Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
२८९ सह दासेहिं अदासे । को मेंद सद्दहिस्सइ? सह पेसेहिं अपेसे । को मेदं सद्दहिस्सइ? सह परिजणेणं अपरिजणे । को मेदं सद्दहिस्सइ?
एवं खलु तेयलिपुत्तेणं अमच्चेणं कणगज्झएणं रण्णा अवज्झाएणं समाणेणं तालपुडगे विसे आसगंसि पक्खित्ते । से वि य नो कमइ । को मेयं सद्दहिस्सइ?
तेयलिपुत्तेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसि-कुसुमप्पगासे खुरधारे असी खंघसि ओहरिए । तत्थ विय से धारा ओएल्ला। को मेयं सद्दहिस्सइ?
तेयलिपुत्तेणं पासगं गीवाए बंधित्ता रुक्खं दुरूढे, पासगं रुक्खे बंधित्ता अप्पा मुक्के । तत्थ वि य से रज्जू छिन्ना। को मेयं सद्दहिस्सइ?
तेयलिपुत्तेणं महइमहालियं सिलं गीवाए बंधित्ता अत्याहमतारमपोरिसीयंसि उदगंसि अप्पा मुक्के । तत्थ वि य णं से थाहे जाए। को मेयं सद्दहिस्सइ? ।
तेयलिपुत्तेणं सुक्कंसि तणकूडंसि अगणिकायं पक्खिवित्ता अप्पा मुक्के। तत्थ वि य से अग्गी विज्झाए। को मेयं सद्दहिस्सइ?-ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए झियायइ।
चौदहवां अध्ययन : सूत्र ७७-७९ करेगा? ___धन होते हुए भी मैं निर्धन हूं। मेरी इस बात पर कौन श्रद्धा करेगा?
पत्नी होते हुए भी मैं पत्नी-रहित हूं। मेरी इस बात पर कौन श्रद्धा करेगा?
दास संपन्न होते हुए भी मैं दास विपन्न हूं। मेरी इस बात पर कौन श्रद्धा करेगा?
प्रेष्य संपन्न होते हुए भी में प्रेष्य से विपन्न हूं। मेरी इस बात पर कौन श्रद्धा करेगा?
परिजनों के होते हुए भी मैं परिजन-रहित हूं। मेरी इस बात पर कौन श्रद्धा करेगा?
इस प्रकार राजा कनकध्वज के दुश्चिन्तन के कारण अमात्य तेतलीपुत्र ने अपने मुंह में तालपुट विष रख लिया किन्तु वह विष भी मारक रूप में परिणत नहीं हुआ, मेरी इस बात पर कौन श्रद्धा करेगा?
तेतलीपुत्र ने अपने कंधे पर नीलोत्पल, भैंसे का सींग और अतसि कुसुम के समान प्रभा तथा तीक्ष्ण धार वाली तलवार से प्रहार किया किन्तु वहां भी उसकी धार कुण्ठित हो गई। मेरी इस बात पर कौन श्रद्धा करेगा?
तेतलीपुत्र गले में फन्दा डालकर वृक्ष पर चढ़ा, फन्दे को वृक्ष पर बांधकर स्वयं नीचे कूद गया। वहां भी फांसी की रस्सी टूट गई। मेरी इस बात पर कौन श्रद्धा करेगा?
तेतलीपुत्र एक सुविशाल शिला को गले में बांधकर अथाह, अतार एवं पुरुष प्रमाण से भी अधिक गहरे पानी में कूद गया। किन्तु वहां भी वह अगाध जल उसके लिए स्ताघ--थाह वाला बन गया। मेरी इसी बात पर कौन श्रद्धा करेगा?
तेतलीपुत्र सूखी घास के ढेर में आग लगाकर स्वयं उसमें प्रविष्ट हो गया। किन्तु वहां भी आग बुझ गई। मेरी इस बात पर कौन श्रद्धा करेगा? इस प्रकार वह भग्न हृदय हो हथेली पर मुंह टिकाए आर्तध्यान में डूबा हुआ, चिन्ता मग्न हो रहा था।
पोट्टिलदेवस्स संवाद-पदं ७८. तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउब्वइ, विउव्वित्ता तेयलिपुत्तस्स अदूरसामते ठिच्चा एवं वयासी--हं भो तेयलिपुत्ता! पुरओ पवाए, पिट्ठओ हत्थिभयं, दुहओ अचक्खुफासे, मझे सराणि वरिसंति । गामे पलिते रण्णे झियाइ, रण्णे पलित्ते गामे झियाइ। आउसो तेयलिपुत्ता! कओ वयामो?
पोट्टिल देव का संवाद-पद ७८. पोट्टिल देव ने पोट्टिला के रूप की विक्रिया की। विक्रिया कर
तेतलीपत्र के न दर न निकट स्थित होकर इस प्रकार कहा--हंभो! तेतलीपुत्र! आगे प्रपात है, पीछे हाथी का भय है, दोनों ओर गाढ़ अंधकार है और मध्य में बाणों की वर्षा हो रही है। गांव में आग लगने पर व्यक्ति जंगल में जाने की सोचता है और जंगल में आग लगने पर गांव में जाने की सोचता है। आयुष्मन् तेतलीपुत्र ! बोलो, अब हम कहां जाएं?
७९. तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलं एवं वयासी--भीयस्स खलु भो!
७९. तेतलीपुत्र ने पोट्टिला से इस प्रकार कहा--पोट्टिले भयभीत के लिए
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