Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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द्वितीय अध्ययन : सूत्र ३३-३९ उसका खाना-पीना बंद कर दिया। बंदकर तीनों सन्ध्याओं में उसे चाबुक, चिकनी चाबुक और बेंतों के प्रहार से पीटते।
देवदिन्नस्स नीहरण-पदं ३४. तए णं से धणे सत्थवाहे मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-
परियणेणं सद्धिं रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरस्स महया इड्ढीसक्कार-समुदएणं नीहरणं करेति, करेत्ता बहूई लोइयाई मयगकिच्चाई करेति, करेत्ता केणइ कालंतरेणं अवगयसोए जाए यावि होत्था ।।
देवदत्त का निर्हरण-पद ३४. धन सार्थवाह ने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों
के साथ रोते, कलपते और विलाप करते हुए महान ऋद्धि और सत्कार-समुदय के साथ बालक देवदत्त के शव का निर्हरण किया। करके अनेक लौकिक मृतक कार्य सम्पन्न किए, सम्पन्न कर कुछ समय पश्चात् वह शोक-मुक्त हुआ।
धणस्स निग्गह-पदं
धन का निग्रह-पद ३५. तए णं से धणे सत्थवाहे अण्णया कयाई लहुसयंसि रायावराहसि ३५. किसी समय धन सार्थवाह भी किसी साधारण से राजकीय अपराध में संपलित्ते जाए यावि होत्था।
फंस गया।
३६. तए णं ते नगरगुत्तिया धणं सत्थवाहं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव
चारइ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता चारगं अणुप्पवेसंति, अणुप्पवेसित्ता विजएणं तक्करेणं सद्धिं एगयओ हडिबंधणं करेति ।।
३६. उन नगर-आरक्षकों ने धन सार्थवाह को पकड़ लिया। उसे पकड़ कर
जहां कारागृह था वहां आए। आकर कारागृह में प्रविष्ट हुए। प्रविष्ट होकर उसे विजय तस्कर के साथ एक ही हडि-बन्धन--काठ की जंती में डाल दिया।
घणस्स घराओ आहाराणयण-पदं ३७. तए णं सा भद्दा भारिया कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव
उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेइ, भोयणपिडयं करेइ, करेत्ता भोयणाई पक्खिवइ, लंछिय-मुद्दियं करेइ, करेत्ता एगं च सुरभि (वर?) वारिपडिपुण्णं दगवारयं करेइ, करेत्ता पंथयं दासचेडयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! इमं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं गहाय चारगसालाए धणस्स सत्थवाहस्स उवणेहि।
धन के घर से आहार-आनयन-पद ३७. उषाकाल में, पौ फटने पर, यावत् सहस्ररश्मि दिनकर, तेज से
जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर आ जाने पर भद्रा सार्थवाही ने विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार किया। एक भोजन पिटक (टिफिन) बनाया। बनाकर उसमें भोजन रखा। उसे लाञ्छित किया, मुद्रित किया--उस पर मुहर लगाई। मुद्रित कर सुगन्धित (प्रवर?) जल से एक झारी भरी। भरकर दास पुत्र पन्थक को बुलाया। उसे बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय ! तुम यह विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य ले कर जाओ, कारागृह में धन सार्थवाह को दे दो।
३८. तए णं से पंथए भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ते समाणे हट्टतुढे तं भोयणपिडयंतं च सुरभिवरवारिपडिपुण्णं दगवारयं गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नगरं मझमझेणं जेणेव चारगसाला जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणपिडयं ठवेइ, ठवेत्ता उल्लंछेइ, उल्लंछेत्ता भोयणं गेण्हइ, गेण्हित्ता भायणाई ठावइ, ठावित्ता हत्थसोयं दलयइ, दलइत्ता धणं सत्थवाहं तेणं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं परिवेसेइ ।।
३८ भद्रा सार्थवाही के ऐसा कहने पर हृष्ट, तुष्ट हुए पन्थक ने उस
भोजन-पिटक और उस सुगन्धित प्रवर जल से भरी झारी को लिया, अपने घर से निकला। घर से निकलकर, राजगृह नगर के बीचोंबीच होता हुआ, जहां कारागृह था, जहां धन सार्थवाह था, वहां आया। आकर भोजन पिटक रखा, रखकर उसे खोला। खोलकर भोजन निकाला, निकालकर (खाने के) बर्तन रखे। रखकर (धन के) हाथ धुलाए। हाथ धुलाकर धन सार्थवाह को विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य परोसा।
विजयतक्करेण संविभागमग्गण-पदं ३९. तए णं से विजए तक्करे धणं सत्थवाहं एवं वयासी-तुब्भे णं
विजय तस्कर द्वारा संविभाग-मार्गणा-पद ३९. वह विजय तस्कर धन सार्थवाह से इस प्रकार बोला--देवानुप्रिय !
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