Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
८. तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स भद्दा नामं भारिया होत्था-सुकुमालपाणिपाया अहीणपडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा लक्खणकंजण-गुणोववेया माणुम्माण - प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय - सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमागार-कंत- पियदंसणा सुरूवा करयल-परिमिय-तिवलियवलियमज्झा कुंडलुल्लिहियगंडलेहा कोमुइ रयणियर पडिपुण्णसोमवयणा सिंगारागार - चारुवेसा संगय-गय-हसिय- भणियविहिय-विलास सललिय संलाव- निउण जुत्तोवयार-कुसला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरुवा वंज्ञा अनियाउरी जाणुकोप्परमाया यानि होत्या ।।
९. तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स पंथए नामं दासचेडे डोल्पा - सब्यंगसुंदरंगे मंसोवचिए बालकीलावणकुलले पावि होत्या ॥
१०. तए णं धणे सत्यवाहे रायगिहे नयरे बहूणं नगर निगम-सेट्ठिसत्यवाहाणं अट्ठारसण्ह य सेणिप्पसेणीणं बहूसु कज्जेसु य कुडुबे य मंतेसु य जाव चक्खुभूए यावि होत्था । नियगस्स विय कुटुंबस्स बहूसु कज्जेसु य जाव चक्खुभूए यावि होत्था ।।
विजयलक्कर पदं
११. तत्य णं रायगि नयरे विजए नाम तक्करे होत्या-पावचंडाल वे श्रीमतररुदकम्मे आवसिय दित्त - रतनपणे सरफल्स-महल- विरायबीभच्छदाढिए असंपुडियउ उदयपइण्ण-संबंतमुद्धए भमर- राहुवण्णे निरणुक्कोसे निरणुतावे दारुणे पइभए निसंसइए निरणुकपे अहीव एगंतदिट्ठीए खुरेव एगंतधाराए गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव सव्वभक्खी जलमिव सव्वग्गाही उक्कंचण-वंचण माया निवड-कूड कवड साइ- संपजोगबहुले चिरनगरविण सीतायारचरिते जयम्पसंगी मज्जण्यसंगी भोज्जप्पसंगी मंसप्पसंगी दारुणे हिययदारए साहसिए संधिच्छेयए उहिए विस्संभघाई आलीवग-तित्थभेय-लहुहत्यसंपत्ते परस्स दव्वहरणम्मि निच्चं अणुबद्धे तिव्ववेरे रायगिहस्स नगरस्स बहूणि अइयमणाणि व निगमणाणि व बाराणि य अवाराणि य छिंडीओ य खंडीओ य नगरनिद्धमणाणि य संवट्टणाणि य निब्बट्टणाणि व जयवलयाणि य पाणावाराणि व वेसागाराणि य तक्करद्वाणाणि य तक्करघराणि य सिंघाडगाणि य तिगाणि य चक्काणि य चच्चराणि य नागघराणि य भूयघराणि य जक्खदेउलागि य सभाणि व पवाणि य पणियसालाणि य सुन्नधराणि
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द्वितीय अध्ययन : सूत्र ८-११
८. उस धन सार्थवाह के भद्रा नाम की भार्या थी । उसके हाथ-पांव सुकुमार थे। उसका शरीर पांचों इन्द्रियों से अहीन, लक्षण और व्यञ्जन की विशेषता से युक्त, मान, उन्मान और प्रमाण से परिपूर्ण, सुजात और सर्वांगसुन्दर था । वह चन्द्रमा के समान सौम्य आकृतिवाली, कमनीय, प्रियदर्शना और सुरूपा थी । उसकी मुट्ठी भर कमर-तीन रेखाओं से युक्त और बलवान थी उसके कपोलों पर सचित रेखाएं कुण्डलों से उल्लिखित हो रही थीं। उसका मुख शारद चन्द्र की भांति परिपूर्ण और सौम्य था । उसका सुन्दर वेष शृंगार घर जैसा लग रहा था । वह औचित्यपूर्ण चलने, हंसने बोलने और चेष्टा करने में विलास और लालित्यपूर्ण संलाप में निपुण और समुचित उपचार में कुशल थी। वह द्रष्टा के चित्त को प्रसन्न करने वाली दर्शनीय, कमनीय और रमणीय थी। वह वन्ध्या, अप्रजननशीला और मात्र अपने घुटनों और कोहनियों की माता थी।
९. उस धन सार्थवाह के पन्थक नाम का दास पुत्र था। उसका शरीर सर्वांगसुन्दर और मांसल था। वह बच्चों को खिलाने में कुशल था ।
१०. राजगृह नगर में बहुत सारे नगर निगम, श्रेष्ठी और सार्थवाहों के तथा अठारह श्रेणियों और प्रश्रेणियों के बहुत सारे कार्यों, कर्तव्यों और मंत्रणाओं में उसका मत पूछा जाता था यावत् वह चक्षु के समान था । अपने 'कुटुम्ब के भी बहुत सारे कार्यों में उसका मत पूछा जाता था यावत् वह चक्षु के समान था ।
विजय- तस्कर पद
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११. उस राजगृह नगर में विजय नाम का एक चोर था। वह पापी चाण्डाल जैसा और भीतर रुद्र कर्म करने वाला था। उसकी आंखें रोषपूर्ण, जलती हुई और लाल रहती थीं। दाढी कठोर, रूखी, लम्बी, विकृत और बीभत्स थी। होठ खुले रहते तथा लटकते और बिसरे हुए बाल हवा में उड़ते रहते थे। उसका रंग भरे और राहु जैसा काला था । वह क्रूर कर्म करने में सकुचाता नहीं और करने पर उसे पछतावा भी नहीं होता था। वह दारुण, भय उत्पन्न करने वाला, निःशंक, अनुकम्पा शून्य, सांप की भांति (लक्ष्य पर) एकान्त ( निश्चयपूर्ण ) दृष्टि वाला क्षुर की भांति एकान्त धार वाला गीध की भांति मांस लोलुप, अग्नि की भांति सर्वभक्षी, जल की भांति सर्वग्राही और उत्कंचन, वंचना, माया, निकृति, कूट, कपट और वक्रता का प्रचुर प्रयोग करने वाला था। वह चिरकाल तक नगर में भूमिगत रहता था। उसका शील, आचार और चरित्र दुष्ट था। वह द्यूत, मद्य, भोज्यपदार्थ और मांस में अति आसक्त रहता था। वह दारुण, हृदय विदारक, बिना सोचे समझे काम करने वाला, सेंध लगाने वाला, प्रच्छन्न विहारी, विश्वासघाती, आग लगाने और जलाशयों को तोड़ने में हस्तलाघव का प्रयोक्ता, दूसरों का धन चुराने में नित्य अनुबद्ध
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