Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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अष्टम अध्ययन : सूत्र १६१-१६६ मिसिमिसेमाणा अण्णमण्णस्स यसपेसणं करेंति, करेत्ता एवं क्रोध से जलते हुए उन्होंने एक दूसरे के पास दूतों को संप्रेषित किया। वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं छण्हं राईणं दूया जमगसमगं संप्रेषित कर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! हम छहों राजाओं के दूत चेव मिहिला तेणेव उवागया जाव अवद्दारेणं निच्छूढा । तं सेयं एक साथ, जहां मिथिला थी, वहां गये यावत् पार्श्वद्वार से निकलवा खलु देवाणुप्पिया! कुंभगस्स जत्तं गेण्हित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स दिये गए। अत: देवानुप्रियो! उचित है कुम्भ के साथ युद्ध करने के एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता ण्हाया सण्णद्धा हत्यिखंधरवरगया लिए प्रयाण करें--ऐसा कहकर उन्होंने एक दूसरे के इस प्रस्ताव को सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं स्वीकार किया। स्वीकार कर, स्नान कर, सन्नद्ध हो, प्रवर हस्तिवीइज्जमाणा महया हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए स्कन्ध पर आरूढ़ हुए। कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त सेणाए सद्धिं संपरिखुडा सव्विड्डीए जावटुंदभि-नाइयरवेणं सएहितो- छत्र धारण किया। प्रवर श्वेत चामरों से वीजित होते हुए, वे महान सएहितो नगरेहितो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता एगयओ मिलायंति, अश्व, गज, रथ और प्रवर पदाति योद्धाओं से कलित चतुरंगिणी सेना जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
के साथ उससे परिवृत हो सम्पूर्ण ऋद्धि यावत् दुन्दुभि के निनादित स्वरों के साथ अपने-अपने नगरों से निकले, वहां से निकलकर एक स्थान में मिले और जहां मिथिला थी, उधर प्रस्थान कर दिया।
१६२. तए णं कुंभए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे बलवाउयं
सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव हय-गय-रहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सन्नाहेहि, सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि सेवि जाव पच्चप्पिणति।।
१६२. जब राजा कुम्भ को इस बात का पता चला, तब उसने सेनाध्यक्ष
को बुलाया। उसे बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! शीघ्र ही अश्व, गज, रथ और प्रवर पदाति योद्धाओं से कलित चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध करो। सन्नद्ध कर इस आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो। उसने भी यावत् प्रत्यार्पित किया।
१६३. तए णं कुंभए राया हाए सण्णद्धे हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्ल-
दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे महया हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरितुड़े सव्विड्डीए जाव दुंदुभि-नाइयरवेणं मिहिलं मझमझेणं निज्जाइ, निज्जावेत्ता विदेहजणवयं मझमझेणं जेणेव देसग्गं तेणेव खंघावारनिवेसं करेइ, करेत्ता जियसत्तुपामोक्खा छप्पि य रायाणो पडिवालेमाणे जुज्झसज्जे पडिचिट्ठइ।।
१६३. राजा कुम्भ स्नान कर, सन्नद्ध हो प्रवर हस्तिस्कन्ध पर आरूढ़
हुआ। कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त छत्र धारण किया। प्रवर श्वेत चामरों से वीजित होता हुआ महान अश्व, गज, रथ और प्रवर पदाति योद्धाओं से कलित चतुरंगिणी सेना के साथ उससे परिवृत हो, सम्पूर्ण ऋद्धि यावत् दुन्दुभि के निनादित स्वरों के साथ मिथिला के बीचोंबीच से होकर निर्माण किया। निर्याण कर विदेह जनपद के बीचोंबीच होता हुआ जहां देश की सीमा थी, वहां सेना का पड़ाव डाला। पड़ाव डालकर जितशत्रु प्रमुख छहों राजाओं की प्रतीक्षा करता हुआ, युद्ध के लिए सन्नद्ध होकर बैठ गया।
१६४. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव कुंभए
राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कुंभएण रण्णा सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था।
१६४. जितशत्रु प्रमुख, वे छहों राजा जहां राजा कुम्भ था, वहां आए। वहां
आकर वे राजा कुम्भ के साथ युद्ध-संलग्न हो गये।
१६५. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो कुंभयं रायं
हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसिं पडिसेहेति॥
१६५. जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं ने राजा कुम्भ को हत और
मथित कर डाला। उसके प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा दिया। सेना के चिह-ध्वजाओं और पताकाओं को गिरा दिया। उसके प्राण संकट में डाल दिए और सब दिशाओं से उसके प्रहारों को विफल कर दिया।
१६६. तए णं से कुंभए जियसत्तुपामोक्खेहिं छहिं राईहिं हय-महिय-
पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं पडिसेहिए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए
१६६. जितशत्रु प्रमुख छहों राजाओं द्वारा राजा कुम्भ हत और मथित हो गया। उसके प्रवर वीर युद्ध में काम आ गए। सेना के चिह्न-ध्वजाएं और पताकाएं नीचे गिर गयी। उसके प्राण संकट में पड़ गये और
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