Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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द्वितीय अध्ययन : टिप्पण ८-१३ ८. नागप्रतिमाओं यावत् वैश्रवण प्रतिमाओं (नागपडिमाण य जाव ११. बालक-बालिकाओं........... कुमारियों के साथ (डिभिएहि.. वेसमण -पडिमाण)
......... कुमारियाहि) प्राचीनकाल में वाञ्छित पूर्ति के लिए अनेक देवों की प्रतिमा पूजी डिभंक, दारक और कुमार--ये बच्चों की विभिन्न अवस्था कृत जाती थी। प्रस्तुत प्रकरण में आठ प्रतिमाओं का उल्लेख है-- पर्यायों के द्योतक हैं। १. नाग प्रतिमा २. भूत प्रतिमा ३. यक्ष प्रतिमा ४. इन्द्र प्रतिमा ५. स्कन्द प्रतिमा ६. रुद्र प्रतिमा ७. शिव प्रतिमा ८. वैश्रवण प्रतिमा।
सूत्र २८ उत्तरकाल अथवा पुराणकाल में इनके स्थान पर दूसरे देव और १२. मूर्च्छित, ग्रथित, गृद्ध और अध्युपपन्न (मुच्छिए......... देवियों की पूजा होने लगी। नाग आदि की प्रतिमाओं के पूजन की प्रथा अज्झोववण्णे) लौकिक थी। इनका किसी धर्म या सम्प्रदाय से सम्बन्ध नहीं था।
ये शब्द आसक्ति के कारण होने वाली विभिन्न चैतसिक अवस्थाओं
के द्योतक हैं-- ९. पूजा, दाय, भाग और अक्षयनिधि (जायं च दायं च भायं च मूर्छित--विवेक चेतना शून्य । अक्खयणिहिं च)
ग्रथित--लोभ के तन्तुओं से बंधा हुआ। भद्रा सार्थवाही अपने इष्ट की पूर्ति होने पर प्रतिदान का संकल्प गृद्ध--आकांक्षावान। करती है। प्रतिदान के लिए इतने शब्दों का प्रयोग किया गया है
अध्युपपन्न--तद्विषयक अधिक एकाग्रता को प्राप्त।' जायं--याग-यज्ञ, पूजा।
द्रष्टव्य--ठाणं पृष्ठ ६१४ दायं--पर्व दिन आदि में दिया जाने वाला दान । भायं--लाभांश
सूत्र ६० अक्षयनिधि--स्थायी कोष (Fix Deposit)।
१३. (सूत्र ६०)
प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त दास, प्रेष्य भूतक और भाइल्लग (भागीदार) सूत्र १४
ये सामान्यत: नौकर के पर्यायवाची शब्द हैं, फिर भी इनमें अवस्था कृत १०. गीली साड़ी (उल्लपडसाडिगा)
भेद हैं। वृत्तिकार के अभिमत से इनके अर्थ ये हैं-- स्नान के कारण गीले उत्तरीय और परिधान वस्त्र पहने हुए। दास--घर की दासी का पुत्र।
गीले कपड़ों से देवता की पूजा और याचना सफल होती है, इससे प्रेष्य--विशेष प्रयोजन उपस्थित होने पर दूसरे गांव, नगर यह ध्वनित होता है।
आदि भेजकर जिससे काम कराण जाता है। भूतक- वे नौकर जो बचपन से ही पाल पोषकर बड़े किये गये हों। भाइल्लग-भागीदार, जो आय का हिस्सा बंटाते है।
१. ज्ञातावृत्ति, पत्र-८९--यागं--पूजां दायं--पर्वदिवसादौ दानं, भाग--लाभांशं,
अक्षयनिघि-अव्ययं भाण्डागारं अक्षयनिधि वा--मूलधनं येन
जीर्णीभूतदेवकुलस्योद्धार: करिष्यते। २. वही--उल्लपडसाडय त्ति--स्नानेनाट्टै पटशाटिके-उत्तरीय परिधानवस्त्रे
यस्या सा। ३. वही--डिम्भदारककुमारकाणामल्पबहुबहुतरकालकृतो विशेषः ।
४. वही, पत्र-९१--मूर्च्छितो--मूढो गतविवेकचैतन्य इत्यर्थः ।
ग्रथितो--लोभतन्तुभिः संदर्भितः ।
गृद्धः--आकांक्षावान्।
अभ्युपपन्न:--अधिकं तदेकाग्रतां गत इति। ५. वही, पत्र-९५ --दासा:-गृहदासी पुत्राः, प्रेष्या:--ये तथाविधप्रयोजनेषु
नगरान्तरादिषु प्रेष्यन्ते, भृतका:--ये आबालत्वात् पोषिताः, भाइल्लग त्ति--ये भागं लाभस्य लभन्ते ।
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