Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
२१८. तए णं पभावई हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणालंकारं पडिच्छइ ।।
२१९. तए णं मल्ली अरहा सयमेव पंचमुद्वियं लोयं करेइ ।।
२२०. तए णं सक्के देविदे देवराया मल्लिस्स केसे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता खीरोदगसमुद्दे साहरइ ।
२२१. तए णं मल्ली अरहा नमोत्थु णं सिद्धाणं ति कट्टु सामाइयचरितं पडिवज्जइ । जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइयचरित्तं पडिवज्जइ, तं समयं च णं देवाण माणुसाण य निग्घोसे तुडिय - णिणाए गीय वाइय- निन्योसे य सक्कवयणसदेसेणं निलुक्के यावि होत्या । जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइयचारित्तं पडिवण्णे तं समयं च मल्लिएस अरहओ माणुसधम्माओ उत्तरिए मणपज्जवणाने समुप्पण्णे ॥
२२२. मल्ली गं अरहा जे से हेमंताणं दोच्चे मासे चडत्ये पक्खे पोससुद्धे तस्स णं पोससुद्धस्स एक्कारसीपक्खेणं पुव्वण्हकालसमयसि अमेण भत्ते अपाणएणं अस्सिणीहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं तिहिं इत्थीसएहिं अतिरियाए परिसाए, तिहिं पुरिससएहिं-बाहिरियाए परिसाए सद्धिं मुडे भवित्ता पव्वइए । ।
२२३. मल्तिं अहं इमे अट्ठ नायकुमारा अणुपव्वसु तं जहा-
गाहा
नदेय नंदिमित्ते, सुमित्त बलमित्त भाणुमित्ते य अमरवइ अमरसेणे, महसेणे चेव अट्ठमए ।।
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२२४. तए णं ते भवणवइ - वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया देवा मल्लिक्स अरहओ निक्खमण-महिमं करेति, करेता जेणेव नंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहियं महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया । ।
मल्लिस्स केवलणाण-पदं
२२५. तए णं मल्ली अरहा जं चेव दिवसं पव्वइए, तस्सेव दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयंसि असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टयंसि सुहासणवरगयस्स सुहेणं परिणामेणं पसत्याहिं लेसाहिं तयावरणकम्मरय-विकरणकरं अपुव्वकरणं अणुपविद्वस्त अणते अणुत्तरे निव्वाधार निरावरणे कसिणे पडिपुणे केवल वरनाणदंसणे सपणे ।।
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अष्टम अध्ययन सूत्र २१८-२२५
२१८. प्रभावती ने हंस लक्षण वाले पट-शाटक में आभरण और अलंकार स्वीकार किए।
२१९ अर्हत मल्ली ने स्वयं ही पंचमौष्टिक लंघन किया।
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२२०. देवेन्द्र देवराज शक ने मल्ती के केश लिए लेकर क्षीरोदक समुद्र में विसर्जित कर दिया।
२२१. अर्हत मल्ली ने 'सिद्धों को नमस्कार हो' ऐसा कहकर सामायिक चारित्र स्वीकार किया। जिस समय अर्हत मल्ली ने सामायिक चारित्र, स्वीकार किया उस समय देवों और मनुष्यों के निर्दोष, त्रुटित-निनाद गीत और वादित्र के निर्घोष शक्र के संदेश-वचन के साथ ही रुक गए। जिस समय अर्हत मल्ली ने सामायिक चारित्र स्वीकार किया, उस समय उसे मनुष्य धर्मता युक्त (केवल मनुष्य को होने वाला) श्रेष्ठ मन:पर्यव ज्ञान समुत्पन्न हुआ।
२२२ अर्हत मल्ली हेमन्त के दूसरे मास, चौथे पक्ष, पौष शुक्ल पक्ष, उस पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पूर्वाह्न के समय, निर्जल अष्टमभक्त पूर्वक, अश्विनी नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग होने पर, तीन सौ स्त्रियों की अतरंग परिषद् के साथ तीन सौ पुरुषों की बहिरंग परिषद् के साथ मुण्ड हो प्रव्रजित हो गई।
२२३, अर्हत मल्ली के साथ ये आठ नाग कुमार" प्रव्रजित हुए। जैसे-
गाथा
नंद नदिमित्र सुमित्र, बलमित्र भानुमित्र । अमरपति, अमरसेन और आठवां महासेन ।।
२२४ भवनपति वाणमन्तर, ज्योतिषिक और वैमानिक देवों ने अर्हत मल्ली की निष्क्रमण महिमा की ऐसा करके वे जहां नंदीश्वर द्वीप था वहां आए वहां आकर अष्टान्हिक-महिमा की महिमा करके जिस दिशा से आए थे उसी दिशा में चले गए ।
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मल्ली का केवलज्ञान- पद
२२५. अर्हत मल्ली जिस दिन प्रव्रजित हुई उसी दिन प्रत्यापराह्नकाल के समय वह प्रवर अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वी शिलापट्ट पर प्रवर
में आसीन थी। शुभ परिणामों और प्रशस्त लेश्याओं के कारण तदावरणीय कर्म- रजों का विकिरण करने वाले अपूर्व करण में अनुप्रविष्ट होने पर अर्हत् मत्ती को अनन्त, अनुत्तर, निर्व्यापात, निरावरण, कृत्स्न, प्रतिपूर्ण, प्रवर केवलज्ञान और दर्शन समुत्पन्न हुए।
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