Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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चौदहवां अध्ययन सूत्र ५७-६३
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ईसरपभिईण उवणे, उवणेत्ता एवं वपासी एस णं देवाणुप्पिया! कणगरहस्त रण्णो पुत्ते पउमावईए देवीए अत्तए कणगज्झए नाम कुमारे अभिसेयारिहे रायलक्ससंपण्णे, भए कणगरहस्त रण्णो रहस्सिययं संवडिए । एवं गं तुम्भे महया महया रायाभिसेएन अभिसिंह । सव्वं च से उद्वाणपरियावणियं परिकहेइ ॥
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५८. तए णं ते ईसरपभिइओ कणगज्मयं कुमारं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचति ।।
५९. तए णं से कणगज्झए कुमारे राया जाए--महया हिमवंतमहंत मलय-मंदर-महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ ||
तेयलिपुत्तस्स सम्माण- पदं
६०. तए णं सा पउमावई देवी कणगज्जयं राय सहावे सहावेता एवं क्यासी एस णं पुत्ता! तव रज्जे व रहे य बते य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य, तुमं च तेयलिपुत्तस्स अमच्चस्स पभावेणं । तं तुमं णं तेयलिपुत्तं अमच्चं आढाहि परिजानाहि सक्कारेहि सम्माणेहि, इंतं अन्भुद्वेहि, ठिपं पज्जुवासेडि वच्चतं पडिससाहेहि, अद्धासणेण उवणिमंतेहि भोगं च से अणुवड्ढेहि ।।
६१. तए णं से कणगज्झए पउमावईए तहत्ति वयणं पडिसुणेइ, परिसुणेत्ता तेयलितं अमच्चं आढाइ परिजाणाइ सक्कारेइ सम्माणेइ, इंतं अब्भुट्ठेद्द, ठियं पज्जुवासेइ, वच्चतं पडिसंसाहेद, अद्धासणेणं उवणिमंते, भोगं च से अणुवद्देद्र ।।
पोट्ठिलदेवेण तेयलिपुत्तस्स संबोह-पदं
६२. तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं अभिवखणं केवलिपण्णत्ते धम्मे संबोहेड, नो चेव णं से तेयलिपुत्ते बुझाइ ।।
६३. तए णं तस्स पोट्टिलदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए कप्पे समुपज्जित्वा एवं सतु कणगाए राया तेपलितं आढाइ जाव भोगं च से अणुवट्टेइ, तए णं से तेयलिपुते अभिक्लणं अभिक्खणं संबोहिज्जमाणे वि धम्मे नो संबुदाइ । तं सेयं खलु ममं कणगज्जायं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामित्तए ति
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नायाधम्मकहाओ
यावत् श्रीसम्पन्न किया । श्रीसंपन्न कर उन ईश्वर प्रभृति अधिकारियों के पास ले गया। ले जाकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! यह राजा कनकरथ का पुत्र और पद्मावती देवी का आत्मज कनकध्वज नाम का कुमार है। यह अभिषेक के योग्य और राजलक्षणों से सम्पन्न है। मैंने इसका संवर्धन राजा कनकरथ से गुप्त रखकर किया है। इसे तुम महान राज्याभिषेक से अभिषिक्त करो। तेतलीपुत्र ने उसके जन्म से लेकर वर्तमान तक की सम्पूर्ण घटना कह सुनायी ।
५८. ईश्वर प्रभृति अधिकारियों ने कनकध्वज कुमार को महान राज्यभिषेक से अभिषिक्त किया।
५९. कनकध्वज कुमार राजा बन गया। वह महान हिमालय, महान मलय, मेरू और महेन्द्र पर्वत के समान उन्नत था यावत् वह राज्य का प्रशासन करता हुआ विहार करने लगा।
तेलीपुत्र का सम्मान पद
६०. पद्मावती देवी ने राजा कनकध्वज को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा-पुत्र ! तुम्हारा यह राज्य राष्ट्र, बल, वाहन, कोष, कोष्ठागार, पुर, अन्तःपुर और तुम स्वयं अमात्य तेलीपुत्र के प्रभाव से ही अस्तित्व में हो। अत: तुम अमात्य तेतलीपुत्र का आदर करो, उसकी ओर ध्यान दो, उसका सत्कार करो और सम्मान करो। जब वह आये तो खड़े हो जाओ, जब वह सहा रहे तो उसकी पर्युपासना करो, वह जाए तो उसका अनुगमन करो। उसे अपने आधे अप्सन से उपनिमन्त्रित करो और उसके भोगों का संवर्धन करो।
६१. पद्मावती के वचन को कनकध्वज ने 'तथेति' कहकर स्वीकार किया । स्वीकार कर वह अमात्य तेतलीपुत्र को आदर देता, उसकी ओर ध्यान देता, सत्कार करता, सम्मान करता, जब वह आता तो खड़ा होता, जब वह खड़ा रहता तो पर्युपासना करता, जब वह जाता तो अनुगमन करता, उसे आधे आसन से उपनिमन्त्रित करता और उसके भोगों का संवर्धन करता ।
पोहिलदेव द्वारा तेतलीपुत्र को संबोधपद
६२. वह पोट्टिल देव तेलीपुत्र को बार-बार केवली प्रज्ञप्त धर्म का संबोध देता, किन्तु तेतलीपुत्र संबुद्ध नहीं होता ।
६३. उस पोट्टिल देव के मन में इस प्रकार आन्तरिक चिन्तित अभिलचित मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ--राजा कनकध्वज तेतलीपुत्र को आदर देता है यावत् उसके भोगों का संवर्धन करता है, इसलिए बार-बार संबोध देने पर भी तेतलीपुत्र धर्म में संबुद्ध नहीं हो रहा है। अतः मेरे लिए उचित है मैं कनकध्वज को तेतलीपुत्र से विपरीत कर
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