Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
८५
थे।
नायाधम्मकहाओ
प्रथम अध्ययन : टिप्पण ११९-१२७ हैं, किन्तु भेद की विवक्षा करने पर इनके स्वतन्त्र वाच्यार्थ हैं,
सूत्र १५८ जैसे--प्राण-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय प्राणी।
१२४. काननों, वनों, वनषण्डों, वनराजियों (काणणेसु वणेसु वणसंडसु भूत-तरुगण । जीव-पंचेन्द्रिय । सत्त्व-शेष सब जन्तु ।'
वणराईस)
कानन--स्त्रीवर्ग अथवा पुरुषवर्ग में से किसी एक पक्ष के लिए सूत्र १५४
उपभोग्य वन प्रदेश । अथवा जिस वन प्रदेश से आगे पर्वत या अटवी हो, १२०. कारण और व्याकरण (कारणाई वागरणाई)
अथवा जहां जीर्ण वृक्ष समूह हो।' कारण--युक्ति या हेतु का कथन करना।
वन--एक जातीय वृक्षावलि से शोभित प्रदेश। व्याकरण--दूसरे के द्वारा प्रश्न उपस्थित करने पर उत्तर देना।
वनषण्ड--अनेक जातीय वृक्षावलि से शोभित प्रदेश । १२१. प्रस्तुत सूत्र (सूत्र १५४) में मेघमुनि की संप्रेक्षा बतलाई गई है कि
वनराजि--एक जातीय और अनेक जातीय वृक्षावलियों वाला प्रदेश ।" 'मैं प्रभात होते ही श्रमण भगवान महावीर को पूछकर पुन: घर चला
सूत्र १५९ जाऊं।' यह सोच वे आर्तध्यान के वशीभूत हो गये। वह रात उनके लिए १२५. ज्येष्ठ मास में (जेट्ठामूलेमासे) नरक सदृश हो गयी। ..
इस मास के मूल में ज्येष्ठा नक्षत्र रहता है अत: ज्येष्ठा नक्षत्र के इसका मूल दशवैकालिक में उपलब्ध होता है। संयम में रत आधार पर इस मास का नाम ज्येष्ठा मूल होता है।१२ महर्षियों के लिए मुनि-पर्याय देवलोक के समान सुखद होता है और संयम
सूत्र १६० में रत नहीं होते उनके लिए वही (मुनि-पर्याय) महानरक के समान दु:खद
दुःखद १२६. शुष्क उद्विग्न (तसिए उव्विग्गे) होता है।'
तसिए देशी शब्द है। वृत्तिकार के अनुसार यह उस स्थिति का मनि मेघ भी वर्तमान में इसी स्थिति का अनुभव कर रहे दोतक है जहां प्राणी का आनन्द-रस सर्वथा सूख जाता है।
भय की अवस्था में होठ और कंठ सूख जाते हैं। इसीलिए 'तसिए'
का सूखा' अर्थ प्रासंगिक है। सूत्र १५६
उद्विग्न का भावार्थ है 'इस अनर्थ से कैसे छुटकारा होगा' इस प्रकार १२२. सौम्य (सोम) सौम्य का अर्थ है--अरौद्र आकृति वाला अथवा निरोग।
के अध्यवसाय वाला।
सूत्र १६१ सूत्र १५७
१२७. तत्काल क्रोध से तमतमा उठा .......... और क्रोध से १२३. छोटे शिशुओं ...... कार्य नियोजक (लोट्टएहि ......पट्टवए)
नियोजक (लोट्टएहि ......पट्टवए) प्रज्ज्वलित होकर (आसुरते..........मिसिमिसेमाणे) लोट्टय--यह देशी शब्द है। इसका अर्थ है कुमारावस्था वाला ये क्रोध की उत्पत्ति और अभिव्यक्ति की क्रमभावी अवस्थाएं हैं। हाथी। कलभ--३० वर्ष का हाथी।
१. आसुरत्त--क्रोध से तमतमाना, क्रोध से लाल हो जाना। वृत्तिकार ने कलभ का अर्थ बालक अवस्था वाला हाथी किया है। वृत्तिकार के अनुसार आकृति या शरीर में क्रोध के चिह्न उभर आना। किन्तु अभिधान चिन्तामणि में हाथी के पांच वर्ष के बच्चे का नाम बाल २. रुष्ट--अन्त:करण में क्रोध का उत्पन्न होना। मुद्रा और भाव किया गया है।
का गहरा सम्बन्ध है। मन पर जैसे भाव उभरते हैं वैसी ही मुद्रा का पागड्ढी--इसका संस्कृत रूप प्राकर्षी बनता है। इसका अर्थ निर्माण हो जाता है अथवा जैसी मुद्रा बनती है उसी के अनुरूप भाव उतर है--आगे चलने वाला।
आते हैं। आसुरत्त को मुद्रा का सूचक और रुष्ट को भाव का सूचक मानने पट्ठवए--प्रस्थापक--विविध कार्यों में प्रवृत्ति कराने वाला। पर उक्त तथ्य की संगति हो जाती है। १. ज्ञातावृत्ति, पत्र-६७--
८. वही--काननेषु च-स्त्री पक्षस्य पुरुषपक्षस्य चैकतरस्य भोग्येषु वनविशेषेषु, प्राणा द्वित्रिचतुः प्रोक्ताः, भूतास्तु तरव: स्मृताः ।
___ अथवा-यत्परत: पर्वतोऽटवी वा भवति तानि काननानि जीर्णवृक्षाणि वा। जीवा: पंचेन्द्रिया ज्ञेयाः, शेषाः सत्त्वा उदीरिताः।।
९. वही--वनेषु च-एकजातीयवृक्षेषु। २. वही--कारणानि उपपत्तिमात्राणि, व्याकरणानि-परेण प्रश्ने कृते उत्तराणि। १०. वही--वनखण्डेसु च-अनेकजातीयवृक्षेषु । ३. नायाधम्मकहाओ १/१५४--निरयपडिरूवियं चणंतं रयणिं खवेइ ११. वही--वनराजीषु च-एकानेकजातीयवृक्षाणां, पंक्तिषु । ४. दसवेआलियं चूलिका १/१०
१२. वही--ज्येष्ठा मूलमासेत्ति ज्येष्ठमासे। ५. ज्ञातावृत्ति, पत्र-७१--सौम्य: अरौद्राकारो नीरोगो वा।
१३. वही पत्र ७३-- तसिए' त्ति शुष्क आनन्दरसशोषात् । ६. वही, पत्र-७२--लोट्टका:-कुमारकावस्था:, कलभा:--बालकावस्थाः। १४. वही--कथमितौ अनर्थान्मोक्ष्येऽहमित्यध्यवसायवान् । ७. वही--प्राकर्षी--प्राकर्षको अग्रगामी, प्रस्थापको--विविधकार्येषु प्रवर्तको।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org