Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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अपक्खेवगस्स पक्खेवं दलयइ, अंतरा वि य से पडियस्स वा भग्गलुग्गस्स साहेज्जं दलयइ, सुहंसुहेण य अहिच्छत्तं संपावेइ ि कट्टु दोच्चपि तच्चपि घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिह ॥
७. तणं ते कोडुंबियपुरिसा धणेणं सत्थवाहेणं एवं वृत्ता समाणा हडतुडा चंपाए नगरीए सिंघाडग जान महापापहे एवं क्यासीहृदि सुगंतु भगवंतो! चंपानगरीकत्थन्या! बहवे चरगा! वा जाव हत्या! वा, जो णं धणेणं सत्यवाहेणं सद्धिं अहिच्छतं नयरिं गच्छ तस्स णं धणे सत्यवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ जाव सुहंसुहेण व अहिच्छत संपावेइ ति कट्टु दोच्चपि तच्चपि घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।।
८. तए णं तेसिं कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयम सोच्चा चंपाए नयरीए बहवे चरगा य जाव गिहत्था य जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उपागच्छति ।
९. तए णं धणे सत्थवाहे तेसिं चरगाण य जाव गिहत्थाण य अच्छत्तगस्स छत्तं दलयइ जाव अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, दलपित्ता एवं बयासी-बच्छह णं तुम्मे देवागुथिया! चंपाए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि ममं पडिवालेमाणा - पडिवालेमाणा चिद्वह।
१०. तए गं से चरगा य जाव हित्वा य धणेणं सत्यवाहेणं एवं वृत्ता समाणा चंपाए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि धणं सत्यवाहं पडिवालेमाणा - पडिवालेमाणा चिट्ठति ।।
धणस्स निद्देस - पदं
११. तए णं धणे सत्यवाहे सोहणंसि तिहि-करण - नक्खत्तंसि विउलं असण- पाणखाइम साइमं उपक्खडावे, उवक्खडावेत्ता मित्त - नाइ - नियम- सयण-संबंधि- परियणं आमते, आमतेत्ता भोयणं भोयावेद, भोयाक्ता आपुच्छ, आपुच्छिता सगडी-सागडं जोयावेह जोयावेता चंपाओ नवरीओ निगाच्छा, निमच्छित्ता नाइविप्यगिहिं अद्धाविसमाणे वसमाणे सुहेहिं सहि पायरासेहिं अंग जणवयं मज्मणं जेणेव देतां तेणेव उवागच्छद् उवागच्छित्ता सगडी-साग मोयावे, सत्यनिवेस करेह, करेत्ता कोदुवियपुरिसे सद्दावे, सद्दावेत्ता एयं वयासी--तुब्भे णं देवाणुप्पिया! मम सत्यनिवेससि महया महया सदेणं उग्घोसेमाणा- उन्घोसेमाणा एवं क्यह-- एवं खलु देवाणुप्पिया! इमीसे आगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं बहवे नंदिफला
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पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र ६-११
देगा। जिसके पास पाथेय नहीं है. उसे पाथेय देगा। जिसका पाथेय मार्ग में समाप्त हो जाएगा, उसके भोजन की पुनः व्यवस्था करेगा। मार्ग में भी वह पतित, भग्न और रुग्ण को सहयोग देगा और सुसपूर्वक उसे अहिच्छत्रा नगरी पहुंचाएगा इस प्रकार तुम दूसरी-तीसरी बार भी यह घोषणा करो। घोषणा कर इस आज्ञा को पुनः मुझे प्रत्यर्पित करो।
७. धन सार्थवाह के ऐसा कहने पर हृष्ट-तुष्ट हुए कौटुम्बिक पुरुषों ने चम्पा नगरी के दोराहों यावत् राजमार्गों और मार्गों में घोषणा करते हुए कहा - हे भगवन्तो! सुनें, चम्पा नगरी निवासियों! चरको! यावत् गृहस्थो! जो व्यक्ति धन सार्थवाह के साथ अहिच्छत्रा नगरी जाएगा, तो धन सार्थवाह जिसके पास छत्र नहीं है, उसे छत्र देगा यावत् सुखपूर्वक अहिच्छत्रा पहुंचाएगा। उन्होंने इस प्रकार दूसरी-तीसरी बार भी यह घोषणा की और उस आज्ञा को पुनः प्रत्यर्पित किया।
८. कौटुम्बिक पुरुषों के पास यह अर्थ 'सुनकर चम्पानगरी के बहुत से चरक यावत् गृहस्थ जहां धन सार्थवाह था, वहां आए।
९. धन सार्थवाह ने उन चरकों यावत् गृहस्थों को जिनके पास छत्र नहीं थे, उन्हें छत्र दिये यावत् जिनके पास पाथेय नहीं था, उन्हें पाथेय दिया । देकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो! जाओ और चम्पानगरी के बाहर प्रधान उद्यान में मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरो ।
१०. धन सार्थवाह के ऐसा कहने पर वे चरक यावत् गृहस्थ चम्पानगरी के बाहर प्रधान उद्यान में धन सार्थवाह की प्रतीक्षा करने लगे ।
धन का निर्देश पद
११. धन सार्थवाह ने शोभन तिथि, करण और नक्षत्र में विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवाया। तैयार करवाकर मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों को आमन्त्रित किया । आमन्त्रित कर भोजन करवाया। भोजन करवाकर उन्हें पूछा । पूछकर छोटे-बड़े वाहन जुताए । जुताकर चम्पा नगरी से निष्क्रमण किया । निष्क्रमण कर थोड़ी-थोड़ी दूर पर मार्ग में ठहरता - ठहरता सुखपूर्वक निवास करता-करता और प्रातराश करता-करता, अंग जनपद के बीचोंबीच होते हुए जहां अंग देश की सीमा थी, वहां आया। वहां आकर छोटे-बड़े वाहनों को मुक्त करवाया। सार्थ ठहराया। ठहराकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! तुम मेरे सार्थ के शिविर में ऊंचे-ऊंचे स्वर में बार-बार उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहो -- इस आने वाली,
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