Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण
सूत्र २
१. मृतगंगातीरहृद (मयंगतीरद्दहे)--
वृत्तिकार के अनुसार मृतगंगा का अर्थ है-वह प्रदेश, जहां कभी गंगा बहती थी। वर्तमान में उसका रास्ता बदल गया हो।'
उत्तराध्ययन चूर्णि और सर्वार्थसिद्धि के अनुसार गंगा प्रतिवर्ष नये-नये मार्ग से समुद्र में जाती है। जो मार्ग चिर-त्यक्त हो, जो मार्ग बहते-बहते गंगा ने छोड़ दिया हो--उसे 'मृत-गंगा' कहा जाता है।
द्रष्टव्य उत्तरज्झयणाणि १३/६
सूत्र ७ २. जब मनुष्यों का गमनागमन कम हो गया (पविरलमाणुसंसि)
ऐसा क्षेत्र जहां सन्ध्या के पश्चात् आते-जाते लोग विरल ही दिखाई दें। ३. घर से बाहर गये लोग जब पुन: अपने-अपने घरों में लौट आए (निसंत पडिनिसंतसि)
जब घर से बाहर गये लोग थक जाने पर भ्रमण से विरत हो, पुन: अपने घरों में लौट विश्राम करने लगे हों। तात्पर्य की भाषा में-जब पथ अत्यन्त जन-संचार-शून्य हो गये हों।
१. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१०४--मयंगतीरदहे त्ति-मृतगंगातीरहृद: मृतगंगा यत्र देशे
गंगाजलं व्यूढमासीदिति। २. (क) उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ २१५ --मतगंगा-हेट्ठाभूमीए गंगा, अण्णमण्णेहिं
मग्गेहि जेण पुव्वं वोढूणं पच्छा ण वहति सा मतगंगा भण्णति । (ख) सर्वार्थसिद्धि, पृष्ठ २६१--
गंगा वहति पाथोधिं, वर्षेऽपराध्वना। वाहस्तत्र चिरात् त्यक्तो, मृतगंगे ति कथ्यते।।
३. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१०५
पविरलमाणुस्ससि--प्रविरलं किल मानुषं सन्ध्याकाले यत्र तत्र देशे। ४. वही--निशान्तप्रतिनिशान्ते--अत्यन्तं भ्रमणाद्विरते निशान्तेषु वा गृहेषु
प्रतिनिश्रान्ते--विश्रान्ते निलीने अत्यन्तजनसञ्चारविरह इत्यर्थ ।
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