Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
अणुपुव्वेणं सारक्खेमाणा संगोवेमाणा संवड्ढेमाणा विहरति ।।
सप्तम अध्ययन : सूत्र १२-१८ खेतों के बाड़ लगाई और क्रमश: उनका संरक्षण, संगोपन और संवर्द्धन करने लगे।
१३. तए णं ते साली अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा १३. इस प्रकार वे (खेत में बोए गए) शालिकण क्रमश: संरक्षण, संगोपन
संवड्ढिज्जमाणा साली जाया--किण्हा किण्होभासा नीला नीलोभासा और संवर्द्धन पाते हुए शालि बन गए। वे (खेतों में लहलहाते शालि) हरिया हरिओभासा सीया सीओभासा णिद्धा णिद्धोभासा तिव्वा कृष्ण, कृष्ण प्रभावाले, नील, नील प्रभा वाले, हरित, हरित प्रभावाले, तिब्वोभासा किण्हा किण्हच्छाया नीला नीलच्छाया हरिया शीत, शीत प्रभावाले, स्निग्ध, स्निग्ध प्रभा वाले, तीव्र, तीव्र प्रभा वाले, हरियच्छाया सीया सीयच्छाया णिद्धा णिद्धच्छाया तिव्वा तिब्वच्छाया कृष्ण, कृष्ण छाया वाले, नील, नील छाया वाले, हरित, हरित छाया घणकडियकडच्छाया रम्मा महामेह-निउरंबभूया पासाईया वाले, शीत, शीत छाया वाले, स्निग्ध, स्निग्ध छाया वाले, तीव्र, तीव्र दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।।
छाया वाले, सघन और चटाई के पट्टों की भांति परस्पर सटी हुई छाया वाले, सुरम्य, महामेघ-पटली के समान मन को प्रसन्न करने वाले. दर्शनीय, सुन्दर और असाधारण बन गए।
१४. तए णं ते साली पत्तिया वत्तिया गब्भिया पसूइया आगयगंधा
खीराइया बद्धफला पक्का परियागया सल्लइय-पत्तइया । हरिय-फेरंडा जाया यावि होत्था।।
१४. उन शालि-क्षुपों (छोटी शाखा वाले वृक्षों) के पत्ते आए, वे गोल हुए।
गर्भित हुए। प्रसूत हुए। उनमें सुगन्ध फूटी। उनमें दूधिया द्रव-रस पैदा हुआ। दाने पडे। दाने पके। वे निष्पन्नप्राय: हुए। पत्ते सूखकर, मुड़ कर सल्लकी (सलई पेड़) के पत्तों जैसे हो गए और पर्व काण्ड हरित हो गए।
१५. तए णं ते कोडुंबिया ते साली पत्तिए वत्तिए गम्भिए पसूइए
आगयगंधे खीराइए बद्धफले पक्के परियागए सल्लइय-पत्तइए जाणित्ता तिक्खेहिं नवपज्जणएहिं असिएहिं लुणंति, लुणित्ता करयलमलिए करेंति, करेत्ता पुर्णति । तत्थ णं चोक्खाणं सूइयाणं अखंडाणं अफुडियाणं छडछडापूयाण सालीणंमागहए पत्थए जाए।
१५. जब उन कौटुम्बिकों ने जाना कि शालि-क्षुपों के क्रमश: पत्ते आ गये
हैं। वे गोल हो गए हैं। गर्भित हो गये हैं। प्रसूत हो गए हैं। दाने पक गये हैं। शालि निष्पन्नप्राय: हो गये हैं। पत्ते सूखकर मुड़कर सल्लकी (सलई पेड़) के पत्तों जैसे हो गए हैं। उन्होंने नव निर्मित तीखे दात्रों से उनको काट लिया। काटकर हथेलियों से मला । मलकर साफ किया। उनमें से अच्छे, साफ, अखण्ड, अस्फुटित और छाज से फटके (छड़छडाए) हुए शाली मगध देश प्रसिद्ध प्रस्थ प्रमाण हुए!
१६. तए णं ते कोडुंबिया ते साली नवएसु घडएसु पक्खिवंति
पक्खिवित्ता ओलिंपति, ओलिंपित्ता लंछिय-मुद्दिए करेंति, करेत्ता कोडागारस्स एगदेससि ठावेंति, ठावेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा विहरति ।
१६. कौटुम्बिक पुरुषों ने उन चावलों (शालि) को नये घड़ों में डाला,
डालकर उन्हें लीपा। लीपकर लाञ्छित-रेखांकित और मुद्रित किया। उन्हें कोष्ठागार के एक कोने में रखा। रखकर उनका संरक्षण, संगोपन करने लगे।
१७. तए णं ते कोडुंबिया दोच्चंसि वासारत्तसि पढमपाउसंसि महावुट्ठिकायंसि निवइयंसि (समाणंसि?) खुड्डागं केयारं सुपरिकम्मियं करेंति, ते साली ववंति, दोच्चंपि उक्खय-णिहए करेंति जाव असिएहिं लुणंति लुणित्ता चलणतलमलिए करेंति करेत्ता पुणंति । तत्थ णं सालीणं बहवे कुडवा जाया।।
१७. उन कौटुम्बिकों ने दूसरे वर्षारात्र में भी प्रथम पावस में महावृष्टि होने
पर, एक छोटे से खेत को भली-भांति परिकर्मित किया। उन शालिकणों को बोया। दूसरी बार भी उन्हें उखाड़कर दूसरे स्थान में रोपा, यावत् उन्हें दात्रों से काटा। काटकर उन्हें पांवों के तलवों से मला । मलकर साफ किया। इस बार बहुत कुडव परिमित शालि हुए।
१८. तएणं ते कोडुबिया ते साली नवएस घडएसु पक्खिर्वति, पक्खिवित्ता
ओलिंपति, ओलिंपित्ता लंछिय-मुद्दिए करेंति, करेत्ता कोट्ठागारस्स एगदेससि ठावेंति, ठावेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा विहरति ।।
१८. कौटुम्बिक पुरुषों ने उन चावलों को नये घड़ों में डाला। डालकर घड़ों
को लीपा। लीपकर उन्हें लाञ्छित -रेखांकित और मुद्रित किया। मुद्रित कर उन्हें कोष्ठागार के एक देश में रखा। रखकर उनका संरक्षण, संगोपन करने लगे।
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