Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
९०. तए णं तस्स मेहरस कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं सोहनसि तिहि करण-नवत्त-मुहुर्तसि सरिसियाणं सरिव्वयाणं सरितयाणं सरिसलावण्ण-रूप-जोवण-गुणोक्वेयाणं सरितएहिंतो रायकुलेहिंतो आणिल्लियाणं पाहणट्टंग- अविहववहु- ओवयण-मंगलसुजंपिए हिं अहिं रायवरकन्नाहिं सद्धिं एमदिवसेणं पाणिं मिन्हाविंसु ।।
पीइदाण-पदं
९१. तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं पीइदाणं दलयंति-अट्ठ हिरण्णकोडीओ अट्ठ सुवण्णकोडीओ गाहाणुसारेण भाणियव्वं जाव पेणकारियाओ, अण्णं च विपुलं द्यण-कणगरयण-मणि-मोत्तियसंख - सिल प्पवाल- रत्तरयण-संत-सार- सावएज्जं अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दारं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं । ।
९२. तणं से मेहे कुमारे एगमेगाए भारियाए एगमेगं हिरण्णकोडिं
दलयइ, जाव एगमेगं पेसणकारिं दलयइ, अण्णं च विउलं धणaur - रयण-मणि - मोत्तिय संख - सिल प्पवाल- रत्तरयण-संत-सारसावएज्जं अलाहिजाब आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं दलयइ ।।
९३. तए णं से मेहे कुमारे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्यएहिं वरतरुणिसंपउत्तेहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं उवगिज्जमाणेउवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे ( इट्ठे ) सहफरिस रस रूव गंधे विउले माणुस्सए कामभोगे पञ्चणुभवमाणे
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विहरइ ।।
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प्रथम अध्ययन : सूत्र ९०-९४
९०. कुमार मेघ के माता-पिता ने शोभन तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में एक जैसी समान वय वाली, समान त्वचा वाली, समान लावण्य, रूप, यौवन एवं गुणों से उपेत और सदृश राजकुलों से आई हुई आठ प्रवर राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में, प्रसाधन के आठों अंगों से अलंकृत सौभाग्यवती कुल-वधुओं के द्वारा किए जाने वाले जलाभिषेक, मंगलकरण और आशीर्वाद के साथ" कुमार मेघ का पाणिग्रहण
करवाया।
महावीरसमवसरण-पदं
९४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायनियरे गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे
विहर।।
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प्रीतिदान-पद ९१. मेघ | कुमार के माता-पिता ने इस आकार वाला प्रीतिदान किया। जैसे-आठ करोड़ हिरण्य, आठ करोड़ सुवर्णप्रीती दान का पूर्ण विवरण गाथाओं के अनुसार वर्णनीय है यावत् प्रेष्यकर्म करने वाली सेविकाएं। इसके अतिरिक्त उन्होंने उसे विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, भौतिक, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न तथा श्रेष्ठ सुगंधित द्रव्य और दान भोग आदि के लिए स्वापतेय (स्वाधीनता पूर्वक व्यय किया जाने वाला धन) दिया जो सात पीढ़ियों तक प्रचुर मात्रा में दान करने, प्रचुर मात्रा में भोगने तथा प्रचुर मात्रा में बांटने (विभाग करने) में पर्याप्त था।
९२. कुमार मेघ ने अपनी प्रत्येक भार्या को एक-एक हिरण्य कोटि यावत् प्रेष्य कर्म करने वाली सेविका दी। इसके अतिरिक्त उसने उनको विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न, श्रेष्ठ सुगंधित द्रव्य और स्वापतेय दिया, जो सात पीढ़ियों तक प्रचुर मात्रा में दान करने, प्रचुर मात्रा में भोगने और प्रचुर मात्रा में बांटने में पर्याप्त था ।
९३. कुमार मेघ अपने प्रवर प्रासाद के उपरिभाग में स्थित था। उसके सामने मृदंग मस्तकों की प्रबल होती ध्वनि के साथ वर तरुणियों द्वारा संप्रयुक्त बत्तीस प्रकार के नाटक किए जा रहे थे। उसके गुणगान किए जा रहे थे, उसका उपलालन किया जा रहा था। वह (इष्ट) शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध, मनुष्य संबंधी विपुल कामभोगों को भोगता हुआ विहार कर रहा था ।
महावीर का समवसरण पद
९४. उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर क्रमानुसार विचरण करते हुए ग्रामानुग्राम परिव्रजन सुखपूर्वक विहार करते हुए जहां राजगृह नगर और गुणशिलक चैत्य था वहां आए। वहाँ आकर प्रवास योग्य स्थान की अनुमति ली। अनुमति लेकर संयम और तप से स्वयं को भावित करते हुए विहार करने लगे ।
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