Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
पहिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाण आहारे आलंबणं चक्लू, मेटीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए तहा णं पव्वइयाण वि समाणाणं बहू कज्जेसु व जाव पवसुभूए ।।
९१. तए णं से सेलगे पंथगपामोक्त्रे पंच मंतिसए एवं वयासी जह णं देवाप्पिया! तुन्भे संसारभउब्बिग्गा जाव पव्वयह, तं गच्छ णं देवाप्पिया! ससु-ससु कुटुबेस जेपुते कुटुंबम ठावेत्ता पुरिससहस्तवाहिणीओ सोयाओ दुख्दा समाणा मम अंतियं पाउब्भवह । ते वि तहेव पाउब्भवंति ।।
मंडुयस्स रायाभिसेय-पदं
९२. तणं से सेलए राया पंच मंतिसयाई पाउब्भवमाणाइं पासइ, पासित्ता हतुट्ठे कोडुबियपुरिसे सद्दावेद, सहावेत्ता एवं वयासी-विप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं महग्घं महरिहं विडलं रायाभिसेव उवद्ववेह ।।
९३. तए णं ते कोटुंबियपुरिसा मंडुयस्त कुमारस्स महत्वं महम्वं महरिहं विउ रायाभिसेयं उदद्ववेति ।।
९४. तणं से सेलए राया बहूहिं गणनायगेहि य जाव संधिवालेहि यसद्धिं संपरिवुडे मंडुयं कुमारं जाव रायाभिसेएणं अभिसिंचइ ।।
९५. लए गं से मंदुए राया जाए महयाहिमवंत-महंत मलयमंदर - महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहर।।
सेलयस्स निक्खमणाभिसेय-पदं
९६. तए से सेलए मंदुय रावं आपुच्छइ ।।
९७. तए णं मंडुए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेद, सहावेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सेलगपुरं नयरं आसियसित्त सुइय सम्मज्जिजवलित्तं जाव सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।।
९८. तए गं से मंदुए दोच्च पि कोदुबियपुरिसे एवं वयासी खिप्यामेव
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पांचवां अध्ययन : सूत्र ९०-९८
मन्त्रणाओं, गोपनीय कार्यों, रहस्यों और निर्णयों में तुम्हारा मत पूछा जाता है, बार-बार पूछा जाता है, तुम (हमारे) मेढी, प्रमाण, आधार, आलम्बन और यह हो तुम मेड़ीभूत प्रमाणभूत आधारभूत, आलम्बनभूत और चक्षुभूत हो वैसे ही प्रब्रजित हो जाने पर भी 1 तुम हमारे बहुत से कार्यों में मेढ़ीभूत यावत् चक्षुभूत रहोगे।
९१. शौलक ने पथक प्रमुख पांच सौ मंत्रियों से इस प्रकार कहादेवानुप्रियो ! यदि तुम संसार के भय से उद्विग्न हो यावत् प्रव्रजित होते हो तो देवानुप्रियो ! जाओ और अपने-अपने कुटुम्बों में जो ज्येष्ठ पुत्र हैं, उन्हें कुटुम्बों के प्रमुख पद पर स्थापित कर, हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविकाओं पर आरूढ़ हो, मेरे पास उपस्थित हो जाओ।
वे भी वैसे ही उपस्थित हो गए।
मंडुक का राज्याभिषेक - पद
९२. शैलक राजा ने पांच सौ मंत्रियों को अपने सामने उपस्थित देखा । देखकर पुष्ट-तुष्ट हो कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उन्हें बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो ! शीघ्र ही कुमार मंडुक के लिए महान अर्यवान, महामूल्य और महान अर्हता वाले विपुल राज्यभिषेक की उपस्थापना करो।
९३. उन कौटुम्बिक पुरुषों ने कुमार मंडुक के लिये महान अर्थवान, महामूल्य और महान अर्हता वाले विपुल राज्याभिषेक की उपस्थापना की।
९४. राजा शैलक ने बहुत से गणनायकों यावत् सन्धिपालों के साथ उनसे परिवृत हो कुमार मंडुक को यावत् राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया।
९५. अब मंडुक राजा बन गया। वह महान हिमालय, महान मलय, मेरु और महेन्द्र पर्वत के समान उन्नत यावत् राज्य का प्रशासन करता हुआ विहार करने लगा।
शैलक का निष्क्रमण अभिषेक पद
९६. शैलक ने राजा मंडुक को
पूछा।
९७. राजा मंडुक ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर वह इस प्रकार बोला- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही शैलकपुर नगर को सामान्य या विशेष जल का छिड़काव कर, बुहार झाड़, गोबर से लीप यावत् प्रवर सुरभि वाले गन्ध-चूर्णो से सुगन्धित गन्धवर्तिका जैसा बनाओ और बनवाओ। इस आज्ञा को पुनः मुझे प्रत्यर्पित करो।
९८. मंडुक ने दूसरी बार भी कौटुम्बिक पुरुषों को इस प्रकार कहा -- देवानुप्रियो!
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