
ऐसा न कभी हुआ है, न होता है और न होगा कि देवी द्रौपदी पांच
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