Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
२३४. मल्ली णं अरहा पणुवीसं धणूइं उङ्कं उच्चत्तेणं, वण्णेणं पियंगुसामे समचउरंसठाणे वज्जरिसहनाराय संघयणे मज्झदेसे सुहंहेणं विहरित्ता जेणेव सम्मेए पब्वए तेणेव उवागच्छद उवागच्छित्ता सम्मेयसेलसिहरे पाओवगमणणुवन्ने ।।
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अष्टम अध्ययन सूत्र २३४ - २३६ २३४, अर्हत मल्ली की ऊंचाई पचीस धनुष्य थी। उनका वर्ण प्रियंगु जैसा श्याम, संस्थान समचतुरस्र और संहनन वज्रऋषभनाराच था। वे मध्य देश में सुख- पूर्वक विहरण कर जहां सम्मेद - पर्वत था, वहां आयी । वहां आकर सम्मेदशैल के शिखर पर प्रायोपगमन अनशन स्वीकार किया ।
मल्लिस्स निव्वाण-पदं
२३५. मल्ली णं अरहा एवं वाससर्व अगारवासमजले पणपन् वाससहस्साइं वाससयऊणाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता पणपण्णं वाससहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्ले चेत्तसुद्धे, तस्स णं चेत्तसुद्धस्स चउत्पीए पक्लेगं भरणीए नक्खत्तेणं (जोगमुवागएणं ?) अद्धरत्तकालसमयंसि पंचहिं अज्जियासहिं-- अतिरियाए परिसाए, पंचहिं अणगारसएहिं-बाहिरियाए परिसाए, मासिएणं भत्तेणं अपागएणं वधारियपाणी पाए साहट्टु खीणे वेयणिज्जे आउए नामगोए सिद्धे । एवं परिनिव्वाणमहिमा भाणियव्वा जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए, नंदीसरे अठ्ठाहियाओ पडिगयाओ ।।
निक्लेव पदं
२३६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते ।
-ति बेमि ॥
वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा
उग्गतवसंजमवजो, पगिट्ठफलसाहगस्स वि जयिस्स। धम्मविस वि सुहमा वि, होइ माया अणत्थाय ॥ ॥ ॥ ॥ जह मल्लिरस महाबल-भवम्मि तित्थपरनामबंधे वि तव विसय थेवमाया जाया जुवइत्त हेउति ॥ २ ॥
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मल्ली का निर्वाण पद
२३५. अर्हत मल्ली एक सौ वर्ष गृहवास में रही । पचपन हजार वर्षों में सौ वर्ष कम केवलि-पर्याय में रहकर, पचपन हजार वर्ष की सम्पूर्ण आयु को भोगकर, ग्रीष्म के प्रथम मास, दूसरा पक्ष, चैत्र शुक्ल पक्ष, उस चैत्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भरणी नक्षत्र के साथ (चन्द्र का योग होने पर ? ) अर्धरात्रि के समय, पांच सौ साध्वियों की अन्तरंग परिषद् और पांच सौ अनगारों की बहिरंग परिषद् के साथ निर्जल - मासिक - भक्त पूर्वक, जब वे भुजाओं को प्रलम्बित कर और दोनों पैरों को सटाकर (ध्यानरत ) थी तब वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र कर्म को क्षीण कर सिद्ध बनी जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति की भांति परिनिर्वाणमहिमा की वक्तव्यता नंदीश्वर द्वीप में अष्टानिक महोत्सव किया
गया।
निक्षेप-पद
२३६. जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता के आठवें अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया।
--ऐसा मैं कहता हूं।
वृतिकार द्वारा समुद्धृत निगमन-गाया-
१. उग्र तप और संयम के धनी, प्रकृष्ट फल के साधक मुनि की धर्म के क्षेत्र में सूक्ष्म माया भी अनर्थ का हेतु बन जाती है। २. जैसे महाबल के भव में, तीर्थंकर नाम गोत्र का बन्धन होते हुए भी तप विषयक अल्प माया मल्ली के स्त्रीत्व का कारण बन गयी ।
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