Book Title: Yogshastra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 21
________________ २66 da ३२३ ૨૬૯ ૩૨૧ २९९ गुरुवंदन सूत्र के अवशिष्ट पाठ पर विवेचन वंदनविधि की आगमोक्त गाथाओं का अर्थ ૨૮s गुरु आशातना पर विवेचन ૨૬o आलोचना पाठ के अर्थ ૨૧૧ आलोचना पाठ के अर्थ ૨૧૨ आलोचना पाठ एवं अब्भुठियों सूत्र के अर्थ २९३ प्रतिक्रमण शब्द का अर्थ, विवेचन, वंदन से लाभ ૨૦૪ सामान्य प्रतिक्रमण स्वरुप देवसिक, रात्रिक एवं पाक्षिक प्रतिक्रमण की विधि ૨૬ कायोत्सर्ग के दोष २९७ प्रत्याख्यान की व्याख्या २९८ 'नमुक्कारसहिय' (नोकारसी) पोरसी पच्चक्खाण के आगारों की व्याख्या पोरिसी और 'पुरिमई' - पच्चक्खाण के पाठ और उन पर विवेचन ३00 एकाशन-एकलठाणा पर विवेचन ३०१ आयंबिल और अब्भत्तट्ठ (उपवास) पच्चक्खाण के पाठ और विवेचन ३०२ आयंबिल और अभत्तट्ठ (उपवास) पच्चक्खाण के पाठ और विवेचन ३०३ पानी, चरम एवं अभिग्रह पच्चक्खाण का स्वरूप ३०४ अभिग्गह और विग्गई पच्चक्खाण के पाठ और उनकी व्याख्या समस्त पच्चक्खाणों के आगारों की गणना एवं प्रत्याख्यानशुद्धि की विधि ३०६ निद्रा लेने के पहले और निद्रात्याग के बाद श्रावक की चर्या स्थूलभद्रमुनि का दृष्टांत 306 शकटाल मंत्री और वररुचि पंडित की परस्पर तनातनी ३०९ स्थूलभद्र को संसार से विरक्ति और उपकोशा द्वारा धर्मभ्रष्ट वररुचि मृत्यु के लिए बध्य वररुचि की मृत्यु - स्थूलभद्र कोशा के वहां चातुर्मास स्थूलभद्र मुनि का कोशावेश्या के यहां सफल ' चातुर्मास स्थूलभद्र मुनि का कोशावेश्या के यहां सफल चातुर्मास ३१३ कोशा द्वारा सिंहगुफावासी मुनि एवं रथकार को प्रतिबोध ३१४ स्थूलभद्र मुनि आदि साधु श्री भद्रबाहु स्वामि के पास ३१५ आचार्य भद्रबाहुस्वामी से स्थूलभद्रमुनि द्वारा बारहवें अंग का अध्ययन स्त्री के अंग का वास्तविक स्वरूप तथा उसका घृणित शरीर ३१७ 30५ विविध गतियों की दुःखमय स्थिति एवं उपसर्गों में दृढ़ता का चिंतन करे ३१८ कामदेव का कथानक ३१९ देव द्वारा कठोर परीक्षा में उत्तीर्ण कामदेव श्रावक ૩૨૦ श्रावक के ६ मनोरथों का वर्णन श्रावक के मनोरथ ૩૨૨ श्रावक की ११ प्रतिमा संलेखना : लक्षण, स्थान, विधि और अतिचार ૩૨૪ संलेखना, परिषह स्वरूप बाइस परिषहों पर विवेचन ३२६ आनंदश्रावक की अंतिम धर्मक्रिया ૩૭ आनंदश्रावक की कथा ૩૨૮ श्रावकधर्म पालक गृहस्थ की भावी सद्गति ३२९ श्रावकधर्म पालक गृहस्थ की भावी सद्गति ३३० कषाय : लक्षण, भेद-प्रभेद एवं विवेचन कषाय-स्वरूप ३३३ क्रोध का स्वरूप, दुष्परिणाम एवं उसे जीतने का उपाय ३३४ मानकषाय और उसके कुफल ३३५ मार्दव एवं माया का स्वरूप और उसके परिणाम ३३६ माया एवं सरलता का स्वरूप ३३७ सरलता की महिमा और लोभकषाय का स्वरूप ३३८ लोभ पर विजय पाने का मुख्य उपाय-संतोषधारण ३३९ चारों कषायों पर विजय एवं इंद्रिय विजय वर्णन ३४० सुदाम राजा की कथा ३४१ इंद्रियों के दोष एवं उन पर विजय इंद्रियों के दोष एवं उन पर विजय ੩੪੩ अनियंत्रित मन और उसके निरोध के उपाय . ३४४ मनो विजय ३४५ मन की शुद्धि का महत्त्व और लेश्या का वर्णन ३४६ मनः शुद्धि वर्णन ३४७ मनःशुद्धि एवं प्रबल रागद्वेषादि से मन रक्षा के उपाय-रागद्वेषनिवारण एवं कर्मक्षय का उपाय समत्व ३४८ समत्व का विवरण ३४९ समभाव की महिमा 'भावना का स्वरूप' ३५० अनित्य भावना का स्वरूप ३५१ अशरण एवं संसार भावना ३५२ संसार भावना, नरकगति के दुःख ३५३ तिर्यंचगति के दुःख ३५४ मनुष्य एवं देवगति के दुःख ३५५ एकत्व भावना ३५६ अव्यत्व भावना ३५७ अशुचि भावना ३५८ आश्रव भावना ३५९ आश्रव भावना स्वरूप - आठ कर्म के आश्रव हेतु. ३६० ૨૪૨ 3la ३१६ XV

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