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निर्वचन विकसित निर्वचनं प्रक्रियाका परिणाम है। 5. "अयं देवानामसुरो विराजति वशा हि सत्यावरुणस्य राज्ञः । 10
यहां राजन् शब्द व्याख्यात है। विराजति क्रियापदमें राज् धातुका योग है। राज्ञः शब्द भी राज् धातुके योगसे ही निष्पन्न है! राज् धातु दीप्त्यर्थक न होकर ऐश्वर्यार्थक है। ऋग्वेदमें भी राज् धातुसे ही राजन् शब्दका निर्वचन प्राप्त होता है। निरुक्त में राजाको राजदीप्तौ धातु से निष्पन्न माना है।2 __उपर्युक्त अथर्ववेदीय निर्वचनोंके परिदर्शनसे स्पष्ट होता है कि ये निर्वचन पूर्वके निर्वचनोंकी अपेक्षा अधिक विकसित प्रक्रियाके परिणाम हैं। इन निर्वचनोंमें निर्वचन सिद्धांतका परिपालन तो दीख पड़ता ही है ध्वन्यात्मक परिवर्तन भी सम्बद्ध प्रक्रियाके अनुरूप है। अर्थात्मक आधारकी रक्षा इन निर्वचनोंका मूलाधार है । ध्वन्यात्मक आधारकी रक्षाके बाद अर्थात्मक अनुसंधान पर आध रित निर्वचन अधिक वैज्ञानिक होते हैं। यास्क के निरुक्तमें इन निर्वचनोंके प्रभाव भी प्रतिलक्षित हैं। संदर्भ संकेत
___1. नामानि आख्यातजानि इति शाकटायनो नैरूक्तसमयश्च -नि 114, 2. ऋ0 119 19, 3. गीर्भिर्गुणन्तो नमसोपसेदिम” – ऋ05 814, गीर्भिणन्ति कारवः ऋ0 8 146 13, 4. ऋ0 10 171111, 5. ऋ0 111011 (गायन्ति त्वा गायत्रिणो). 6. गायत्रं गायतेः स्तुतिकर्मणः नि0 1 13, 7.-ऋ0 11164 150, 8. नि0 3 14, 9. यजयाचयत विच्छप्रच्छरक्षो नङ् - अष्टा0 3 13 190, 10. ऋ0 11142 12, 11. नव्यं नव्यं तन्तुमा तन्वते दिवि-ऋ0 159 14 (2 13 16,8113 114, 922 16 आदि),12. ऋ0 6 145 115,13. ऋ06166 19,14. ऋ08|1|17|15. ऋ0 10/106 11,16. नि011।1, 17. ऋ0111011, नि0 511, 18. नि0 5 11, 19.ऋ0 1185 12, 11711,166 17,20.ऋ01/1113,21. शूरो मघा च मंहते -ऋ0911 110, एवं ऋ0 4 117 18,6168 12,811130.22. ऋ0 6 169 13, 23. ऋ0 10 17816, 24. ऋ0 411/14, 25. नि0 411, 26. ऋ0 7167 17, 27. वर्णागमो वर्णविपर्ययश्च द्वौ चापरौ वर्ण विकारनाशौ । धातोस्तदर्थातिशयेन
योगस्त दुच्यते पंचविधं निरुक्तम ।।" निन्दु0 वृ0111,28. शु० यंजु0 113,29. नि0 5 12, 30. शु० यजु0 118, 31. 'धूर्वण क्रियानिमित्तंहि ते नाम' उव्बट भाष्य
२२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क