Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
नायाधम्मकहाओ पंडुरायस्स आतित्थ-पदं १७२. तए णं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं
वयासी--गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरे नयरे पंचण्हं पंडवाण पंच पासायवडिसए कारेह--अब्भग्गयमूसिय जाव पडिरूवे।।
सोलहवां अध्ययन : सूत्र १७२-१८० पाण्डुराज का आतिथ्य पद १७२. उस पाण्डु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उन्हें बुलाकर इस
प्रकार कहा--देवानुप्रियो! तुम जाओ, हस्तिनापुर नगर में, पांचों पाण्डवों के लिए पांच प्रवर प्रासाद बनवाओ। वे उन्नत, विशाल यावत् असाधारण हों।
१७३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा पडिसुणेति जाव कारवेंति।।
१७३. उन कौटुम्बिक पुरुषों ने इस आज्ञा को स्वीकार किया यावत् प्रासाद
बनवाया।
१७४. तए णं से पंडू राया पंचहिं पंडवेहिं दोवईए देवीए सद्धिं
जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि, संपरिबुड़े महया भडचडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते कपिल्लपुराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव हत्थिणाउरे तेणेव उवागए।
१७४. वह पाण्डु राजा, पांचों पाण्डवों और द्रौपदी देवी के साथ अश्व,
गज, रथ और प्रवर पदाति योद्धाओं से कलित चतरंगिणी सेना के साथ, उससे परिवृत हो महान सुभटों की विभिन्न टुकड़ियों, रथों तथा पथदर्शक पुरुषों के समूह से घिरा हुआ, काम्पिल्यपुर से निकला। निकलकर जहां हस्तिनापुर नगर था, वहां आया।
१७५. तए णं से पंडू राया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता
काहाबयपुारस सद्दावइ, सद्दावत्ता एव वयासा--गच्छह ण तुब्भ देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरस्स नयरस्स बहिया वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे-अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे कारेह, कारेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तेवि तहेव पच्चप्पिणंति ।।
१७५. पाण्डु राजा ने वासुदेव प्रमुख उन राजाओं का आगमन जानकर
कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! तुम जाओ, हस्तिनापुर नगर के बाहर वासुदेव प्रमुख अनेक हजार राजाओं के लिए आवास बनवाओ। वे अनेक शत खम्भों पर सन्निविष्ट हों। ऐसा करवाकर इस आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो। उन्होंने भी वैसे ही प्रत्यर्पित किया।
१७६. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव हत्थिणाउरे
तेणेव उवागए॥
१७६. वे वासुदेव प्रमुख अनेक हजार राजा जहां हस्तिनापुर था, वहां
आए।
१७७. तए णं से पंडू राया ते वासुदेवपामोक्खे बहवे रायसहस्से
उवागए जाणित्ता हट्टतुट्टे पहाए कयबलिकम्मे, जहा दुवए जाव जहारिहं आवासे दलयइ॥
१७७. पाण्डु राजा ने वासुदेव प्रमुख उन अनेक हजार राजाओं को आये हुए जानकर हृष्ट तुष्ट हो स्नान और बलिकर्म कर यावत् द्रुपद राजा के समान उन सबको यथायोग्य आवास प्रदान किया।
१७८. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव सया-सया
आवासा तेणेव उवागच्छति तहेव जाव विहरति ।।
१७८. वे वासुदेव प्रमुख अनेक हजार राजा जहां अपने-अपने आवास थे ___वहां आए यावत् वैसे ही विहार करने लगे।
१७९. तए णं से पंडू राया हत्यिणाउरं नयरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता
कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दाक्ता एवं क्यासी--तुब्भेणं देवाणुप्पिया! विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं आवासेसु उवणेह । तेवि तहेव उवणेति ॥
१७९. पाण्डु राजा ने हस्तिनापुर नगर में प्रवेश किया। प्रवेश कर
कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! तुम आवासों में विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य ले जाओ'। वे भी वैसे ही ले गए।
१८०. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा बहाया
कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं असाएमाणा तहेव जाव विहरति ।।
१८०. वे वासुदेव प्रमुख अनेक हजार राजा स्नान, बलिकर्म और कौतुक
मंगल रूप प्रायश्चित्त कर विपुल, अशन पान, खाद्य और स्वाद्य का आस्वादन करते हुए यावत् वैसे ही विहार करने लगे।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org