Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सोलहवां अध्ययन : सूत्र १३१-१३४
दोवई रायवरकण्णाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य जायविम्हए दोवई रायवरकण्णं एवं क्यासी जस्स णं अहं तुमं पुत्ता! रायस्स वा जुवरायस्स वा भारित्ताए सयमेव दलइस्सामि, तत्थ गं तुमं सुहिया वा दुहिया वा भवेज्जासि । तए णं मम जावज्जीवाए हिययदाहे भविस्सइ । तं णं अहं तव पुत्ता! अज्जयाए सयंवरं विपरामि । अज्जयाए णं तुमं दिन्नसयंवरा जं गं तुमं सयमेव रायं वा जुवरायं वा वरेहिसि, से णं तव भत्तारे भक्रिस त्ति कट्टु ताहिं इट्ठाहिं कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं वग्गूहिं आसासेइ, आसासेता पडिविसज्जे ।।
बारवईए दूयपेसण-पदं
१३२. तए णं से डुवाए राया दूयं सहावे, सहावेता एवं वयासी गच्छह गं तुमं देवाणुप्पिया! बारवई नयरिं । तत्य णं तुमं कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे, बलदेवपामोक्खे पंच महावीरे, उग्गसेणपामोक्ले सोलस रायसहस्से, पज्जुनपामोक्लाओ अद्धुट्ठाओ कुमारकोडीओ, संबपामोक्खाओ सट्ठि दुदंतसाहस्सीओ, वीरसेणपामोक्खाओ एक्कवीसं वीरपुरिससाहस्सीओ, महासेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ, अण्णे य बहवे राईसर- तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि-सेणावइसत्यवाहपभिइओ करयल परिगहियं दसनहं सिरसावतं मत्पए अंजलिं कट्टु जणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावेत्ता एवं वयाहि--एवं खलु देवाणुप्पिया! कपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो घूयाए, चूलणीए अत्ताए, घट्टज्जुणकुमारस्स भइणीए दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्स । तं गं तुम्भे दुवयं रामं अणुविण्डेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ।।
१३३. तए णं से दूए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु डुवयस्सरण्णो एपमहं परिसुणेइ, पडिसुणेता जेणेव सए गिहे लेणेव उवागच्छइ, उदागच्छित्ता कोडुबियपुरिसे सहावे, सहावेत्ता एवं क्यासी खिप्यामेव भो देवाणुप्पिया! चाउघंट आसरहं जुत्तामेव उद्ववेह ते वि तहेव उवद्ववेति ।।
१३४. तए णं से दूए हाए जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता बहूहिं पुरिसेहिं--सन्नद्धबद्धवम्मिय - कवएहिं उप्पीलिय- सरासण- पट्टिएहिं पिणद्ध- गेविज्जेहिं आविद्ध विमल वरचिंध पहिं महियाउह पहरणेहिं-सद्धि संपरिवुडे कपिल्लपुरं नगरं मज्जांमज्झेणं निगच्छद्र, पंचालजणक्यस्स मज्जांमज्मेण जेणेव देसप्यते तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता
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नायाधम्मकहाओ
प्रवर राजकन्या द्रौपदी के रूप, यौवन और लावण्य पर विस्मित होकर वह प्रवर राजकन्या द्रौपदी से इस प्रकार बोला- पुत्री ! मैं मेरी इच्छा से तुझे जिस राजा अथवा युवराज को भार्या के रूप में दूंगा, वहां तू सुखी अथवा दुःखी हो सकती है, जिससे मेरे हृदय में जीवन भर परिताप रहेगा। अतः पुत्री ! मैं कुछ ही दिनों में स्वयंवर आयोजित करूंगा। कुछ ही दिनों में तूं दत्तस्वयंवरा हो जाएगी । तू स्वेच्छा से जिस राजा अथवा युवराज का वरण करेगी, वही तेरा पति होगा। इस प्रकार उसने उन इष्ट, कमनीय, प्रिय, मनोज्ञ और मनोगत वचनों से उसे आश्वस्त किया। आश्वस्त कर प्रतिविसर्जित कर दिया।
द्वारवती के लिए दूत प्रेषण-पद
१३२. दुमद राजा ने दूत को बुलाया। उसे बुलाकर इस प्रकार कहादेवानुप्रिय ! तुम द्वारवती नगरी जाओ। वहां तुम कृष्ण वासुदेव को तथा समुद्रविजय प्रमुख दस दसार, बलदेव प्रमुख पांच महावीरों उग्रसेन प्रमुख सोलह हजार राजाओं, प्रद्युम्न प्रमुख साढ़े सात करोड़ कुमारों, शाम्ब प्रमुख साठ हजार दुर्दान्त सुभटों वीरसेन प्रमुख इक्कीस हजार वीर पुरुषों, महासेन प्रमुख छप्पन हजार बलवानों तथा अन्य भी अनेक राजा, ईश्वर तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह प्रभृति को सटे हुए दस नखों वाली दोनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर 'जय-विजय' की ध्वनि से वर्धापित करो। वर्धापित कर इस प्रकार कहो--देवानुप्रियो! काम्पिल्यपुर नगर में राजा द्रुपद की पुत्री, चुलनी की आत्मजा, धृष्टद्युम्न कुमार की बहिन, प्रवर राजकन्या द्रौपदी का स्वयंवर होगा । अत: तुम राजा द्रुपद पर अनुग्रह कर ठीक समय पर काम्पिल्यपुर नगर पहुंचो ।
१३३. उसने सटे हुए दस नखों वाली दोनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुट आकार वाली अंजली को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर द्रुपद राजा के इस अर्थ को स्वीकार किया। स्वीकार कर जहां अपना घर था, वहां आया। वहां आकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चार घण्टों वाला जुता हुआ अपवर उपस्थित करो। उन्होंने भी वैसे ही उपस्थित किया।
१३४. वह दूत स्नान कर यावत् अल्प भार और बहुमूल्य वाले आभरणों से शरीर को अलंकृत कर चार घंटों वाले अश्व रथ पर आरूढ़ हुआ । अनेक पुरुषों के साथ जो सन्नद्ध बद्ध हो कवच पहने हुए, धनुषपट्टी बान्धे हुए गले में प्रचारक्षक उपकरण पहने हुए, विमल और प्रवरचिह्मपट्ट बांधे हुए, तथा हाथों में आयुध और प्रहरण लिए हुए थे, उनसे परिवृत हो काम्पिल्यपुर नगर के बीचोंबीच होकर निष्क्रमण किया । पाञ्चाल
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