Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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प्रथम अध्ययन : टिप्पण ४८-५३
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नायाधम्मकहाओ ३. पुष्पोदक--पुष्प रस मिश्रित जल, जैसे--गुलाब जल, केवड़ा ७. कौटुम्बिक--अनेक कुटुम्बों के प्रधान, कर्तव्य की चिंता करने आदि से युक्त जल।
वाले। ४. शुद्धोदक--अन्तरिक्ष जल। वृत्तिकार ने इसका अर्थ स्वाभाविक ८. मंत्री--राजकीय प्रवृत्तियों की मंत्रणा करने वाले। जल किया है।
९. महामंत्री--मन्त्रीमण्डल के प्रधान।
१०. गणक--वृत्तिकार ने गणक का मूल अर्थ गणितज्ञ और ४९. सैंकड़ों प्रकार के कौतुक कर्म (कोउयसएहिं)
वैकल्पिक अर्थ कोषाध्यक्ष किया है। वृत्ति के अनुसार स्नान के समय जो रक्षा आदि उपक्रम किए जाते ११. दौवारिक--द्वारपाल। हैं, वे कौतुक कहलाते हैं। किन्तु यह अन्वेषणीय है। वास्तव में यह १२. अमात्य--राज्य के संचालक। विभिन्न प्रकार की जलक्रीड़ाओं के अर्थ की सूचना देता है। यहां सैंकड़ों १३. चेट--सेवक। प्रकार के कौतुक स्नान के साथ सम्पन्न हुए हैं। जहां-जहां रक्षात्मक १४. पीठमर्द--ये राजा के वयस्क होने के कारण विशेष सम्मानित कौतुक का प्रसंग आया है वह स्नान और बलिकर्म के अनन्तर सम्पन्न होते थे। ये सभामण्डप में आसन पर आसीन होकर राजसेवा में निरत हुआ है। यहां स्नान के साथ सैंकड़ों कौतुकों का उल्लेख है, अत: इसका रहते थे। अर्थ सैंकड़ों प्रकार की जलक्रीड़ाएं ही होना चाहिए।
१५. नगर--नगरवासी प्रजा। यहां नागर के स्थान पर नगर शब्द
प्रयुक्त हुआ है। ५०. वीरवलय (वीरवलए)
१६. निगम--निगमवासी लोग। यौद्धाओं की वीरता के प्रतीक कड़े। उन्हें पहनकर राजा प्रतिपक्षी १७. श्रेष्ठी--सेठ, जिनका मस्तक श्री देवता से अध्यासित स्वर्णपट्ट राजा को चुनौती देता है कि यदि कोई अन्य वीर धरती पर है तो मुझे से विभूषित रहता था। जीतकर, ये मेरे वीर वलय ले जाए। इस स्पर्धा के साथ जो कड़े पहने १८. सेनापति--नृपति द्वारा स्थापित चतुरंग सेना के अध्यक्ष। जाते हैं, वे वीरवलय कहलाते हैं।'
१९. सार्थवाह--सार्थ के स्वामी। पराजित राजा आत्मसमर्पण कर विजेता के हाथों में जो कड़ा २०. दूत--संदेशवाहक। पहनाता है वह भी वीरवलय कहलाता है।
२१. संधिपाल--दो राज्यों के बीच होने वाली संधि का रक्षक ।'
तुलनात्मक विमर्श हेतु द्रष्टव्य अणुओगदाराई पृ. ३०-३२, भगवई ५१. अनेक गणनायक ............ संधिपालों के साथ (अणेगगणनायग खण्ड १, पृ. २१५, २१६ । ................ संधिवाल सद्धि)
सूत्र २५ ये विभिन्न राज्याधिकारियों अथवा राजकीय कार्यों में नियुक्त
५२. शान्तिकर्म (संतिकम्म) राजपुरुषों के वाचक शब्द हैं--
विघ्नोपशमन के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान विशेष । इसमें १. गणनायक--प्रकृतिमहत्तर।
सर्षप आदि का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता था। २. दण्डनायक--तन्त्रपाल, न्यायाधीश, आरक्षक अधिकारी। ३. राजा--माण्डलिक राजा।
५३. कौटुम्बिक पुरुषों (कोडुंबियपुरिसे) ४. ईश्वर--युवराज, मांडलिक, चार हजार राजाओं का कौटम्बिक पुरुष का अर्थ है--आदेश को क्रियान्वित करने वाले। अधिपति अथवा अणिमा आदि आठ लब्धियों से युक्त ।
स्थानांग वृत्ति में इसका अर्थ है--कतिपय कुटुम्बों के स्वामी। प्राचीनकाल में ५. तलवर--जिनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर राजा जिन्हें विशेष इनका स्थान बहुत सम्मानपूर्ण था। वे विशेष अवसरों पर राज्य के अन्य उच्च पट्ट-बंध प्रदान करते थे, वे तलवर के नाम से पुकारे जाते थे। अधिकारियों की भांति राजा के साथ रहते थे। कौटुम्बिक पुरुष सदा राजा की ६. माडबिक--पांच सौ गांवों के अधिपति।
सेवा में प्रस्तुत रहते और आदेश की प्रतीक्षा करते थे।
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१. ज्ञातावृत्ति, पत्र-२५ --शुभोदकै:-पवित्रस्थानाइतेः । गन्धोदकै: श्रीखण्डादिमित्रैः।
पुष्पोदकैः पुष्परसमित्रै, शुद्धोदकैश्च-स्वाभाविकैः । २. वही--स्नानावसरे यानि कौतुकशतानि रक्षादीनि। ३. वही--सुभटो हि यदि कश्चिदन्योप्यस्ति वीरव्रतधारी तदाऽसौ मां विजित्य मोचयत्वेतानि वलयानीति स्पर्द्धयन् यानि परिदधाति तानि वीरवलयानीत्युच्यन्ते। ४. ज्ञाता अनगार धर्मामृतवर्षिणी टीका, पृ. १३०
५. ज्ञातावृत्ति, पत्र-२६ ६. वही--सिद्धार्थक प्रधानो यो मंगलोपचारस्तेन कृतं शान्तिकर्म- विघ्नोपशमनकर्म। ७. ज्ञातावृत्ति, पत्र-२३--कौटुम्बिक पुरुषान् - आदेशकारिणः । ८. स्थानांग वृत्ति, पत्र ४३९ ९.नायाधम्मकहाओ १/१/२४
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