Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण
सूत्र ६
माया--दूसरों को छलने की बुद्धि । १. मालुकाकक्ष (मालुयाकच्छए)
निकृति--बक वृत्ति से गिरहकट आदि की भांति रहना।" वृत्तिकार ने मालुकाकक्ष का प्रज्ञापना सम्मत अर्थ स्वीकार किया कूट--तोल, माप सम्बन्धी न्यूनाधिकता।' है। उसके अनुसार मालुकाकक्ष का अर्थ है--ऐसे वृक्षों का जंगल जिन के कपट-वेशभूषा और भाषा के विपर्यय से दूसरों को ठगना।' फलों में एक गुठली होती है। जीवाभिगम चूर्णिकार ने इसका अर्थ ककड़ी का क्षेत्र स्वीकार किया ५. वक्रता का प्रचुर प्रयोग करने वाला (साइसंपओगबहुले)
साचि का अर्थ है--वक्रता का समाचरण।
मूल पाठ में 'साइ' शब्द है। इसके संस्कृत रूप दो बन सकते सूत्र ११
हैं--'साचि' और 'साति' २. सांप की भांति एकान्त दृष्टि वाला (अहीव एगंतदिट्ठीए)
वृत्तिकार ने पहली व्याख्या 'साति संप्रयोग' मानकर की है। अर्थात् मुझे यह ग्रहण करना ही है इस प्रकार की निश्चयात्मक दृष्टि, उत्कञ्चन से लेकर कपट तक की वृत्ति का सातिशय-बहुत प्रयोग करने सांप की तरह एकान्त दृष्टि वाला।
वाला। द्रष्टव्य अध्ययन १, सूत्र ११२ का टिप्पण
दूसरा अर्थ है--सातिशय द्रव्य--कस्तूरी आदि का अन्य द्रव्य के
साथ प्रयोग करना सातिसंप्रयोग है, जैसे-- ३. क्षुर की भांति एकान्तधार वाला (खुरेव एमंतधाराए)
सो होइ साइजोगो, दव्वं जं छुहिय अन्नदव्वेसु । जैसे क्षुर एकान्तधार वाला होता है, जिस वस्तु को काटना या
दोसगुणा वयणेसु य, अत्थविसवायणं कुणइ।।१ छीलना होता है, उसे वह निश्चित ही छील डालता है वैसे ही चोर की परोपताप प्रधान वृत्ति को धार माना गया है, वह जिसके यहां चोरी करना ६. जिसका शील, आचार व चरित्र दुष्ट हो (ट्ठसीलायारचरित्ते) ठान लेता है, उसके चोरी करके ही रहता है।
यहां मनोवैज्ञानिक तथ्य अभिव्यक्त हुआ है। व्यक्ति का जैसा
स्वभाव होता है, वह भावधारा उसकी आकृति पर परिलक्षित हो जाती है। ४. उत्कंचन, वंचना, माया, निकृति, कूट, कपट (उक्कंचण.......
जैसी आकृति होती है, वैसी ही उसकी प्रवृति होती है। अर्थात् वृत्ति, आकृति ....कवड)
और प्रवृत्ति--इन तीनों का गहरा सम्बन्ध है। ये एक-दूसरे को प्रभावित उत्कंचन से साचि तक के शब्द माया के पर्यायवाची हैं। किन्तु करते है। टीकाकार ने इन सबका अर्थ-विश्लेषण किया है-- उत्कंचन--यह माया का एक प्रकार है। विक्रेय वस्तु का अधिक
सूत्र १२ मूल्य वसूलने के लिए गुणहीन पदार्थ के गुणों का उत्कर्ष प्रतिपादित ७. कुटुम्बजागरिका (कुंडुबजागरियं) करना।
कुटुम्ब की चिन्ता के कारण या कर्तव्य-चिन्ता के कारण नींद का वंचन--दूसरों को छलना।
उचट जाना। १. ज्ञातावृत्ति, पत्र-८४--मालुकाकच्छाए त्ति--एकास्थिफला: वृक्षविशेषाः ६. वही--माया--परवञ्चनबुद्धिः ।
मालुका: प्रज्ञापनाभिहितास्तेषां कक्षो गहनं मालुकाकक्षः, चिर्भटिकाकच्छक ७. वही-निकृति:-बकवृत्या गलकर्तकानामिवावस्थानम् । इति तु जीवाभिगमचूर्णिकारः।
८. वही-कूटं--कार्षापणतुलादे: परवञ्चनार्थ न्यूनाधिककरणम्। २. वही, पत्र-८६--अहिरिव एकान्ता ग्राह्यमेवेदं मयेत्येवमेव निश्चया दृष्टिर्यस्य ९. वही--कपट--नेपथ्यभाषाविपर्ययकरणं। स तथा।
१०. वही ३. वही--'खुरेव एगन्तधाराए त्ति--एकत्रान्ते--वस्तुभागेऽपहर्तव्य-लक्षणे १. वही
धारा परोपतापप्रधान वृत्तिलक्षणा यस्य स तथा, यथा क्षुरप्र:--एकधारः, १२. वही--दुष्टं शीलं--स्वभाव: आकार:--आकृतिश्चरित्रं च--अनुष्ठानं यस्य
मोषकलक्षणैकप्रवृत्तिक एवेति भावः । ४. वही--ऊर्ध्वंकंचनं मूल्याद्यारोपणार्थ उत्कञ्चनं हीनगुणस्य गुणोत्कर्ष- १३. वही, पत्र-८९--कुटुंबजागरियं-कुटुम्बचिन्ताया जागरण--निद्राक्षय: कुटुम्बप्रतिपादनमित्यर्थः।
जागरिका। ५. वही--कञ्चनं--प्रतारणम् ।
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