Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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पोयं लंबेंति, लंबेत्ता सगडी-सागडं सज्जेंति, सज्जेत्ता तं गणिमं धरिमं मेज्जं परिच्छेज्जं च सगडी-सागडं संकामेंति, संकामेत्ता सगडि - सागडं जोविंति जोवित्ता जेणेव चंपानयरी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता चंपाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणसि सगडि - साग मोएति, मोएत्ता महत्वं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडे दिव्वं च कुंडलजुयलं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चंदच्छाए अंगराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्यं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुपलं उवर्णेति ।।
८५. तए णं चंदच्छाए अंगराया तं महत्यं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं पढिच्छ, पडिच्छिता ते अरहण्णगपामोक्ले एवं क्यासी तुन्भे णं देवाप्पिया! बहूणि गामागर जाव सण्णिवेसाई आहिंडह, लवणसमुद्दे च अभिक्खणं - अभिक्खणं पोयवहणेहिं ओगाहेह, तं अस्थिया भे केइ कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे?
८६. तए णं ते अरहण्णगपामोक्खा चंदच्छायं अंगरायं एवं वयासी--एवं खतु सामी! अम्हे इहेव चंपाए नयरीए अरहणगपामोक्ला बहने संजत्तगा नावावाणियगा परिवसामो । तए णं अम्हे अण्णया क्याइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेनं च गेण्हामो तहेब अहो अइरितं जाव कुंभगस्स रण्णो उवणेमो तए गं से कुंभए मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तं दिव्वं कुंडलजुयलं पिणद्धेइ, पिणद्धेत्ता पडिविसज्जेइ । तं एस णं सामी ! अम्हेहिं कुंभगरायभवणंसि मल्ली विदेहरायवरकन्ना अच्छेरए दिखे। तं नो स्वतु अण्णा कावि तारिसिया देवकन्ना वा असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा जारिसिया णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना ।।
८७. तए णं चंदच्छाए अरहण्णगपामोक्खे सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता उसुक्कं विचरह विपरिता पडिक्सिज्जेइ ।।
८८. तए णं चंदच्छाए वाणियग-जनियहासे दूयं सहावे सहावेत्ता एवं वपासी जान मल्लिं विदेहरायवरकन्नं मम भारिमत्ताए वरेहि, जइ वि यणं सा सयं रज्जका ।।
८९. तए णं से दूए चंदच्छाएणं एवं वृत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे जाव पहारेत्थ गमणाए ।
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अष्टम अध्ययन : सूत्र ८४-८९
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वहां आये। वहां आकर जहाज की लंगर डाली। छोटे बड़े वाहनों को तैयार किया तैयार कर गणनीय, धरणीय, मेय और परिच्छेद्य रूप क्रयाणिक को छोटे बड़े वाहनों में संक्रमित किया। संक्रमित कर छोटे बड़े वाहनों को जोता । जोत कर जहां चम्पा नगरी थी, वहां आये । आकर चम्पा राजधानी के बाहर प्रधान उद्यान में छोटे बड़े वाहनों को मुक्त किया। उन्हें मुक्त कर महान अर्थवान महामूल्य और महान अर्हता वाला राजाओं के योग्य विपुल उपहार और दिव्य कुण्डल युगल को लिया । उसे लेकर, जहां अंगराज चन्द्रच्छाय था, वहां आये । वहां आकर वह महान अर्थवान, महामूल्यवान और महान अर्हता वाला राजाओं के योग्य विपुल उपहार और दिव्य कुण्डल युगल राजा को उपहृत किया।
८५. अंगराज चन्द्रच्छाय ने उस महान अर्थवान उपहार और दिव्य कुण्डल- युगल को स्वीकार किया। स्वीकार कर, अर्हन्नक प्रमुख उन ( यात्रियों) को इस प्रकार कहा -- देवानुप्रियो ! तुम बहुत से गांव आकर यावत् सन्निवेशों में घूमते हो, लवण समुद्र का बार-बार जहाज से अवगाहन करते हो तो क्या कहीं कोई आश्चर्य तुमने देखा है ?
८६. वे अर्हन्नक प्रमुख (यात्री) अंगराज चन्द्रच्छाय से इस प्रकार बोले स्वामिन्! हम अर्हन्नक प्रमुख बहुत से सांपात्रिक पोत वणिक इसी चम्पा नगरी में रहते हैं। इसलिए हम ने किसी समय गणनीय, धरणीय, मेय और परिच्छेद्य रूप क्रयाणक लिया। उसी प्रकार न कम न अधिक (पूरी बात को कहा) यावत् राजा कुम्भ को उपहृत किया। तब उस कुम्भ ने विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली को वह दिव्य कुण्डल युगल पहनाये पहनाकर उसे प्रतिविसर्जित किया। स्वामिन्! हमने राजा कुम्भ के राजभवन में विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली को हो आश्चर्य रूप में देखा है क्योंकि अन्य कोई भी देवकन्या, असुरकन्या, नागकन्या, यक्षकन्या, गन्धर्वकन्या अथवा राजकन्या वैसी नहीं है जैसी कि विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली।
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८७. चन्द्रच्छाय ने अर्हन्नक प्रमुख (वणिकों) को सत्कृत किया। सम्मानित किया। सत्कृत, सम्मानित कर उन्हें कर मुक्त किया। करमुक्त कर प्रतिविसर्जित किया।
८८. वणिकों द्वारा उक्त अर्थ को सुनकर चन्द्रच्छाय के मन में मल्ली के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया। उसने तत्काल दूत को बुलाया। बुलाकर इ प्रकार कहा -- यावत् विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली को मेरी भार्या के रूप में वरण करो। फिर उसका मूल्य राज्य जितना भी क्यों न हो।
८९. चन्द्रच्छाय के ऐसा कहने पर हृष्ट तुष्ट होकर यावत् दूत ने प्रस्थान किया ।
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