Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आमुख
अस्तित्व की दृष्टि से सभी जीव समान हैं। फिर भी व्यवहार जगत में भिन्नता अथवा तारतम्य दृष्टिगोचर होता है। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में योग्यता का तारतम्य होता है, समझ और मस्तिष्कीय क्षमता का अन्तर होता है, ग्रहणशीलता और पुरुषार्थ में भी भेद होता है। एक ही विषय को पढ़ने वाले विद्यार्थियों में ज्ञान की तरतमता रहती है वैसे ही मनुष्यों में चिन्तन, समझ और भविष्य दर्शन की तरतमता होती है। रोहिणी का दृष्टान्त साधना के क्षेत्र में संवेग और चित्तवृत्ति की तरतमता को समझाने के लिए सुन्दर दृष्टान्त है।
सेठ ने अपनी चारों पत्रवधुओं को पांच-पांच चावल दिए और कहा--जब मैं मांगू, इन्हें लौटा देना। उज्झिता के संवेग संतुलित नहीं थे। उसने सोचा--पांच चावलों का क्या? उसने उन्हें फेंक दिया। भोगवती ने उज्झिता की अपेक्षा सन्तुलित मनोवृत्ति का परिचय दिया। ससुर के हाथ से प्राप्त चावलों को फैंका नहीं, खा लिया। रक्षिता ने सेठ की बात का आदर किया। मुझे यही दाने लौटाने हैं अत: उनका सम्यक् संरक्षण कर अपने नाम को सार्थक कर दिया। रोहिणी ने सेठ द्वारा प्राप्त चावलों का संगोपन, संवर्द्धन किया।
साधना के क्षेत्र में भी उपर्युक्त चारों मनोवृत्तियां देखी जा सकती हैं। कुछ साधक प्रतिकूल परिस्थिति आते ही सन्तुलन खो देते हैं, स्वीकृत महाव्रतों का परित्याग कर देते हैं। कुछ व्रत ग्रहण करके भी अपनी आसक्ति का परित्याग नहीं कर पाते अत: परमार्थपथ में अपनी वरीयता स्थापित नहीं कर पाते। कुछ साधक रोहणी के समान नया विकास करते हैं, प्रगति में पुरुषार्थ का नियोजन करते हैं। भिन्न भिन्न देश, काल और भाषाओं में इस कथा का संक्रमण हुआ है।
वृत्तिकार ने निगमन गाथाओं में इसके विभिन्न पात्रों की प्रतीक योजना प्रस्तुत की है--
प्रतीक
गुरु
पात्र धन सार्थवाह जातिजन पांच शालिकण उज्झिता भोगवती रक्षिता रोहिणी
श्रमणसंघ पंच महाव्रत मोह के वशीभूत होकर महाव्रतों का त्याग करने वाला साधक जीविकोपार्जन, आहार आदि के लिए महाव्रतों का पालन करने वाला साधक महाव्रतों का निरतिचार पालन करने वाला साधक तीर्थप्रभावना में कुशल साधक ।
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