Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
१७९ नमंसित्ता एवं वयासी--सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव नवरं महब्बलं कुमारं रज्जे ठावेमि । तओ पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि । ___ अहासुहं देवाणुप्पिया! जाव एक्कारसंगवी । बहूणि वासाणि परियाओ। जेणेव चारुपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मासिएणं भत्तेणं सिद्धे।।
अष्टम अध्ययन : सूत्र ८-१४ तीन बार दायीं ओर से प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा कर वन्दना-नमस्कार किया। वन्दना-नमस्कार कर इस प्रकार कहा--भन्ते! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा करता हूं यावत् केवल एक बात-महाबल कुमार को राज्य सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दूं। उसके पश्चात् देवानुप्रिय के पास मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रव्रजित बनूंगा।
जैसा तुम्हें सुख हो देवानुप्रिय! यावत् वह ग्यारह अंगों का ज्ञाता हो गया। बहुत वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय पालकर जहां चारु पर्वत था, वहां आया। वहां आकर मासिक-भक्त के परित्याग पूर्वक सिद्ध हो गया।
महब्बल-राय-पदं ९. तए णं सा कमलसिरी अण्णया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा जाव । बलभद्दो कुमारो जाओ। जुवराया यावि होत्था ।।
महाबल राजा-पद ९. किसी समय वह कमलश्री सिंह का स्वप्न देखकर प्रतिबुद्ध हुई यावत्
कुमार बलभद्र जन्मा। वह युवराज बना।
१०. तस्स णं महब्बलस्स रण्णो इमे छप्पि य बालवयंसगा रायाणो
होत्या, तंजहा-- ___ अयले धरणे पूरणे वसू वेसमणे अभिचंदे-सहजायया सहवड्डियया सहपंसुकीलियया सहदारदरिसी अण्णमण्णमणुरत्तया अण्णमण्णमणुव्वयया अण्णमण्णच्छंदाणुवत्तया अण्णमण्णहियइच्छियकारया अण्णमण्णेसुरज्जेसु किच्चाईकरणिज्जाइंपच्चणुब्भवमाणा विहरति ।।
१०. उस महाबल राजा के ये छह बाल-वयस्य राजा थे, जैसे--अचल,
धरण, पूरण, वसु, वैश्रमण, अभिचन्द्र--ये सहजात, सहसंवर्द्धित, सहपांशुक्रीडित, सहविवाहित (सह यौवन-प्रविष्ट) एक-दूसरे में अनुरक्त, एक दूसरे का अनुगमन करने वाले, एक-दूसरे के अभिप्राय का अनुवर्तन करने वाले और एक-दूसरे की आन्तरिक इच्छा को पूर्ण करने वाले थे। वे अपने करणीय कार्य को एक-दूसरे के राज्य में सम्पादित करते हुए विहार करने लगे।
११. तएणंतेसिं रायाणं अण्णया कयाइं एगयओ सहियाणं समुवागयाणं
सण्णिसण्णाणं सण्णिविट्ठाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था--जण्णं देवाणुप्पिया! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पवज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तण्णं अम्मेहिं एगयओ समेच्चा नित्थरियव्वे त्ति कटु अण्णमण्णस्स अयमढे पडिसुणेति ।।
११. किसी समय एकत्र सम्मिलित, समुपागत, सन्निषण्ण और सन्निविष्ट
उन राजाओं के मध्य परस्पर इस प्रकार वार्तालाप हुआ-देवानुप्रियो! हमारे सामने सुख या दुःख, प्रव्रज्या या विदेश-गमन--कोई भी प्रसंग उपस्थित हो, हमें मिल-जुलकर एक साथ उसको पार करना है--उन्होंने परस्पर इस अर्थ को स्वीकार किया।
१२. तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उज्जाणे थेरा समोसढा। परिसा निग्गया। महब्बले णं धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतढे । जं नवरं--छप्पि य बालवयंसए आपुच्छामि, बलभदं च कुमारं रज्जे ठावेमि, जाव ते छप्पि य बालवयंसए आपुच्छइ।।
१२. उस काल और उस समय इन्द्रकुम्भ उद्यान में स्थविर समवसृत हुए।
परिषद ने निर्गमन किया। महाबल भी धर्म को सुनकर, अवधारण कर हृष्ट तुष्ट हुआ। केवल एक बात छहों बाल वयस्यों (बाल-साथियों) से पूछ लेता हूं और कुमार बलभद्र को राज्य सिंहासन पर प्रतिष्ठित करता हूं, यावत् उसने उन छहों बाल-वयस्यों से पूछा।
१३. तए णं ते छप्पिय बालवयंसगा महब्बलं रायं एवं क्यासी--जइ
गं देवाणुप्पिया! तुम्भे पव्वयह, अम्हं के अण्णे आहारे वा आलबे वा? अम्हे वि य णं पव्वयामो॥
१३. छहों बाल वयस्यों ने राजा महाबल से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय!
यदि तुम प्रव्रजित होते हो तो हमारा कौन दूसरा आधार होगा? कौन आलम्बन होगा? हम भी चाहते हैं प्रव्रजित हो जाएं।
साबले राया तगच्छह,
ज
१४. तए णं से महब्बले राया ते छप्पिय बालवयंसए एवं वयासी--जइ
णं तुम्भे मए सद्धिं पव्वयह, तं गच्छह, जेट्टपुत्ते सएहि-सएहिं रज्जेहिं ठावेह, पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरूढा समाणा मम अंतियं पाउन्भवह । तेवि तहेव पाउन्भवति॥
समाणाम
१४, राजा महाबल ने उन छहों बाल-वयस्यों से इस प्रकार कहा--यदि तुम
मेरे साथ प्रव्रजित होते हो तो जाओ, ज्येष्ठ पुत्रों को अपने-अपने राज्यों में प्रतिष्ठापित करो और हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविकाओं पर आरूढ़ होकर मेरे समक्ष उपस्थित हो जाओ। वे वैसे ही उपस्थित हो गये।
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