Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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चौदहवां अध्ययन : सूत्र १०-१६ १०. तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे मूसियारदारगस्स गिहस्स १०. स्वर्णकार-पुत्र के घर के आसपास से गुजरते-गुजरते अमात्य तेतलीपुत्र
अदूरसामतेणं वीईवयमाणे-वीईवयमाणे पोट्टिलं दारियं उप्पिं ने ऊपर खुले में सोने की गेंद से क्रीड़ा करती हुई पोट्टिला बालिका आगासतलगंसि कणग-तिंदूसएणं कीलमाणिं पासइ, पासित्ता को देखा। देखकर पोट्टिला बालिका के रूप, यौवन और लावण्य पर पोट्टिलाए दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य अज्झोववण्णे अध्युपपन्न होकर उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--एस णं देवाणुप्पिया! प्रकार पूछा--देवानुप्रियो! वह बालिका किसकी है? इसका नाम क्या कस्स दारिया किं नामधेज्जा वा?
११. तए णं कोडुंबियपुरिसा तेयलिपुत्तं एवं वयासी--एस णं सामी!
लायस्स मूसियारदारयस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला नामं दारिया--रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्टा उक्किट्टसरीरा॥
११. वे कौटुम्बिक पुरुष तेतलीपूत्र से इस प्रकार बोले--स्वामिन्! यह
स्वर्णकार पुत्र कलाद की पुत्री और भद्रा की आत्मजा पोट्टिला नाम की बालिका है। वह रूप, यौवन और लावण्य से उत्कृष्ट तथा उत्कृष्ट-शरीर वाली है।
पोट्टिलाए वरण-पदं १२. तए णं से तेयलिपुत्ते आसवाहणियाओ पडिणियत्ते समाणे
अभिंतरठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता, एवं वयासी--गच्छह, णं तुब्भे देवाणुप्पिया! कलायस्स मूसियारदारयस्स धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं मम भारियत्ताए वरेह ।।
पोट्टिला का वरण-पद १२. तेतलीपुत्र ने अश्व-वाहिनिका से लौटकर अपने आभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! तुम जाओ
और स्वर्णकार पुत्र कलाद की पुत्री और भद्रा की आत्मजा पोट्टिला नाम की बालिका का मेरी भार्या के रूप में वरण करो।
१३. तए णं ते अभिंतरठाणिज्जा पुरिसा तेयलिणा एवं वुत्ता
समाणा हट्ठतुट्ठा करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावतं मत्थए अंजलिं कटु "एवं सामी"! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तेयलिस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव कलायस्स मूसियारदारयस्स गिहे तेणेव उवागया।
१३. तेतलीपुत्र के ऐसा कहने पर हृष्ट-तुष्ट हुए आभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों
ने सटे हुए दस नखों वाली सिर पर प्रदक्षिणा करती अञ्जलि को मस्तक पर टिकाकर ऐसा ही होगा स्वामिन्!' यह कहकर उस आज्ञा-वचन को विनयपूर्वक स्वीकार किया। स्वीकार कर तेतलीपुत्र के पास से उठकर गए। जाकर जहां स्वर्णकार-पुत्र कलाद का घर था वहां आए।
१४. तए णं ते कलाए मूसियारदारए ते पुरिसे एज्जमाणे पासइ,
पासित्ता हट्ठतुढे आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुतॄत्ता सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता आसणेणं उवणिमतेइ, उवणिमंतेत्ता आसत्थे वीसत्थे सुहासणवरगए एवं वयासी--संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमागमणप-ओयणं?
१४. स्वर्णकार-पुत्र कलाद ने उन पुरुषों को आते हुए देखा। उन्हें देखकर
वह हृष्ट-तुष्ट होकर आसन से उठा। उठकर सात-आठ पद सामने गया। जाकर उन्हें आसन से उपनिमन्त्रित किया। उपनिमन्त्रित कर आश्वस्त-विश्वस्त हो प्रवर सुखासन पर बैठ इस प्रकार कहा--
कहें देवानुप्रियो! किस प्रयोजन से आगमन हुआ है?
१५. तए णं ते अभिंतरठाणिज्जा पुरिसा कलायं मूसियारदारयं एवं
वयासी--अम्हे णं देवाणुप्पिया! तव धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स भारियत्ताए वरेमो । तं जइ णं जाणसि देवाणुप्पिया! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो वा दिज्जउणं पोट्टिला दारिया तेयलिपुत्तस्स । तो भण देवाणुप्पिया! किं दलामो सुकं॥
१५. उन आभ्यन्तर स्थानीय-पुरुषों ने स्वर्णकार-पुत्र कलाद से इस प्रकार
कहा--देवानुप्रिय! हम तुम्हारी पुत्री, भद्रा की आत्मजा पोट्टिला बालिका को तेतलीपुत्र की भार्या के रूप में वरण करना चाहते हैं। अत: देवानुप्रिय! यदि इस (संबंध) को युक्त, पात्र, सराहनीय और समान संयोग के रूप में जानो तो बालिका पोट्टिला को तेतलीपुत्र के लिए दे दो। देवानुप्रिय! कहो, हम क्या शुल्क दें? .
१६. तए णं कलाए मूसियारदारए ते अभिंतरठाणिज्जे पुरिसे एवं
वयासी--एस चेव णं देवाणुप्पिया! मम सुंके जण्णं तेयलिपुत्ते मम दारियानिमित्तेणं अणुग्गहं करेइ। ते अभिंतरठाणिज्जे पुरिसे
१६. स्वर्णकारपुत्र कलाद ने उन आभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों से इस प्रकार
कहा--देवानुप्रिय! यही मेरा शुल्क है कि तेतलीपुत्र मेरी बालिका के निमित्त से मुझ पर अनुग्रह कर रहा है। उसने उन आभ्यन्तर
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