Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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प्रथम अध्ययन सूत्र १०८-१११
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१०८. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं क्यासी इमाओ ते जाया! सरिसियाओ सरित्तयाओ सरिव्वयाओ सरिसलावण्णरूव-जोग-गुणोपाओ सरिसेरितो रायकुलेहितो आणिल्लियाओ भारियाओ । तं भुंजाहि णं जाया! एयाहिं सद्धिं विउले माणुस्सए कामभोगे । पच्छा भुक्तभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि ।।
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१०९. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी -- तहेव णं तं अम्मयाओ! जं णं तुम्भे ममं एवं वयह इमाओ ते जाया! सरिसियाओ सरितयाओ सरिव्वयाओ सरिसलावण्ण-रूव जोब्बगगुणोववेयाओ सरिसेहिंतो रायकुलेहिंतो आणिल्लियाओ भारियाओ । तं भुंजाहि णं जाया! एयाहिं सद्धिं विउले माणुस्सए कामभोगे । पच्छा भुक्तभोगे समणस्स भगवओो महावीरस्स अंतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि ।”
एवं खलु अम्मयाओ! माणुस्सगा कामभोगा असुई वंतासवा पित्तासवा सेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुय उस्सासनीसासा दुरुय-मुत्त-पुरीस पूय - बहुपडिपुण्णा उच्चार- पासवण - खेल-सिंघाणग-पंत-पित्त सुक्क सोणियसंभवा अधुवा अणितिया असासया सडण-पडण- विद्धसणधम्भा पच्छा पुरं चणं अवस्सविप्पजहणिज्जा ।
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से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुब्विं गमणाए के पच्छा गमगाए? तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुम्भेहिं अन्भणुष्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुडे भवित्ता गं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ।
११०. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी - इमे य ते जाया ! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य सुवण्णेय कंसे
सेय मणि-मोत्तिय संख - सिल प्पवाल- रत्तरयण-संतसारसावज्जेय अलाहिजाब आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दार्ज पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं। तं अणुहोही ताव जाया! विपुलं माणुसगं इसिक्कारसमुदयं तओ पच्छा अणुभूयकल्लाने समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुटे भवित्ता अगाराओ अणगारयं पव्वसासि ।।
१११. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी - तहेव णं तं अम्मयाओ! जं णं तुब्भे ममं एवं वयह- “ इमे ते जाया ! अज्जग-फज्जग पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य सुव्वणे व कंसे य दूसे य मणि- मोत्तिय संख सिल प्पवाल- रत्तरयण-संतसारसावज्जेय अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दाउं
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नायाधम्मकहाओ
१०८. माता-पिता ने कुमार मेघ से इस प्रकार कहा --जात! ये तुम्हारी भार्याएं, जो एक जैसी, समान त्वचा वाली, समान वय वाली, समान लावण्य, रूप, यौवन तथा गुणों से उपेत और सदृश राजकुलों से आई हुई हैं। इसलिए हे जात! तुम इनके साथ विपुल मनुष्य सम्बन्धी काम भोगों का भोग करो। इसके पश्चात् भुक्त भोगी होकर श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रव्रजित हो जाना ।
१०९. कुमार मेघ ने माता-पिता से इस प्रकार कहा- माता-पिता! यह वैसा ही है, जैसा तुम मुझे कह रहे हो कि जात! ये तुम्हारी भार्याएं जो एक जैसी, समान त्वचा वाली, समान वय वाली, समान लावण्य, रूप, यौवन तथा गुणों से उपेत और सदृश राजकुलों से आई हुई हैं। इसलिए जात! तुम इनके साथ विपुल मनुष्य - सम्बन्धी काम-भोगों क भोग करो। इसके पश्चात् भुक्त भोगी बन, श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रव्रजित हो जाना ।
किन्तु माता-पिता! ये मनुष्य सम्बन्धी काम भोग अशुचि हैं। क्योंकि मनुष्य के शरीरों से वमन, पित्त, कफ, शुक्र और शोणित झरते रहते हैं। उच्छ्वास-नि:श्वास से दुर्गन्ध आती है। ये दुर्गन्धित मल-मूत्र और पीव से प्रतिपूर्ण होते हैं ये मल-मूत्र कफ, नाक के मैल वमन, पित्त, शुक्र और शोणित से उत्पन्न होते हैं ये अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत, तथा सड़ने, गिरने और विध्वस्त हो जाने वाले हैं। उनको पहले या पीछे अवश्य छोड़ना है।
अतः माता-पिता कौन जानता है, कौन पहले जाएगा? कौन पीछे जाएगा? अत एव माता-पिता ! मैं तुम्हारे द्वारा अनुज्ञात होकर, श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रवजित हो जाऊं।
११० माता-पिता ने कुमार मेघ से इस प्रकार कहा जात! तुम्हारे पितामह प्रपितामह और प्र-प्रपितामह से प्राप्त यह बहुत सारा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य बहुमूल्य वस्त्र, मणि, मौक्तिक, शंख, मैनशिल, प्रवाल, लालरत्न (पद्मरागमणि) और श्रेष्ठ सुगन्धित द्रव्य और दान भोग आदि के लिए स्वापतेय यावत् जो सातवीं पीढ़ी तक प्रचुर मात्रा में देने के लिए, भोगने के लिए और बांटने के लिए पर्याप्त है। अतः जात! तुम मनुष्य सम्बन्धी विपुल ऋऋद्धि, सत्कार और समुदय का अनुभव करो । उसके अनन्तर कल्याण का अनुभव कर, श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रव्रजित हो जाना।
११९. कुमार मेघ ने माता-पिता से इस प्रकार कहा- माता-पिता ! यह वैसा ही है, जैसा तुम मुझसे कह रहे हो जात! तुम्हारे पितामह प्रपितामह और प्र-प्रपितामह से प्राप्त यह बहुत सारा हिरन्य, सुवर्ण, कांस्य बहुमूल्य वस्त्र, मणि भौतिक, प्रशंश, मैनशिल प्रवाल, लातरत्न श्रेष्ठ सुगन्धित द्रव्य और दान भोग आदि के लिए स्वापतेय है जो सातवीं
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