Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अष्टम अध्ययन : सूत्र १६८-१७२
अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु सिग्धं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेइयं जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मिहिलं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता भिहिलाए दुवाराइं पिहेइ, पिहेत्ता रोहसज्जे चिट्ठ।
नायाधम्मकहाओ सब दिशाओं से उसके प्रहार विफल कर दिये गये। तब वह प्राणहीन, बलहीन, वीर्यहीन तथा पुरुषकार और पराक्रमहीन हो गया। अब (रण भूमि में) डटे रहना अशक्य है--ऐसा सोचकर वह शीघ्र, त्वरित, चपल, चण्ड, जयी और वेगपूर्ण गति से, जहां मिथिला थी, वहां आया। वहां आकर मिथिला में प्रवेश किया। प्रवेश कर मिथिला के द्वार बन्द कर लिए। द्वार बन्द कर घेरा डालकर बैठ गया।
सार
१६७. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मिहिला १६७. जितशत्रु प्रमुख वे छहों राजा-जहां मिथिला थी, वहां आए। वहां
तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलं रायहाणिं निस्संचारं आकर उन्होंने मिथिला राजधानी को संचार रहित, उच्चार निरुच्चारं सव्वओ समंता ओलंभित्ता णं चिटुंति॥
रहित -(उत्सर्ग के लिए भी बाहर जाना रोककर)बनाकर चारों ओर से घेर लिया।
१६८. तए णं से कुंभए राया मिहिलं रायहाणिं ओरुद्धं जाणित्ता
अभितरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य मम्माणि य अलभमाणे बहूहिं आएहि य उवाएहि य, उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मयाहि य पारिणामियाहि य--बुद्धीहिं परिणामेमाणे-परिणामेमाणे किंचि आयं वा उवायं वा अलभमाणे ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए झियायइ ।।
१६८. वह राजा कुम्भ मिथिला राजधानी को अवरुद्ध जानकर अन्तरंग
सभा मण्डप में प्रवर सिंहासन पर बैठा हुआ जितशत्रु प्रमुख छहों राजाओं को पराजित करने का उचित अवसर, छिद्र, सुराख और मर्म को उपलब्ध नहीं हुआ, बहुत से मार्गों और उपायों से तथा औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी--इस बुद्धि चतुष्टय से बार-बार परिणमन करने पर भी किसी मार्ग अथवा उपाय को उपलब्ध नहीं हुआ, तब वह भग्न हृदय हो, हथेली पर मुंह टिकाए, आर्तध्यान में डूबा हुआ चिन्तामग्न हो गया।
मल्लीए चिंताहेउ-पुच्छा-पदं १६९. इमं च णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना ण्हाया कयबलिकम्मा
कयकोउय-मंगलपायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया बहूहिं खुज्जाहिं संपरिवुडा जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कुंभगस्स पायग्गहणं करेइ।।
मल्ली द्वारा चिन्ता का कारण पृच्छा-पद १६९. विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली स्नान बलिकर्म और कौतुक मंगल
रूप प्रायश्चित्त कर समस्त अलंकारों से विभूषित और बहुत सी कुब्जाओं से परिवृत हो, जहां कुम्भ था वहां आयी। वहां आकर कुम्भ को पाद-वंदन किया।
१७०. तए णं कुंभए मल्लिं विदेहरायवरकन्नं नो आढाइ नो परियाणाइ १७०. कुम्भ ने विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली को न आदर दिया, न तुसिणीए चिट्ठइ॥
उसकी ओर ध्यान दिया। वह चुपचाप बैठा रहा।
१७१. तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुंभगं एवं वयासी--तुन्भे णं
ताओ! अण्णया ममं एज्जमाणिं पासित्ता आढाह परियाणाह अंके निवेसेह । इयाणिं ताओ! तुब्भे ममं नो आढाह नो परियाणाह नो अंके निवेसेह । किण्णं तुब्भं अज्ज ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया झियायह?
१७१. विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली ने कुम्भ से इस प्रकार कहा--तात!
जब कभी मुझे आती हुई देखते हो, तुम मेरा आदर करते हो, मेरी ओर ध्यान देते हो और मुझे गोद में बैठाते हो। तात! इस समय तुम न मेरा आदर करते हो, न मेरी ओर ध्यान देते हो और न मुझे गोद में बिठाते हो। आज तुम भग्न हृदय हो, हथेली पर मुंह टिकाए, आर्तध्यान में डूबे हुए क्यों चिन्तामग्न हो रहे हो?
कुंभगस्स चिंताहेउ-कहण-पदं १७२. तए णं कुंभए मल्लिं विदेहरायवरकन्नं एवं वयासी--एवं खलु
पुत्ता! तव कज्जे जियसत्तुपामोक्खेहिं छहिं राईहिं या संपेसिया। तेणं मए असक्कारिय असम्माणिय अवदारेणं निच्छूढा । तए णं
कुम्भ द्वारा चिन्ता का कारण कथन-पद १७२. कुम्भ ने विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली से इस प्रकार कहा--पुत्री!
बात ऐसी है--तेरे लिए जितशत्रु प्रमुख छह राजाओं ने दूत भेजे थे। उनको मैंने असत्कृत, असम्मानित कर पार्श्वद्वार से निकलवा दिया।
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