Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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चौदहवां अध्ययन सूत्र १६-२१
विपुलेणं असण पाणखाइम साइमेणं पुप्फ-वत्य-गंध- मल्लालंकारेण सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेद ।।
१७. (तए णं ते अतिरठाणिज्जा पुरिसा ?) क्लायरस मूसियारदारयत्स गिहाओ पडिनियत्तति, जेणेव तेयलिपुते अमच्चे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं एयमठ्ठे निवेइंति ।।
पोट्टिलाए विवाह - पदं
१८. तए णं कलाए मूसियारदारए अण्णया क्याई सोहणस तिहि करण - नक्खत्त- मुहुत्तंसि पोट्टिलं दारियं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं सीयं दुरुत्ता मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि- परियणेणं सद्धिं संपरिवुडे साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्लमित्ता सव्विदीए तेयलिपुरं नगरं मज्मज्मेणं जेणेव तेपतिस्स मिहे तेणेव उवागच्छइ, पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलयइ ।।
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१९. लए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं दारियं भारिषत्ताए उवणीयं पास, पासित्ता हट्ठट्ठे पोट्टिलाए सद्धिं पट्टयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सेयापी हिं कलसेहिं अप्पाणं मज्जावेद, मज्जावेत्ता अग्गिहोमं कारेड, कारेत्ता पाणिग्गाहणं करेह, करेता पोड़िलाए भारियाए मित्त-नाइ नियगसयण-संबंधि- परियणं विउलेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेता पडिविसज्जे ।।
२०. तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलाए भारियाए अणुरते अविर उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरद्द ।।
कणगरहस्स रज्जासत्ति-पदं
२१. तए णं से कणगरहे राया रज्जे य रट्टे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्टागारे य 'पुरे व अतिउरे य मुछिए गढ़िए गिद्धे अशोकवणे जाए, जाए पुत्ते वियंगे - अप्पेगझ्याणं इत्यंगुलियाओ छिंद, अप्पेगइया हत्यगुडए छिंद, अप्येमाणं पायंगुलियाओ छिंदर, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ पायंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाइं फालेइ अप्पेगइयाणं अंगोवंगाई विद्यते ॥
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नायाधम्मकहाओ
स्थानीय पुरुषों को विपुल अशन, पान खाद्य और स्वाद्य से तथा पुष्प, वस्त्र, गन्ध-चूर्ण, माला और अलंकारों से सस्कृत किया, सम्मानित किया। सत्कृत सम्मानित कर प्रतिविसर्जित कर दिया।
१७. वे (आभ्यन्तर स्थानीय पुरुष?) स्वर्णकार पुत्र कलाद के घर से लौटे। लौटकर जहां अमात्य तेतलीपुत्र था, वहां आए। वहां आकर अमात्य तेलीपुत्र को यह अर्थ निवेदित किया।
पोट्टला का विवाह पद
१८. किसी समय वह स्वर्णकार - र-पुत्र कलाद शोभन तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में बालिका पोट्टिला को स्नान करा, सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित कर, शिविका पर चढ़ा अपने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वाजन, संबंधी और परिजनों के साथ उनसे परिवृत हो अपने घर से निकला । निकल कर सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ तेतलीपुर नगर के बीचोंबीच होता हुआ जहां तेतली का घर था वहां आया। आकर पोट्टिला बालिका को तेलीपुत्र की भार्या के रूप में स्वयं ही प्रदान कर दिया।
१९. तेतलीपुत्र ने भार्या के रूप में उपनीत बालिका पोट्टिला को देखा । देखकर हृष्ट-तुष्ट हो, पोट्टिला के साथ पट्ट पर आरोहण किया । आरोहण कर रजत और स्वर्णमय कलशों से स्वयं का मज्जन करवाया। मज्जन करवा कर अग्नि होम करवाया। अग्नि होम करवा कर पाणिग्रहण किया। पाणिग्रहण कर पोट्टिला भार्या के मित्र, शांति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों को विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य तथा पुष्प, वस्त्र, गन्धचूर्ण, माला और अलंकारों से कृ किया सम्मानित किया। सत्कृत सम्मानित कर उन्हें प्रतिविसर्जित
२०. वह तेलीपुत्र पोट्टिता भार्या में अनुरक्त और अविरक्त रहता हुआ, उसके साथ प्रधान मनुष्य-सम्बन्धी भोगाई भोगों को भोगता हुआ विहार करने लगा ।
कनकरथ का राज्यासक्ति-पद
२१. राजा कनकरथ राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोष कोष्ठागार, पुर और अन्तःपुर में मूर्च्छित प्रथित, गृद्ध और अध्युपपन्न हो गया। वह अपने पुत्रों को पैदा होते ही विकलांग बना देता । वह किन्हीं के हाथों की अंगुलियां काट देता। किन्हीं के हाथों के अंगूठे काट देता। किन्हीं के पावों की अंगुलियां काट देता । किन्हीं के पावों के अंगूठे काट देता । किन्हीं की कर्णपाली काट देता। किन्हीं के नासापुट चीर देता और किन्हीं के अंगोपांग विकृत कर देता ।
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