Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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उक्खेव पदं
१. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, चउत्यस्स णं भते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ?
२. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी होत्या वण्णओ ।।
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चउत्थं अज्झयणं : चौथा अध्ययन
कुम्मे : कूर्म
३. तीसे णं वाणारसीए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गंगाए महानईए मयंगतीरद्दहे नामं दहे होत्था - अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजले अच्छ-विमल सलिल पलिच्छपणे संछष्ण-पतपुष्क- पलासे बहुउप्पल-पम- कुमुय नलिण- सुभग सोगंधियपुंडरीय महापुंडरीय सयपत्त-सहरसपत्त - केसरपुप्फोवचिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे परूिवे ।।
४. तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छभाण य गाहाण य मगराण य सुंसुमाराण य सयाणि य सहस्साणि य सयसहस्साणि य जूहाई निब्भयाइं निरुव्विग्गाई सुहंसुहेणं अभिरममाणाइं-अभिरममाणाइं विहरति ॥
५. तस्स णं मयंगतीरदहस्स अदूरसामते, एत्य णं महं एगे मालुवाकच्छए होत्या वण्णओ ।।
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पावसियालग-पदं
६. तत्व णं दुवे पावसियालगा परिवसति पावा चंडा रुदा तल्लिच्छा साहसिया लोहियपाणी आमिसत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमिसलोला आमिसं गवेसमाणा रत्तिवियालचारिणो दिया पच्छन्नं या विचिति ।।
कुम्भ-पदं
७. तए णं ताओ मयंगतीरद्दहाओ अण्णया क्याइं सूरियंसि चिरत्यमियसि लुलियाए संझाए पविरलमाणुसंसि निसंत-पडिनिसंतंसि समा
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उत्क्षेप-पद
१. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञातधर्मकथा के तीसरे अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है तो भन्ते! तधर्मकथा के चौथे अध्ययन
का उन्होंने क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है?
२. जम्बू! उस काल और उस समय वाराणसी नाम की नगरी थी-वर्णक ।
३. उस वाराणसी नगरी के ईशान कोण में महानदी गंगा से निःसृत मृतगंगातीरहृद' नाम का हृद था। वह उत्तरोत्तर सुन्दर तट वाला, अगाध और शीतल जल वाला, स्वच्छ और विमल जल से भरा हुआ, पद्मिनी दल और कुसुम दल से आच्छादित प्रफुल्ल और केशरप्रधान, नाना उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र और सहस्रपत्र कमलों से उपचित मन को आह्लादित करने वाला, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय था।
४. उस हद में बहुत प्रकार के मत्स्य, कच्छप, ग्राह (मगर विशेष ) मगर (हिंसक जलचर प्राणी) और सुंसुमारों के सैकड़ों, हजारों और लाखों यूथ निर्भय, निरुद्विग्न सुखपूर्वक अभिरमण करते-करते विहार करने लगे ।
५. उस मृतगंगातीरहद के न दूर, न निकट एक महान् मालुकाकक्ष था- वर्णक ।
पाप शृगालक-पद
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६. वहां दो दुष्ट शृगाल रहते थे। वे दुष्ट, चण्ड, रुद्र पाप-लिप्सु, साहसिक, लोहित पाणि, मांसार्थी, मांसाहारी, मांसप्रिय और मांसलोलुप थे अतः वे मांस की खोज में रात्रि के समय तथा सन्ध्याकाल में घूमते और दिन में प्रच्छन्न रहते थे ।
कूर्म - पद
७. किसी समय जब सूर्यास्त हुए बहुत समय हो चुका, रात गहरा गई, जब मनुष्यों का गमनागमन कम हो गया, घर से बाहर गये लोग
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