Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आमुख
आत्मा अमूर्त है। शरीर मूर्त है। आत्मा चेतन है। शरीर अचेतन है, पुद्गल है। अज्ञान के कारण आत्मा व शरीर को एक मान लिया जाता है। वास्तव में ये दो हैं। शरीर आत्मा नहीं है। संसारी आत्मा का निवास स्थान है।
आत्मा स्वतंत्र है, पुद्गल भी स्वतंत्र है। दोनों का अपना-अपना मूल्य है। प्रस्तुत अध्ययन का प्रतिपाद्य है--भेद विज्ञान की दृष्टि का निर्माण करना। पदार्थ का जीवन जीएं पर पदार्थ को अपना न मानें। इस दृष्टि का निर्माण होने पर अनासक्त चेतना का विकास होता है।
पौद्गलिक शरीर और आत्मा कर्मों के संयोग से परस्पर सम्बद्ध है, एकीभूत है। वास्तव में भिन्न-भिन्न है।
प्रस्तुत अध्ययन का शीर्षक है--संघाटक। जिसका अर्थ है--एक बेड़ी में बंधना। इससे यही ध्वनित होता है। धन सार्थवाह और विजय तस्कर दोनों स्वतंत्र हैं किन्तु एक बेड़ी में बंधे हुए हैं इस अपेक्षा से एक हैं। दोनों एक 'खोडे' में बंधे होने के कारण एक दूसरे से निरपेक्ष होकर जीवन यापन नहीं कर सकते। वैसे ही कर्म युक्त आत्मा व शरीर एक-दूसरे से सापेक्ष हैं।
धन सार्थवाह यह जानता है कि विजय तस्कर मेरे प्रिय पुत्र देवदत्त का हत्यारा है। वह मेरा प्रत्यनीक है फिर भी एक बंधन में बंधने के कारण मैं उससे निरपेक्ष होकर जीवन यापन नहीं कर सकता। वह अपना मित्र जानकर उसे भोजन नहीं देता किन्तु दैनंदिन कार्य सम्पादन (दह चिन्ता) के लिए भोजन देता है। वैसे ही साधक भी शरीर को अपना नहीं मानता, किन्तु शरीर आत्मा की प्राप्ति में सहायक बनता है। इसलिए शरीर का संपोषण करता है।
पदार्थ अप्रतिबद्ध (अनासक्त) चित्तवृत्ति से पदार्थ का उपयोग करने वाला धन सार्थवाह की तरह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। पदार्थ प्रतिबद्ध (आसक्त) चित्तवृत्ति से पदार्थ का भोग करने वाला विजय तस्कर की तरह अनर्थ पैदा करता है।
प्रस्तुत अध्ययन से अनेक दृष्टियां उजागर होती हैं-- D पदार्थ सुख का निमित्त बन सकता है किन्तु सुख दे नहीं सकता।
पदार्थ प्रतिबद्ध चेतना के विकास से समस्या का विस्तार होता है। 0 अर्थ अनर्थ का मूल है। 0 भद्रा की तरह यथार्थ का सम्यक् बोध न होने से दुःख होता है। - विजय तस्कर की तरह अमानुषिक प्रवृत्ति करने वाला इहलोक और परलोक में सुखी नहीं हो सकता। प्रस्तुत कथानक की भाषा शैली सहज और सरल है।
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