Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
प्रथम अध्ययन : सूत्र १२९-१३६
पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं उवट्ठवेह ।।
शोभित, उनमें बिम्बित होने वाले हजारों प्रतिबिम्बों से कमनीय, देदीप्यमान, अतिशय देदीप्यमान, देखते ही दृष्टि को बांध लेने वाली, स्पर्श-सुखद और सश्रीक हो तथा जो शीघ्रता, त्वरता, चपलता और उतावलेपन से वहन की जाए, ऐसी हजार पुरुषों के द्वारा वहन की जाने वाली शिविका उपस्थित करो।
१३०. तए णं ते कोडुबियपुरिसा हट्ठतुट्ठा, अणेगखंभसय-सण्णिविट्ठ
जाव सीयं उवट्ठवेंति॥
१३०. हृष्ट-तुष्ट हुए उन कौटुम्बिक पुरुषों ने सैंकड़ों खम्भों वाली यावत्
शिविका को उपस्थित किया।
१३१. तए णं से मेहे कुमारे सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सीहासणवरगए
पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे।।
१३१. वह कुमार मेघ शिविका पर आरूढ़ हुआ। आरूढ़ होकर प्रवर
सिंहासन पर पूर्वाभिमुख हो बैठ गया।
१३२. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया ण्हाया कयबलिकम्मा १३२. कुमार मेघ की माता ने स्नान किया, बलिकर्म किया, यावत्
जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता मेहस्स अल्पभार और बहुमूल्य वाले आभरणों से शरीर को अलंकृत किया। कुमारस्स दाहिणपासे भद्दासणंसि निसीयइ।
शिविका पर आरूढ़ हुई। आरूढ़ होकर कुमार मेघ के दक्षिण पार्श्व में भद्रासन पर आसीन हुई।
१३३. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अंबधाई रयहरणं च पडिग्गहं च
गहाय सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता मेहस्स कुमारस्स वामपासे भद्दासणंसि निसीयइ।।
१३३. कुमार मेघ की धाय माता रजोहरण और पात्र को लेकर शिविका
पर आरूढ़ हुई। आरूढ़ होकर कुमार मेघ के वाम पार्श्व में भद्रासन पर आसीन हुई।
१३४. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पिट्ठओ एगा वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-चेट्ठिय-विलाससंलावुल्लाव-निउणजुत्तोक्यारकुसला आमेलगजमलजुयल- वट्टियअब्भुण्णय-पीण-रइय-संठिय पओहरा हिम-रयय-कुदेंदुपगासं सकोरेंटमल्लदामं धवलं आयवत्तं गहाय सलीलं ओहारेमाणीओहारेमाणी चिट्ठइ॥
१३४. कुमार मेघ के पीछे एक प्रवर तरुणी मूर्तिमान, शृंगार और सुन्दर
वेश वाली, चलने, हंसने, बोलने और चेष्टा करने में निपुण तथा विलास, संलाप और उल्लाप१३ में निपुण और समुचित उपचार में कुशल, परस्पर सटे हुए सम श्रेणि स्थित, वर्तुल, उन्नत, पीन, रतिसुखद और संस्थित पयोधरों वाली, हिम, रजत, कुंद-पुष्प और चन्द्रमा जैसे कटसरैया के फूलों से बनी माला और दाम से युक्त धवल छत्र को लेकर लीला सहित धारण करती हुई, धारण करती हुई खड़ी हो गई।
१३५. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स दुवे वरतरुणीओ सिंगाारागार-
चारुवेसाओ संगय-गय-हसिय-चेट्ठिय-विलास-संलावुल्लावनिउणजुत्तोवयारकुसलाओ सीयं दुरुहति, दुरुहित्ता मेहस्स कुमारस्स उभओ पासं नाणामणि-कणग-रयण-महरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तदंडाओ चिल्लियाओ सहुमवरदीहवालाओ संखकुंद-दगरयअमयमहियफेणपुंज-सण्णिगासाओ चामराओ गहाय सलीलं ओहारेमाणीओ-ओहारेमाणीओ चिट्ठति।।
१३५. कुमार मेघ के दोनों ओर दो प्रवर तरुणियां मूर्तिमान शृंगार और
सुन्दर वेश वाली, चलने, हंसने, बोलने और चेष्टा करने में निपुण, विलास, संलाप और उल्लाप में निपुण, समुचित उपचार में कुशल शिविका पर आरूढ़ हुई। आरूढ़ होकर वे कुमार मेघ के दोनों ओर नाना मणि, कनक, रत्न और बहुमूल्य, तपनीय, रक्तस्वर्ण से निर्मित, उज्ज्वल और विचित्र दण्ड वाले दीप्तिमान, सूक्ष्म, प्रवर दीर्घ बालों वाले, शंख, कुन्दपुष्प, जलकण, अमृत और मथित फेनपुंज जैसे चामरों को लेकर लीला सहित वीजन करती हुई, वीजन करती हुई खड़ी हो गई।
१३६. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स एगा वरतरुणी सिंगारा-
गारचारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-चेट्ठिय-विलास-
१३६. कुमार मेघ के सामने एक प्रवर तरुणी शृंगार और सुन्दर वेश वाली,
चलने, हंसने, बोलने और चेष्टा करने में निपुण, विलास, संलाप
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