Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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हो।
सूत्र २०
नायाधम्मकहाओ
प्रथम अध्ययन : टिप्पण ४१-४८ ४१.धारा से आहत कदम्ब कुसुम की भांति (धाराहयकलंबपुप्फगं पिव) ४५. शतपाक सहस्रपाक (सयपागसहस्सपागेहिं)
___ कदम्ब पुष्प मेघधारा से आहत होने पर रोमांचित जैसा हो जाता शतपाक और सहस्रपाक तैल प्राचीन समय के प्रभावशाली औषधीय है। इसीलिए रोमांचित व्यक्ति को इससे उपमित किया जाता है। सूत्र २० । गुणों से भरपूर तैल थे। वे बहुत मूल्यवान होते थे। इसलिए जन सामान्य में धाराहयनीवसुरभिकुसुम वाक्य का प्रयोग है।
को उपलब्ध नहीं होते थे। इनका अर्थ इस प्रकार है-- कदम्ब व्रज प्रदेश का सुप्रसिद्ध फलदार वृक्ष होता है। यह भारत
शतपाक--जिसे सौ बार आंच में उकाला जाए। वर्ष के अतिरिक्त नेपाल की तराई, हिमालय की तलहटी, बर्मा के पूर्वी और
जिसका मूल्य सौ कार्षापण हो। उत्तरी पश्चिमी घाटी के दक्षिणी भाग में होता है। ब्रज में यमुना के
जो सौ प्रकार की औषधियों के मिश्रण से निर्मित किनारे-किनारे वर्षा से ये वृक्ष हल्के पीले रंग के गोलाकार फूलों से लद जाते हैं, लाल फूल भी होते हैं। व्रज में कदम्ब की अनेक जातियां हैं--श्वेत, इसी प्रकार हजार बार उकालने, हजार प्रकार की औषधियों के पीताभ और लाल। पुष्प जाति में पांच प्रकार के पुष्प श्रेष्ठ माने जाते मिश्रण से निर्मित अथवा हजार कार्षापण मूल्य वाला तैल सहस्रपाक हैं--गेंदा, हजारा, गुलाब, बेला और कदम्ब ।
कहलाता है।
ये तैल धातु साम्य व अग्नि दीपन करने वाले, बल-वीर्य बढ़ाने
वाले, मांस को पुष्ट करने वाले तथा सब इन्द्रियों एवं अवयवों को ४२. शूर, वीर विक्रमशाली (सूरे वीरे विक्कते)
आल्हादित करने वाले माने जाते थे।" ये तीनों शब्द आन्तरिक क्षमता के द्योतक होते हुए भी अर्थ की दृष्टि से भिन्न हैं--
४६. अवसरज्ञ, दक्ष, अग्रणी, कुशल, मेघावी निपुण शूर--दान में शूर अथवा संकलित कार्य का निर्वाह करने वाला।
(छेएहिं दक्खेहिं पढेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणेहिं) वीर--युद्ध में विजय प्राप्त करने वाला।
प्रस्तुत सूत्र में मर्दन करने वाले पुरुषों के पांच विशेषण बतलाए
____ गए हैं। प्रस्तुत प्रसंग में इनका अर्थ इस प्रकार करना चाहिए-- विक्रान्त--भूमण्डल की यात्रा करने वाला अथवा भूमण्डल पर विजय पाने वाला।
१. छेक--अवसरज्ञ, मर्दन की शिक्षा के प्रयोग में निपुण । २. दक्ष--मर्दन के कार्य को शीघ्र सम्पादित करने वाला।
३. अग्रणी--मर्दन करने में अग्रगामी। सूत्र २१
४. मेघावी--मर्दन विज्ञान को ग्रहण करने की शक्ति में ४३. स्वप्न जागरिका (सुमिणजागरियं)
निष्ठित। __ स्वप्न विज्ञान के अनुसार स्वप्न दर्शन के पश्चात् सोना वर्जित है
५. निपुण--मर्दन का सूक्ष्म ज्ञान रखने वाला। क्योंकि पुन: सोने से कदाचित् अशुभ स्वप्न आ जाए तो पूर्वदृष्ट शुभ स्वप्न
वृत्तिकार ने इनका व्यापक अर्थ में प्रयोग किया है। का फल प्रतिहत हो जाता है। शुभ स्वप्न दर्शन के पश्चात् मंगलमय चिन्तनपूर्वक समय यापन करने से स्वप्न फल परिपुष्ट होता है। इसीलिए
४७. मर्दन (संबाहणा) हाथी का स्वप्न देखने के पश्चात् धारिणी देवी तत्काल शय्या त्याग कर
मर्दन चार प्रकार का होता था--अस्थिसुखद, मांससुखद, देवता और गुरुजनों से सम्बन्धित प्रशस्त धर्मकथाओं के साथ स्वप्न
त्वचासुखद और रोमसुखद। चिकित्सा पद्धति में मर्दन का विशेष महत्व जागरिका करती है।
रहा है। सूत्र २४
४८. शुभोदक, गन्धोदक, पुष्पोदक और शुद्धोदक (सुहोदएहिं गंधो४४. व्यायामशाला (अट्टणसालं)
दएहिं पुष्फोदएहिं सुद्धोदएहिं) अट्टण नाम के मल्ल द्वारा स्थापित या उसके नाम से स्थापित होने
१. शुभोदक--पवित्र स्थानों से लाया हुआ जल। के कारण उस व्यायामशाला का नाम अट्टणशाला हुआ हो।'
२. गन्धोदक--चन्दन आदि गन्ध द्रव्य मिश्रित जल। अट्टण उज्जयिनी में रहने वाला एक मल्ल था।
१. ज्ञातावृत्ति, पत्र-२०--शूरो दानतोऽभ्युपेतनिर्वाहणतो वा, वीर: संग्रामतः
विकान्तो-भूमण्डलाकमणत: । २. संस्कृत विश्वकोष। ३. व्यवहार भाष्य, भाग १०, टीका पत्र ३-अट्टनो नाम मल्ल: उज्जयिनी-
वास्तव्यः।
४. ज्ञातावृत्ति, पत्र-२४--शतकृत्वो यत्पक्वं शतेन वा कार्षापणानां यत्पक्वं ____ तच्छतपक्वमेवमितरदपि। ५. नायाधम्मकहाओ १/१/२४ ६. ज्ञातावृत्ति पत्र २४, २५ ७. नायाधम्मकहाओ १/१/२४
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