Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
जियसत्तुपामोक्स्खा छप्पि रायाणो तेसिं दूयाणं अंतिए एपम सोच्चा परिकुविया समाणा मिहिलं रायहाणिं निस्संचारं निरुच्चारं सव्यओ समता ओभित्ता णं चिति ।
तए णं अहं पुत्ता तेसिं जियसत्तुपामोक्लाणं उन्हं राई अंतराणि (य छिद्राणि य विवराणि य मम्माणि य?) अलभमाणे जाव अट्टज्झाणोवगए झियामि ।।
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मल्लीए उवायनिरूवण-पदं
१७३. तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुंभगं राय एवं क्यासीमा णं तुम्मे ताओ! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्यमुहा अट्टज्झाणोवगया झियाबह तुम्भे णं ताओ! तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्डं राईणं पत्तेयं-पत्तेयं रहस्सिए दूयसपैसे करेह, एगमेगं एवं वयह-- तव देमि मल्लि विदेहरायवरकन्नं ति कट्टु संझकालसमयंसि पविरल- मणूसंसि निसंत- पडिनिसंतसि पत्तेयं - पत्तेयं मिहिलं रायहाणि अणुप्पवेसेह, अणुप्पवेसेत्ता गन्धरसु अणुष्पवेसेह, अणुप्यवेसेत्ता मिहिलाए रापहाणीए दुवारा पिह, पित्ता रोहासज्जा चिट्ठह ।।
१७४. तए णं कुंभए तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयंपत्तेयं रहस्सिए दूयसपैसे करेइ जाव रोहासज्जे चिट्ठइ ॥
मल्लीए जियसत्तुपामोक्लाणं संबोह-पदं
१७५. ताए णं ते जियसत्तुपायोक्खा छप्पि रायाणो कल्लं पाउप्पभायाए रगीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयता जलते जातंतरेहिं कणगमहं मत्ययछि पउमुप्पल-पिहाणं पहिमं पासंति-- एस णं मल्ली विदेहरायवरकन्नत्ति कट्टु मल्लीए रायवरकन्नाए रूवे व जोब्वणे य लावण्णे य मुच्छिया गिद्धा मडिया अज्झोववण्णा अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणा पेहमाणा चिट्ठति ॥
१७६. तए गं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय - मंगल पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया बहूहिं खुज्जाहिं जाव परिक्खित्ता जेणेव जालघरए, जेणेव कणगमई मत्थयछिड्डा पउमुप्पल-पिहाणा पडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तीसे कणगमईए मत्ययछिड्डाए पउमुप्पलपिहाणाए पहिमाए मत्ययाओ तं पउमुप्पल-पिहाणं अवणेइ तओ गं गंधे निद्धावे से जहाणामए-अहिमडे इ वा जाव एत्तो असुभतराए देव ।।
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अष्टम अध्ययन सूत्र १७२-१७६
तब उन दूतों से यह अर्थ सुनकर परिकुपित हुए वे जितशत्रु प्रमुख छहों राजा मिथिला राजधानी को संचार रहित, उच्चार रहित कर उसे चारों ओर से घेरे हुए बैठे हैं।
पुत्री ! मुझे उन जितशत्रु प्रमुख छहों राजाओं को पराजित करने का उचित अवसर (छिद्र, सुरास और मर्म) उपलब्ध नहीं हो रहा है यावत् मैं आर्त्तध्यान में डूबा हुआ, चिन्तामग्न हो रहा हूं।
मल्ली द्वारा उपाय- निरूपण-पद
१७३. विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली ने राजा कुम्भ से इस प्रकार कहातात! तुम भग्न हृदय हो, हथेली पर मुंह टिकाए, आर्तध्यान मे डूबे हुए चिन्तामग्न मत बनो। तात! तुम जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं के पास एकान्त में पृथक-पृथक दूतों को भेजो एक-एक राजा को इस प्रकार कहो --तुझे विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली देता हूं--ऐसा कहकर सन्ध्याकाल के समय, जब मनुष्यों का गमनागमन कम हो जाए, घर से बाहर गये लोग पुनः अपने-अपने घरों में लौट आये, तब तुम उन्हें पृथक-पृथक रूप से राजधानी मिथिता में प्रविष्ट कराओ। प्रविष्ट कराकर तलघरों में प्रविष्ट कराओ। तलघरों में प्रविष्ट कराकर राजधानी मिथिला के द्वार बन्द कर दो। द्वार बन्द कर घेरा डालकर बैठ जाओ।
१०४. तब कुम्भ ने जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं के पास एकान्त में पृथक-पृथक दूत भेजे यावत् घेरा डालकर बैठ गया ।
मल्ली द्वारा जितशत्रु प्रमुखों को संबोध पद
१७५. उषा काल में पौ फटने पर यावत् सहस्ररश्मि दिनकर, तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर आ जाने पर जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं ने मस्तक में छेद और पद्मकमल के ढक्कन वाली उस स्वर्णमयी प्रतिमा को जाली के छिद्रों से देखा । यही विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली है-- ऐसा सोचकर वे प्रवर राजकन्या मल्ली के रूप, यौवन और लावण्य पर मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और अध्युपपन्न होकर उसे अनिमिष दृष्टि से बार-बार देखने लगे। I
१७६. विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली स्नान कर, बलिकर्म तथा कौतुक - मंगल रूप प्रायश्चित्त कर सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित और बहुत सी कुवाओं से यावत् परिवृत हो, जहां जालक गृह था, जहां मस्तक में छेद और पद्म-कमल के ढ़क्कन वाली स्वर्णमयी प्रतिमा थी, वहां आयी। वहां आकर मस्तक में छेद और पद्म-कमल के ढ़क्कन वाली उस स्वर्णमयी प्रतिमा के मस्तक पर से पद्म-कमल के उस ढ़क्कन को हटाया। उससे ऐसी गन्ध फूटी जैसे कोई मृत प हो, यावत् वह गन्ध उससे भी अशुभतर थी।
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