Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
तह धम्मकही भव्वाण, साहए दिट्ठअविरइसहावा। सयलदुहहेउभूया, विसया विरयंति जीवा णं ।।४।।
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नवम अध्ययन : सूत्र ५४ ४. वैसे ही अविरति के स्वभाव को साक्षात् देखने वाले धर्मकथी कहते हैं--विषय समस्त दुःखों के हेतुभूत हैं--यह बताकर वे भव्य-जीवों को उन से विरत करते हैं।
सत्ताण दुहत्ताणं, सरणं चरणं जिणिंदपण्णत्तं । आणंदरूव-निव्वाण-साहणं तह य दंसेइ।।५।।
५. जिनेन्द्र प्रज्ञप्त चारित्र ही दुःखार्त्त प्राणियों की शरण और आनंद स्वरूप निर्वाण का साधन है, ऐसा वे निदेशन करते हैं।
जह तेसिं तरियन्वो, रुद्दसमुद्दो तहेह संसारो। जह तेसि सगिहगमणं, निव्वाणगमो तहा एत्थ ।।६।।
६. जैसे उन व्यापारियों का लक्ष्य है--रुद्र समुद्र को पार करना और अपने
घर पहुंचना, वैसे ही यहां (अध्यात्म साधक का) लक्ष्य है--संसार-समुद्र का पार पाना, निर्वाण को प्राप्त करना।
जह सेलगपट्ठाओ, भट्ठो देवीए मोहियमई उ। सावय-सहस्सपउरम्मि, सायरे पाविओ निहणं ।।७।।
७-८. जैसे देवी के प्रति मोहित-मति वाला जिनरक्षित शैलक की पीठ से
भ्रष्ट होकर, हजारों हिंस्र-जन्तुओं से संकुल समुद्र में निधन को प्राप्त हुआ वैसे ही अविरति से भ्रमित व्यक्ति चारित्र से भ्रष्ट हो दुःख रूप हिंस्र जन्तुओं से आकीर्ण हो जाता है, वह अनन्त-काल तक अगाध संसार-सागर में गिरता रहता है।
तह अविरईई नडिओ, चरणचुओ दुक्खसावयाइण्णो। निवडइ अगाह-संसार-सागरं अणंतमविकालं ।।।
जह देवीए अक्खोहो, पत्तो सट्ठाण-जीवियसुहाई। तह चरणठिओ साहू, अक्खोहो जाइ निव्वाणं IR ||
९. जैसे देवी से क्षुब्ध न होने वाला जिनपालित अपने स्थान पर पहुंच गया
और जीवन के सुखों को उपलब्ध हुआ, वैसे ही चरण में स्थित मुनि (विषयानुराग से) क्षुब्ध न हो निर्वाण को प्राप्त करता है।
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