Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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अस्थि । तं गं तुब्भे दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ।।
सोलहवां अध्ययन : सूत्र १४३-१४६ बहिन, प्रवर राजकन्या द्रौपदी का स्वयंवर है अत: तुम राजा द्रुपद पर अनुग्रह कर, ठीक समय पर काम्पिल्यपुर नगर पहुंची।
१४४. तए णं से पंडुराया जहा वासुदेवे नवरं--भेरी नत्थि जाव
जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्य गमणाए।।
१४४. उस पाण्डुराजा ने कृष्ण वासुदेव के समान ही यावत् जहां
काम्पिल्यपुर नगर था उधर प्रस्थान कर दिया। विशेष-यहां भेरी का उल्लेख अपेक्षित नहीं है।
दूयपेसण-पदं १४५. एएणेव कमेणं--तच्चं दूयं एवं वयासी--गच्छह णं तुमं
देवाणुप्पिया! चंपं नयरिं। तत्थ णं तुमं कण्णं अंगरायं, सल्लं नंदिरायं एवं वयाहि--कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । चउत्थं दूयं एवं वयासी--गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! सोत्तिमइंनयरिं। तत्थ णं तुमं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुडं एवं वयाहि--कपिल्लपुरे नयरे समोसरह।
पंचमं दूयं एवं वयासी--गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! हत्थिसीसं नयरिं। तत्थ णं तुम दमदंतं रायं एवं वयाहि--कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह।
छटुं दूयं एवं वयासी--गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! महुरं नयरिं। तत्थ णं तुम घरं रायं एवं वयाहि--कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह।
सत्तमं दूयं एवं वयासी--गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! रायगिहं नयरिं। तत्थ णं तुम सहदेवं जरासंधसुयं एवं वयाहि--कपिल्लपुरे नयरे समोसरह।
अट्ठमं दूयं एवं वयासी--गच्छह णं तमं देवाणुप्पिया! कोडिण्णं नयरं । तत्थ णं तुमं रुप्पिं भेसगसुयं एवं वयाहि--कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह।
नवमं दूयं एवं वयासी--गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! विराट नयरं । तत्थ णं कीयगं भाउसय-समग्गं एवं वयाहि--कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। __दसमं दूयं एवं वयासी--गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! अवसेसेसु गामागरनगरेसु। तत्थ णं तुम अणेगाइं रायसहस्साइं एवं वयाहि--कपिल्लपुरे नयरे समोसरह।
दूत-प्रेषण-पद १४५. इसी क्रम से--तीसरे दूत से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम
चम्पानगरी जाओ। वहां अंगराज कर्ण एवं नन्दीराज शल्य से इस प्रकार कहो--काम्पिल्यपुर नगर पहुंची।
चौथे दूत से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम शुक्तिमती नगरी जाओ। वहां पांच सौ भाइयों से परिवृत दमघोष के पुत्र शिशुपाल से इस प्रकार कहो--काम्पिल्यपुर नगर पहुंचो।
पांचवें दूत से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम हस्तीशीर्ष नगरी जाओ। वहां दमदन्त राजा से इस प्रकार कहो--काम्पिल्यपुर नगर पहुंचो। ___ छठे दूत से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम मथुरा नगरी जाओ। वहां धर राजा से इस प्रकार कहो-काम्पिल्यपुर नगर पहुंची।
सातवें दूत से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम राजगृह नगरी जाओ। वहां जरासंध के पुत्र सहदेव से इस प्रकार कहो--काम्पिल्यपुर नगर पहुंचो।
आठवें दूत से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम कौडिन्य नगर जाओ। वहां भेषक के पुत्र रुक्मि से इस प्रकार कहो--काम्पिल्यपुर नगर पहुंची।
नौवे दूत से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम विराटनगर जाओ। वहां सौ भाइयों सहित कीचक से इस प्रकार कहो--काम्पिल्यपुर नगर पहुंचो। ___ दसवें दूत से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम अवशिष्ट गांव, आकर एवं नगरों में जाओ। वहां तुम अनेक हजारों राजाओं से इस प्रकार कहो--काम्पिल्यपुर नगर पहुंची।
रायसहस्साणं पत्थाण-पदं १४६. तए णं ते बहवे रायसहस्सा पत्तेयं-पत्तेयं ण्हाया
सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया हत्यिखंधवरगया हय-गय-रहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिखुडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता सएहिं-सएहिं नगरेहितो अभिनिग्गच्छति, अभिनिग्गच्छित्ता जेणेव पंचालेजणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
हजारों राजाओं का प्रस्थान-पद १४६. उन अनेक हजारों राजाओं ने पृथक-पृथक रूप से स्नान किया।
सन्नद्ध-बद्ध हो कवच पहने और प्रवर हस्तिस्कन्ध पर आरूढ़ होकर अश्व, गज, रथ और प्रवर पदाति योद्धाओं से कलित चतुरंगिणी सेना के साथ, उससे परिवृत हो, महान सुभटों की विभिन्न टुकड़ियों एवं पथदर्शक वृन्द से घिरे हुए अपने अपने नगरों से निकले। निकलकर जहां पांचाल जनपद था, उधर प्रस्थान कर दिया।
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