Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
३०९ नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जइ।
सा तओहिंतो उव्वट्टित्ता तच्चपि मच्छेसु उववण्णा। तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चंपि छट्ठाए पुढवीए उक्कोसं बावीससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा।
तओणंतरं उव्वट्टिता उरगेसु, एवं जहा गोसाले तहा नेयव्वं जाव रयणप्पभाओ पुढवीओ उव्वट्टित्ता सण्णीसु उववण्णा।
तओ उव्वट्टित्ता असण्णीसु उववण्णा। तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चंपि रयणप्पभाए पुढवीए पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्ठिइएसु नेरइएस नेरइयत्ताए उववण्णा।
तओ उव्वट्टित्ता जाई इमाइं खहयरविहाणाईजाव अदुत्तरं च खरबायरपुढविकाइयत्ताए, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो।।
सोलहवां अध्ययन : सूत्र ३१-३६ वहां शस्त्रवध से उत्पन्न दाह की अवस्था से मृत्यु के समय मृत्यु को प्राप्त कर वह दूसरी बार भी अध: स्थित सातवीं पृथ्वी में, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम स्थिति वाले नरकावासों में से किसी एक नरकावास में नैरयिक के रूप में उपपन्न हुई।
वह वहां से निकलकर तीसरी बार मत्स्य रूप में उपपन्न हुई। वहां भी शस्त्रवध से उत्पन्न दाह की अवस्था से मृत्यु के समय मृत्यु को प्राप्त कर वह दूसरी बार भी छठी पृथ्वी में, उत्कृष्ट बाईस सागरोपम स्थिति वाले नरकावासों में से किसी एक नरकावास में नैरयिक के रूप में उपपन्न हुई।
वहां से निकलकर वह उरगों में उत्पन्न हुई। इस प्रकार उसकी भव परम्परा गोशालक के समान ज्ञातव्य है यावत् वह रत्नप्रभा पृथ्वी से निकलकर संज्ञी--समनस्क पर्याय में उत्पन्न हुई। वहां से निकलकर असंज्ञी--अमनस्क पर्याय में उत्पन्न हुई। ___ वहां पर शस्त्र वध से उत्पन्न दाह की अवस्था में मृत्यु के समय मृत्यु को प्राप्त कर वह दूसरी बार भी रत्नप्रभा पृथ्वी में पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितनी स्थिति वाले नरकावासों में से किसी एक नरकावास में नैरयिक रूप में उपपन्न हुई।
वहां से निकलकर पक्षी की अनेक जातियों में यावत् खर-बादर पृथ्वीकायिक पर्याय में अनेक लाख बार उत्पन्न हुई।
सूमालिया-कहाणग-पदं ३२. सा णं तओणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे
चंपाए नयरीए सागरदत्तस्स सत्यवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि दारियत्ताए पच्चायाया।
सुकुमालिका का कथानक पद ३२. वहां से निकलकर वह इसी जम्बूद्वीप द्वीप, भारतवर्ष और चम्पा
नगरी में सागरदत्त सार्थवाह की भार्या भद्रा की कुक्षि में बालिका के रूप में उत्पन्न हुई।
३३. तए णं सा भद्दा सत्यवाही नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं
दारियं पयाया--सुकुमालकोमलियं गयतालुयसमाणं॥
३३. पूरे नौ मास व्यतीत हो जाने पर उस भद्रा सार्थवाही ने एक बालिका
को जन्म दिया। वह गजतालु के समान अत्यन्त सुकोमल थी।
३४. तए णं तीसे गंदारियाए निव्वत्तबारसाहियाए अम्मापियरो ३४. जब वह बालिका बारह दिन की हुई तो माता-पिता ने उसका यह
इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिष्फण्णं नामधेज्ज करेंति--जम्हा णं गुणानुरूप, गुण निष्पन्न नाम रखा--क्योंकि हमारी यह बालिका अम्हं एसा दारिया सुकुमालकोमलिया गयतालुयसमाणा, तं होउ गजतालु के समान अत्यन्त सुकोमल है अत: हमारी इस बालिका का णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जं सुकुमालिया-सुकुमालिया। नाम सुकुमालिका हो; सुकुमालिका ।
३५. तएणंतीसेदारियाए अम्मापियरो नामधेज्जं करेंत सूमालियत्ति॥
३५. उस बालिका के माता-पिता ने उस बालिका का नाम रखा--सुकुमालिका।
३६. तए णं सा सूमालिया दारिया पंचधाईपरिग्गहिया (तं जहा--खीर- धाईए मज्जणधाईए मंडावणधाईए खेल्लावणधाईए अंकघाईए) अंकाओ अंकं साहरिज्जमाणी रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपगलया निवाय-निव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवङ्कइ ।।
३६. वह सुकुमालिका बालिका पांच धाय माताओं (जैसे--क्षीर धात्री,
मज्जन धात्री, मंडन धात्री, क्रीडन धात्री, अंक धात्री) से परिगृहीत रहती। उसे एक की गोद से दूसरे की गोद में लिया जाता। मणि-कुट्टित सुरम्य प्रांगण में क्रीड़ा कराई जाती। इस प्रकार वह निर्वात और निर्व्याघात गिरिकन्दरा में आलीन चम्पक-लता की भांति सुखपूर्वक बढ़ रही थी।
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