Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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प्रथम अध्ययन : सूत्र १२०-१२६
वयासी--भण जाया! किं दलयामो? किं पयच्छामो? किंवा ते हियइच्छिए सामत्थे?
नायाधम्मकहाओ बोले--जात! बताओ हम क्या दें? क्या वितरण करें? तुम्हारे अंतर्मन की अभ्यर्थना क्या है?
मेहस्स निक्खमणपाओग्ग-उवगरण-पदं १२१. तए णं से मेहे राया अम्मापियरो एवं वयासी--इच्छामि णं
अम्मयाओ! कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च आणिय, कासवयं च सद्दावियं॥
मेघ के निष्क्रमण प्रायोग्य उपकरण-पद १२१. राजा मेघ ने माता-पिता से इस प्रकार कहा--माता-पिता! मैं
कुत्रिकापण से०८ रजोहरण और पात्र को लाना और नापित को बुलाना चाहता हूं।
१२२. तए णं से सेणिए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं
वयासी--गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! सिरिघराओ तिण्णि सयसहस्साई गहाय दोहिं सयसहस्सेहिं कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च उवणेह, सयसहस्सेणं कासवयं सद्दावेह॥
१२२. राजा श्रेणिक ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार
कहा--देवानुप्रियो ! श्रीगृह से तीन लाख मुद्रा लेकर जाओ। दो लाख मुद्रा के द्वारा कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाओ और एक लाख मुद्रा के द्वारा नापित को बुलाओ।
१२३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं कुत्ता समाणा हट्टतुट्टा सिरिघराओ तिण्णि सयसहस्साइं गहाय कुत्तियावणाओ दोहिं सयसहस्सेहिं रयहरणं पडिग्गहं च उवणेति, सयसहस्सेणं कासवयं सहावेत॥
१२३. कौटुम्बिक पुरुष राजा श्रेणिक द्वारा ऐसा कहने पर हृष्ट तुष्ट हो
गए। वे श्रीगृह से तीन लाख मुद्राएं ग्रहण कर दो लाख मुद्राओं के द्वारा कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाए और एक लाख मुद्रा के द्वारा नापित को बुलाया।
कासवेणं मेहस्स अग्गकेसकप्पण-पदं १२४. तए णं से कासवए तेहिं कोडूंबियपरिसेहिं सद्दाविए समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणदिए जाव हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइंवत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहाघाभरणालंकियसरीरे जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं क्यासी-संदिसह णं देवाणुप्पिया! जंमए करणिज्जं॥
नापित के द्वारा मेघ का अग्रकेश-कल्पन-पद १२४. वह नापित उन कौटुम्बिक पुरुषों के द्वारा बुलाए जाने पर हृष्ट तुष्ट
और आनन्दित चित्त वाला हो गया यावत् हर्ष से विकस्वर हृदय वाला हो गया। नापित ने स्नान कर, बलिकर्म किया, कौतुक (तिलक आदि) मंगल (दधि-अक्षत आदि) और प्रायश्चित्त किया। पवित्र स्थान में प्रवेश योग्य मांगलिक वस्त्रों को विधिवत पहना। अल्पभार और बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। जहाँ राजा श्रेणिक था, वहां आया। वहां आकर दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली अंजली को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर राजा श्रेणिक से इस प्रकार बोला--देवानुप्रिय! मुझे जो करणीय है, उसका संदेश दें।
१२५. तए णं से सेणिए राया कासवयं एवं वयासी--गच्छाहि णं तुब्भे देवाणुप्पिया! सुरभिणा गंधोदएणं निक्के हत्यपाए पक्खालेहि, सेयाए चउप्फलाए पोत्तीए मुहं बंधित्ता मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवज्जे निक्खमणपाउग्गे अग्गकेसे कप्पेहि ।।
१२५. राजा श्रेणिक ने नापित को इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! तुम जाओ,
सुरभित गन्धोदक से भलीभाति हाथ-पैरों का प्रक्षालन करो। प्रक्षालन कर चार पट वाले श्वेत वस्त्र से०९ मुख को बांधकर कुमार मेघ के चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण-प्रायोग्य अग्र-केशों को काटो।
१२६. तए णं से कासवए सेणिएणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हद्वत?-
चित्तमाणदिए जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि! त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सुरभिणा गंधोदएणं (निक्के?) हत्थपाए पक्खालेइ, पक्खालेत्ता सुद्धवत्थेणं मुहं बंधइ, बंधित्ता परेणं जत्तेणं मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवज्जे निक्खमणपाउग्गे
१२६. राजा श्रेणिक द्वारा ऐसा कहने पर नापित हृष्ट तुष्ट और
आनन्दित चित्त वाला हो गया यावत् उसका हृदय हर्ष से विकस्वर हो गया। यावत् वह दोनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुट आकार वाली अंजली को सिर के सम्मुख घुमाकर बोला--स्वामी 'जैसी आपकी आज्ञा'--यह कहकर विनय पूर्वक वचन को स्वीकार किया। स्वीकार कर सुरभित गन्धोदक से हाथ-पैर का प्रक्षालन किया। प्रक्षालन कर
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