Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सप्तम अध्ययन सूत्र ९-१२
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एतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुष्यज्जित्या एवं खलु ममं ताओ इमस्स मित्त-नाइनियम- सण-संबंध परियणस्स चउण्ड व सुण्हाणं कुलधरवणस्स पुरओ सद्दावेता एवं वयासी--तुमं णं पुत्ता! मम हत्याओ इमे पंच सालिञ्जयखए गेण्डाति, अणुपुब्वेगं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । जया णं अहं पुत्ता! तुमं इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा, तया गं तुमं मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएज्जासि कट्टु मम हत्याँस पंच सालिअक्लए दलवई । तं भवियव्यमेत्य कारणेणं ति कट्टु एवं सपेहेछ, सपेहेत्ता ते पंच सालिअक्लए सुद्धे वत्थे बंध, बंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता उसीसामूले ठावे, ठावेता तिनं पहिजागरमाणी- पहिजागरमाणी विहर।।
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१०. तए गं से धणे सत्यवाहे तहेब मित्त-नाइ नियग-सयणसंबंधि- परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ पंच सालिअक्खए गेह, गेन्हित्ता चउत्थं रोहिणीयं सुण्हं सहावे, सदावेत्ता एवं वयासी तुमं णं पुत्ता! मम हत्याओ इमे पंच सालिअक्खए गेहाहि, जाव गेण्हइ, गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्यज्जित्था एवं खलु ममं ताओ इमस्त मित्त नाइ नियम- सयण संबंधि परियणस्स चउन्ह व सुण्हाणं कुलधरवग्यस्स पुरओ सदावेता एवं क्यासी तुमं णं पुत्ता! मम हत्याओ इमे पंच सालिअक्सए मेण्हारि, अणुपुब्वेणं सारक्खमाणी गोमाणी विहराहि । जया णं अहं पुत्ता! तुमं इमे पंच सालिअक्खए जाएजा तथा गं तुमं मम इमे पंच सालिजक्लए परिनिज्जा एज्जासि त्ति कट्टु मम हत्पति पंच सातिअक्लए दलय । तं भविय एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु मम एए पंच सालिअक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संवड्ढेमाणीए त्ति कट्टु एवं सपेहेइ, सपेहेत्ता कुलघर पुरिसे सदावे सहावेत्ता एवं क्यासी तुम्भे गं देवाप्पिया! एए पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता पढमपाउसंसि महाबुद्विकार्यसि निवइयसि समाणसि खुट्टागं केयारं सुपरिकम्मियं करेह, करेत्ता इमे पंच सालिअक्सए वावेह, वाक्ता दोच्चं पि तन्वं पि उक्खय-निहए करेह, करेत्ता वाडिपक्खेवं करेह, करेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा अणुपुष्येणं संवद्वेश ।।
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११. लए णं ते कोडुबिया रोहिणीए एयमहं पडिसुर्णेति ते पंच सालिअक्सए गेहंति, अणुपुब्वेगं सारक्खति, संगोविंति ।।.
१२. तए णं कोडुबिया पदमपाउससि महावुट्ठिकार्यसि निवइयंसि समाणसि खुट्टागं पारं सुपरिकम्मियं करेति, ते पंच सालिअक्खए ववंति, दोच्चं पि तच्च पि उक्खय-निहाए करेंति, वाडिपरिक्लेव करेति,
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नायाधम्मकहाओ
लिए लेकर एकान्त में गई। एकान्त में जाने पर उसके मन में इस । प्रकार का आन्तरिक चिन्तित, अभिलषित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ-- पिताजी ने इन मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी, परिजन और चारों बहुओं के पीहर वालों के सामने बुलाकर मुझे इस प्रकार कहा--बेटी ! तू मेरे हाथ से ये पांच शालिकण ले और क्रमश: इनका संरक्षण, संगोपन करती रह। बेटी! जब मैं तुमसे ये पांच शालिकण मांगू, तब, तू मुझे ये पांच शालिकण लौटा देना ऐसा कहकर उन्होंने मेरे हाथ में पांच शालिकण दिए । अतः यहाँ कोई न कोई कारण होना चाहिए उसने ऐसी सप्रेक्षा की सप्रेक्षा कर उन पांच शालिकणों को शुद्ध वस्त्र में बांधा। बांधकर उसे रत्न निर्मित डिबिया में रखा । रखकर उसे अपने तकिये (सिरहाने) के नीचे रखा । रखकर तीनों संध्याओं में उसकी देखभाल करती हुई विहार करने लगी I,
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१०. धन सार्थवाह ने उसी प्रकार मित्र, जाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी, परिजन और चारों बहुओं के पीहर वालों के सामने पांच शालिकण लिए। लेकर चौथी बहू रोहिणी को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा -- बेटी! तू मेरे हाथ से ये पांच शालिकण ले यावत् उसने लिए । लेकर एकान्त में गई। एकान्त में जाने पर उसके मन में इस प्रकार का आन्तरिक, चिन्तित, अभिलषित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ-ताजी ने इन मित्र ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी, परिजन और चारों बहुओं के पीहर वालों के सामने बुला कर मुझे इस प्रकार कहा---बेटी ! तू मेरे हाथ से ये पांच शालिकण ग्रहण कर और क्रमश: इनका संरक्षण, संगोपन करती रह बेटी! मैं जब तुझसे ये पांच शलिकण मागूं, तब तू मुझे ये पांच शालिकण लौटा देना - ऐसा कहकर मेरे हाथ में पांच शालिकण दिए। अतः यहां कोई न कोई कारण होना चाहिए। अत: मेरे लिए उचित है, मैं इन पांच शालिकणों का संरक्षण, संगोपन और संवर्धन करूं। उसने ऐसी संप्रेक्षा की। संप्रेक्षा कर अपने पीहर वाले पुरुषों को बुलाया। बुलाकर वह इस प्रकार बोली--देवानुप्रियो ! तुम ये पांच शालिकण लो। इन्हें लेकर प्रथम पावस में महावृष्टि होने पर एक छोटे खेत को भलीभांति परिकर्मित करो। परिकर्मित कर ये पांच शालिकण बोओ। बोकर उन्हें दूसरी-तीसरी बार शालि निष्पन्न हो जाने पर वहां से उखाड़ कर दूसरे स्थान में रोपो । रोपकर खेतों के बाड़ लगाओ। बाड़ लगाकर उनका संरक्षण, संगोपन करते हुए क्रमश: संवर्धन करो।
११. उन कौटुम्बिक जनों ने रोहिणी के इस कथन को स्वीकार किया। उन पांच शालिकणों को ग्रहण किया और क्रमशः उनका संरक्षण, संगोपन करने लगे ।
१२. उन कौटुम्बिक जनों ने प्रथम पावस में महावृष्टि होने पर एक छोटे खेत को भली-भांति परिकर्मित किया। उसमें वे पांच शालिकण बोए दूसरी-तीसरी बार भी उन्हें उखाड़कर दूसरे स्थान में रोपा।
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