Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
आमुख
प्रस्तुत अध्ययन में नन्दीवृक्ष के फल की प्रियता और परिणाम के माध्यम से इन्द्रियविषयों की प्रियता व परिणाम का संबोध कराया गया है। इसलिए इस अध्ययन का नाम नन्दीफल है। नन्दीफल दिखने में सुन्दर, खाने में स्वादिष्ट पर परिणाम में विरस होते हैं।
जो इन वृक्षों के मूल, कन्द, फल, फूल आदि का उपभोग करता है अथवा उनकी छाया में विश्राम करता है, वह कुछ समय के लिए प्रियता और तृप्ति का अनुभव करता है। कुछ समय पश्चात् परिणति होने पर वह असमय में ही मृत्यु का ग्रास बन जाता है। धर्म की आराधना का लक्ष्य है--मोक्ष। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए यात्रा करने वाला यदि विषयों की प्रियता में ही लुब्ध हो जाता है, लक्ष्य तक पहुंच नहीं पाता। इसलिए दृष्टि हमेशा परिणाम पर रहे, प्रियता पर नहीं। यह इस अध्ययन का मुख्य प्रतिपाद्य है।
प्राचीन काल में यात्राएं होती तो पूरा सार्थ एक साथ चलता। अनेक साधु-सन्यासी, परिव्राजक आदि भी उस सार्थ के साथ ही यात्रा करते। सार्थवाह जो निर्देश देता, सार्थ का हर सदस्य उसका पालन करता। मार्ग में सभी सदस्यों की सुरक्षा का दायित्व सार्थवाह के कंधों पर होता। प्रस्तुत अध्ययन में धन सार्थवाह की जागरूकता और दायित्वशीलता का सुन्दर प्रतिपादन है।
वृत्तिकार ने धन सार्थवाह की आज्ञा के समान तीर्थंकर की देशना को माना है। जिन यात्रियों ने सार्थवाह की आज्ञा के शिरोधार्य कर नन्दीफलों का भोग नहीं किया, वे अपनी नगरी में सुरक्षित लौट आए। इसी प्रकार जो तीर्थंकरों की आज्ञा की आराधना करता है, अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल हो जाता है।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org