Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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प्रथम अध्ययन : टिप्पण ३२-४०
३२. कपोलों पर खचित रेखाएं (गण्ड लेहा )
प्राचीनकाल में स्त्रियां सौन्दर्यवर्धन के लिए कपोतों पर कस्तूरी आदि की रेखाएं अक्ति करती थी। उसे विशेषक भी कहा जाता था। जैनागमों के अनुसार पुरुष और स्त्रियां दोनों ही स्नानोपरान्त कौतुक कर्म/ दृष्टिदोष आदि से बचने के लिए कज्जल आदि का चिह्नांकन करते थे। उसमें अन्तर इतना था कि पुरुष मात्र अनिष्ट परिहार के लिए वैसा करते ये और स्त्रियां सौन्दर्य प्रसाधन की दृष्टि से भी वैसा करती थीं।
सूत्र १८
३३. अलिंद (छक्कट्ठग)
घर के बाहर का अलिंद छह काष्ठ खण्डों से निर्मित होता था, इसलिए कारण का कार्य में उपचार होने से अलिंद भी षट्काष्ठ कहलाने लगा । २
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वृतिकार ने वैकल्पिक रूप से अन्य मत को प्रदर्शित करते हुए छक्क को द्वार का विशेषण भी माना है--जो छह काष्ठ खण्डों से निर्मित होता था।
मतान्तर से स्तम्भ का विशेषण भी माना है।
३४. मांगलिक प्रवर स्वर्ण कलशों (वंदण वरकणमकलस) कुछ प्रतियों में बंदण के स्थान पर चंदन लिखा हुआ मिलता है। लगता है ऐसा लिपि दोष से हुआ है। वृतिकार ने बंदण पाठ मानकर ही व्याख्या की है। वंदण का अर्थ है-- मांगलिक ।
३५. मलय चन्दन (मलय चंदण)
मलय पर्वत पर होने वाला चन्दन। प्राचीन काल में सबसे अच्छा चन्दन मलेशिया में होता था, उसका भारत में आयात भी होता था। हो सकता है 'गन्धवर्ती जैसा' - यह उसी ओर संकेत है ।
३६. गंधवर्तिका के समान (गन्धवट्टिभूए)
गन्धवर्ती का अर्थ है सुगन्धित द्रव्यों की गुटिका अथवा कस्तूरी की गुटिका । प्रवर सुरभित द्रव्यों से सुगन्धित होने के कारण वह प्रासाद ऐसा लगता था मानो साक्षात् गन्धवर्तिका ही हो।"
३७. शरीर प्रमाण उपधान रखे हुए थे (सालिंगणवट्टिए) निशीथ चूर्णि के अनुसार आलिंगिणी का अर्थ है घुटने और कोहनी
१. ज्ञातावृत्ति पत्र १५ गण्डलेखाः कपोलविरचितमृगमदादिरेखा। २. ही गृहस्थ बाह्यानन्दकं बहूदाकमिति ।
३. वही द्वारयिन्ये।
४. वही स्तम्भविशेषणमिदमित्यन्ये।
५. ज्ञातावृत्ति, पत्र - १६ - - वन्द्यन्त इति वन्दना - मंगल्या: ये वरकनकस्य
कलशाः ।
६. वही, पत्र - १६, १७ -- मलयचन्दनं च पर्वतविशेषप्रभवं श्रीखण्डम् ।
७. वही- गन्धवर्ति:-गन्धद्रव्यगुटिका कस्तूरिका वा गन्धस्तद् गुटिका गन्धवर्तिः ।
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के नीचे लगाया जाने वाला एक प्रकार का उपधान। "
वाला।
नायाधम्मकाओ
उसके अनुसार इसका अर्थ होना चाहिए -- गोल आलिंगनो ( तकिए )
३८. पतले, मूलदार उनी रोएंदार कम्बल (अत्थरप-मलयनवतय- कुसत्त - लिंव-सीहकेसर )
ये सारे विभिन्न प्रकार के आस्तरणों के नाम है, जो बिछौनों पर चादरों के रूप में बिछाए जाते थे ।"
आस्तरक, मलक और कुशक्त - ये उस समय के प्रचलित और सामान्यतः काम में आने वाले आस्तरण थे।
नवतय-- विशेष प्रकार की भेड़ों की ऊन से बना वस्त्र, जिसका लोकप्रचलित नाम है--जीन । १०
निशीय चूर्णि के अनुसार इसका अर्थ है बिना काली हुई ऊन से बना प्रावरण, रोएंदार प्रावरण । १
लिंब - भेड़ के बच्चे की ऊन युक्त चर्म से बना आस्तरण । १२
सिंह केसर सिंह की जटा से बना कम्बल । *
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३९. लाल रंग की मसहरी से संवृत ( रत्तंसुयसंवुए ) वृतिकार ने रक्तांशुक का अर्थ केवल मच्छरदानी किया है। "
सूत्र १९
४०. महास्वप्न (महासुमिणं)
स्वप्न एक मानसिक क्रिया है। वह प्रायः दृष्ट, श्रुत या अनुभूत वस्तु का आता है।
स्वप्न संकलनात्मक ज्ञान है। सबका स्वप्न यथार्थ नहीं होता । जिसके मन, वाणी और अध्यवसाय पवित्र हैं, जो संवृत आत्मा है उसके स्वप्न यथार्थ होते हैं। स्वप्न की अयथार्थता के अनेक हेतु हैं उनमें प्रमुख हैं- दुश्चिन्ता, अनिद्रा, मानसिक मलिनता, आसक्ति अस्वस्थता आदि। पंचतंत्र में बताया गया है-
I
व्याधितेन सशोकेन, चिन्ताग्रस्तेन जन्तुना । कामार्तेनाथ मत्तेन दृष्टः स्वप्न निरर्थकः ॥
रोगी, शोकाकुल, चिन्तातुर, कामातुर और मत्त व्यक्तियों के स्वप्न निरर्थक होते हैं।
८. निशीथ चूर्णि, भाग ३, पृ. ३२१
९. ज्ञातावृत्ति, पत्र - १७ - आस्तरको मलको नवतः कुशक्तो लिम्ब: सिंहकेसरश्चैते आस्तरणविशेषाः ।
१०. वही वस्तु ऊर्जाविशेषमय जीनमिति लोके यदुच्यते। ११. निशीथ चूर्णि, भाग ३, पृ. ३२१
१२. ज्ञातावृत्ति, पत्र -१७-- लिम्बो - बालोरभ्रस्योर्णा युक्ता कृतिः । १३. वही - सिंह- केसरो जटिलकम्बलः ।
१४. वही रक्तांसंवृते मशकगृहाभिधान वस्त्रावृते ।
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