Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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संलाकुल्लाव- निउणतो- क्यारकुसला सीयं दुरूह, दुरुहित्ता मेहस्स कुमारस्स पुरओ पुरत्यिमे गं चंदप्यभवहर-वेलियविमलदं तालियंटं गहाय चिट्ठइ ॥
१३७. तए णं तरस मेहस्स कुमारस्स एमा वरतरुणी सिंगारागारचारसा संगयगय हसिय- भणिय चेद्रिय-विलास-संलावुल्लावनिउणजुत्तोववार कुसला सीयं दुष्टइ, दुरहित्ता मेहस्स कुमारस्त पुव्वक्त्रिणे णं सेयं रययामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगयमहामुहाकितिसमाणं भिंगारं गहाय चिट्ठइ ।।
१३८. तए णं तस्स मेहरस कुमारस्स पिया कोडुबियपुरिसे सहावे, सद्दावेत्ता एवं वपासी खिप्यामेव भो देवागुप्पिया! सरिसपाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं एगाभरण गहिय-निज्जोयाणं कोहुबियवत्तरुणाणं सहस्सं सदावेह ||
१३९. तए गं ते कोडुबियपुरिसा सरिसवाणं सरितवाणं सरिव्ययाणं एगाभरण गहिय-निज्जोपाणं कोडुबियवरतरुणाणं सहस्सं सदावेंति ।।
१४०. तए णं ते कोडुबियवरतरुणपुरिसा सेणियस्स रण्णो कोडुंबियपुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्ठा व्हाया जाव (सव्वालंकारविभूसिया ?) एगाभरण गहिय- णिज्जोया जेणामेव सेणिए राया तेनामेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सेणिवं राय एवं क्यासी-संदिसह णं देवाणुप्पिया जं णं अम्हेहिं करणिज्जं ।।
१४१. तए णं से सेणिए राया तं कोडुंबियवरतरुणसहस्सं एवं ववासी गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्स - वाहिणीयं सीयं परिवहेह ।।
१४२. तए णं तं कोटुंबियवरतरुणसहस्तं सेणिएण रण्णा एवं गुत्तं संतं हवं मेहस्स कुमारस्स पुरिससहरसवाहिणीयं सीयं परिवहइ ।।
१४३. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरूटस्स समाणस्स इमे अमंगलया तप्पढमयाए पुरजो अहाणुपुब्वीए संपत्थिया, तं जहा सोवत्थिय-सिरिवच्छनदियावत्त- वद्धमाणग-भद्दासण- कलस-मच्छ-दप्पणया जाव बहवे अत्यत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा
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प्रथम अध्ययन : सूत्र १३६-१४३
और उल्लाप में निपुण और समुचित उपचार में कुशल शिविका पर आरूढ़ हुई। आरूढ़ होकर वह कुमार मेघ के आगे पूर्व दिशा की ओर मुंह किये, चन्द्रप्रभ मणि, वज्र और वैडूर्य रत्नों के विमल दण्डवाले तालवृन्त (वीजन) को लेकर खड़ी हो गई।
१३७. कुमार मेघ के सामने एक प्रवर तरुणी शृंगार और सुन्दर वेश वाली, चलने, हंसने बोलने में और चेष्टा करने में निपुण, विलास, संलाप और उल्लाप में निपुण और समुचित उपचार में कुशल शिविका पर आरूढ़ हुई। आरूढ़ होकर वह कुमार मेघ के पूर्व-दक्षिण भाग में, श्वेत रजतमय, विमल सलिल से परिपूर्ण मत्त हाथी के विशाल मुख की आकृति के समान झारी लेकर खड़ी हो गई ।
१३८. कुमार मेघ के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा -- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही सदृश, समान त्वचा वाले समान वय वाले, एक जैसे आभरण और वेष, कमरबन्ध धारण किए हुए, एक हजार प्रवर तरुण कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाओ।
१३९. उन कौटुम्बिक पुरुषों ने सदृश समान त्वचा वाले, समान वय वाले, एक जैसे आभरण, वेश और कमरबन्ध धारण किए हुए एक हजार प्रवर तरुण कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया ।
१४०. वे प्रवर तरुण कौटुम्बिक पुरुष राजा श्रेणिक के निर्देशानुसार बुलाए जाने पर हर्षित हो गए। उन्होंने स्नान कर यावत् (सब प्रकार के अंलकारों से विभूषित हो ?) एक जैसे आभरण और वेष, कमर-बन्ध धारण कर, जहां राजा श्रेणिक था वहां आए। वहां आकर राजा श्रेणिक से इस प्रकार कहा- देवानुप्रिय! हमें जो करणीय है उसका संदेश दें।
१४१. राजा श्रेणिक ने उन हजार प्रवर तरुण कौटुम्बिक पुरुषों से प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! तुम जाओ और हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली कुमार मेघ की शिविका का वहन करो ।
१४२. राजा श्रेणिक द्वारा ऐसा कहने पर हर्षित हुए उन हजार प्रवर तरुण कौटुम्बिक पुरुषों ने कुमार मेघ की हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका को वहन किया।
१४३. हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका पर आरूढ़ हुए कुमार मेघ के आगे-आगे सबसे पहले ये आठ-आठ मंगल क्रमश: प्रस्थान कर रहे थे जैसे सौवस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त वर्द्धमानक भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण (फिर लम्बे जुलूस के बाद) यावत बहुत धनार्थी, कामार्थी, भोगार्थी, लाभार्थी, किल्विष्क (विदूषक), कापालिक कर पीड़ित अथवा सेवा में व्यापृत, शंख-वादक, चक्रधारी, किसान,
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