Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
निव्वावियगायली उक्खेवय-तालविंट - वीणग जणियवाएगं सफुसिएण अंतेउर - परिजणेणं आसासिया समाणी मुत्तावलि - सन्निगास पवईत अंधाराहिं सिंचमाणी पजोहरे, कलुण-विमणदीणा रोयमाणी कंदमाणी तिप्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी मेहं कुमारं एवं क्यासी-
तुमं सिणं जाया! अम्हं एगे पुते ने की पिए मणुष्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रणभूए जीविप उत्सासिए हियय-दि-जगणे उंबरपुप्फ व दुल्हे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो लणमवि विप्यओगं सहित्तए । तं भुंजाहि ताव जाया विपुले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो तओ पच्छा अम्हेहिं कालगएहिं परिणयवए वड्ढिय - कुलवंसतंतु- कज्जम्मि निराक्यले समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुटे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वहस्ससि ।।
१०७. लए णं से मेहे कुमारे अम्मापिऊहिं एवं कुत्ते समाणे अम्मापियरो एवं वयासी -- तहेव णं तं अम्मो! जहेव णं तुब्भे ममं एवं वयह--तुमं सिगं जाया! अम्हं एगे पत्ते इट्टे कतै पिए मणुष्णे मनामे घेज्जे सासिए सम्म बहुम अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय - उस्सासिए हियय - गंदि - जणणे उंबरपुप्कं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खलु जाया! अम्हे इच्छामो सणमवि विप्पजोगं सहित्तए। तं भुंजाहि ताव जाया! विपुले माणुस्साए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो तओ पच्छा, अम्हेहिं कालगाएहिं परिणयवएवाय कुलवंतंतु कज्जम्मि निराक्यक्से समणस्त भगवओ महावीरस्स अंतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अगगारियं पव्वस्तसि । "
एवं खलु अम्मयाओ! माणुस्सए भने अधुवे अणितिए असासए वसणसजवदवाभिभूते विज्जुलयाचंचले अणिच्चे जलकुम्बुसमाणे कुसग्गजलबिंदुसन्निभे संझन्भरागसरिसे सुविणदंसणोवमे सडण - पडण - विद्वंसण-धम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे । से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुब्विं गमनाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समस् भगवओ महावीरस्स अंतिए मुडे भविता गं अगाराओ अनगारिय पव्वइत्तए ।
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प्रथम अध्ययन : सूत्र १०६-१०७ धारिणी देवी की गात्र- यष्टि में शीतलता व्याप गई। उत्क्षेपक, तालवृन्त और वीजनक अर्थात् पंखों से उठने वाली जल मिश्रित हवा के संस्पर्श से तथा अन्त:पुर के परिजनों द्वारा वह आश्वस्त हुई । मुक्तावली की भांति गिरती हुई अश्रुधारा से पयोधरों को सींचती हुई, करुण, विमनस्क और दीन धारिणी देवी, रोती, कलपती, आंसू बहाती, शोक करती और विलपत्ती हुई कुमार मेष से इस प्रकार बोली-
जात! तुम हमारे एक मात्र पुत्र इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज, मनोहर स्थिरतर, विश्वनीय, सम्मत बहुमत, अनुमत और आभरण करण्डक के समान हो, तुम रत्न, रत्नभूत (चिन्तामणि आदि के समान) जीवन उच्छ्वास (प्राण) और हृदय को आनन्दित करने वाले हो तुम उदुम्बर पुष्प के समान श्रवण दुर्लभ हो. फिर दर्शन का तो प्रश्न ही क्या?
जात! हम क्षण भर भी तुम्हारा वियोग सहना नहीं चाहते । इसलिए जात! तुम तब तक मनुष्य सम्बन्धी विपुल काम भोगों का भोग करो, जब तक हम जीवित हैं। उसके पश्चात् जब हम कालप्राप्त हो जाएं, तुम्हारी वय परिपक्व हो जाए, तुम कुल वंश के तन्तुओं को बढ़ाकर, इतर कार्यों से निरपेक्ष बन, श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रव्रजित हो जाना।
१०७. माता-पिता द्वारा ऐसा कहने पर कुमार मेघ उनसे इस प्रकार बोला- माता-पिता ! यह वैसा ही हैं, जैसा तुम मुझ से कह रहे हो कि--जात! तुम हमारे एक मात्र पुत्र इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोहर, स्थिरतर, विश्वसनीय, सम्मत, बहुमत, अनुमत, आभरण करण्डक के समान हो, तुम रत्न, रत्नभूत, जीवन, उच्छ्वास (प्राण) और हृदय को आनन्दित करने वाले हो। तुम उदुम्बर पुष्प के समान श्रवण दुर्लभ हो, फिर दर्शन का तो प्रश्न ही क्या ?
जात! हम क्षण भर भी तुम्हारा वियोग सहना नहीं चाहते । इसलिए जात! तुम तब तक मनुष्य सम्बन्धी विपुल काम भोगों का भोग करो, जब तक हम जीवित हैं। उसके पश्चात् जब हम काल प्राप्त हो जाएं, तुम्हारी व परिपक्व हो जाए, तुम कुल वंश के तन्तुओं को बढ़ाकर, इतर कार्यों से निरपेक्ष बन, श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्ड हो अगार से अनगारता में प्रव्रजित हो जाना ।
किन्तु माता-पिता! यह मनुष्य जीवन अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत सैकड़ों कष्टों और उपद्रवों से अभिभूत विद्युतलता की भांति चंचल, जल के बुदबुदे, डाभ की नौक पर स्थित जलकण, सन्ध्याकालीन अभ्रराग और स्वप्नदर्शन के समान अनित्य है । यह सडने गिरने और विध्वस्त हो जाने वाला है। पहले या पीछे अवश्य छोड़ना है। अतः माता-पिता ! कौन जानता है कि कौन पहले जाएगा? कौन पश्चात् जायेगा ? अत एव माता-पिता ! मैं तुम्हारे द्वारा अनुज्ञात होकर श्रमण भगवान महावीर के पास, मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रव्रजित हो जाऊं ।
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