Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
प्रथम अध्ययन : सूत्र २११-२१३
गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइंजोयणाई बहूइंजोयणसयाई बहूइंजोयणसहस्साई बहूइंजोयणसयसहस्साइंबहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाणसणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतग-महासुक्क-सहस्साराणयपाणयारणच्चुए तिण्णि य अट्ठारसुत्तरे गेवेज्जविमाणवाससए वीईवइत्ता विजए महाविमाणे देवत्ताए उववण्णे।
तत्थ णं अत्यंगइयाणं देवाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं मेहस्स वि देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई।।
नायाधम्मकहाओ प्रतिक्रमण किया और शल्य का उद्धरण कर, समाधि अवस्था में मृत्यु के समय, मृत्यु का वरण कर, वह ऊपर-चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और ताराओं से अनेक योजन, अनेक शतयोजन, अनेक सहस्रयोजन, अनेक लक्षयोजन, अनेक कोटियोजन, अनेक कोटि-कोटि योजन से भी ऊपर, दूर तक उत्पतन कर, सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत और तीन सौ अठारह ग्रैवेयक के विमानवासों का अतिक्रमण कर विजय नाम के अनुत्तर महाविमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। वहां कुछ देवों की स्थिति तैतीस सागरोपम प्रज्ञप्त है। वहां मेघ देव की स्थिति भी तैंतीस सागरोपम है।
२१२. एस णं भते. मेहे देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? ___ गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ॥
२१२. भंते! यह 'मेघ' देव आयु क्षय, स्थिति क्षय और भव क्षय के५२
अनन्तर, उस देवलोक से च्यवन कर५३ कहां जायेगा? कहां उपपन्न होगा?
गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में, सिद्ध, प्रशांत, मुक्त, परिनिर्वृत होगा, सब दुःखों का अंत करेगा।
निक्खेव-पदं २१३. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं अप्पोलंभनिमित्तं पढमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते।
--त्ति बेमि
निक्षेप पद २१३. जम्बू! इस प्रकार धर्म के आदिकर्ता तीर्थकर यावत् सिद्धिगति नामक स्थान को संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने आत्मोपलब्धि के लिए ज्ञाता के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है।
--ऐसा मैं कहता हूं।
वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा
महुरेहिं निउणेहि, वयणेहिं चोययंति आयरिया। सीसे कहिंचि खलिए, जह मेहमुणिं महावीरो ।।।।
वृत्तिकार द्वारा समुद्भुत निगमनगाथा१. शिष्य यदि कहीं स्खलित हो जाता है, तो आचार्य उसे मधुर और निपुण वचनों से प्रेरित करते हैं, जैसे मेघ मुनि को महावीर ने प्रेरित किया।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org