Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद ]
अन्वयार्थ -(यो) जो अर्थात् वे श्रेणिक (हस्त्यश्वरथ पादाति) हस्ति, अश्वरथ, पादाति तथा (छसिंहासनादिभिः) छत्र सिंहासनादिकों से (महामण्डलनाथोऽसौ) महामण्डले मवर पद के धारो (यथा चक्रधरो) चक्रवर्ती के समान ही (भास्) सुशोभित थे ।
भावार्थ:--राजा श्रेणिक महाराज महामण्डलेश्वर राजा था तथा उनका प्रभुत्व चक्रवर्ती के समान था । आठ हजार राजा उनकी सेवा में रत रहते थे । निरन्तर आठ चमर उनके ऊपर ढोले जाते थे तथा देवाङ्गनाओं के समान सुन्दर गुणवती आठ हजार, उनकी रानियाँ थीं ।।६।।
नानारत्नसुवर्णाधस्सम्पूर्णी निधिवत्तराम् ।
भाण्डारो वर्ण्यते केन नित्यदानश्च तस्य यः ।।६।।
अन्वयार्थ-- (नानारत्नसुवर्णाद्य : सम्पूर्णो) विविध प्रकार के रत्न और सुवर्णादि से भरे पूरे (निधिवत्तराम्। श्रेष्ठ खजाने के समान (तस्य य: भाण्डारो) उस श्रेणिक राजा का जो भण्डार है वह (नित्यदान:) निरन्तर काम होते रहने से मनीमम (न वर्ष) किससे वणित हो सकता है ? अर्थात् वचनों से उसका वर्णन अशक्य है ।
भावार्थ-धनवन्त श्रीमन्त होना कथञ्चित सुलभ भी है पर धनवन्त होकर दानी होना अति दर्लभ है। राजा धणिक से पूर्व भी अनेकों राजा मण्डलेश्वर अर्धचक्री आदि हए किन्तु उनकी चर्चा हम नहीं करते, उनकी गौरव गाथा को कोई नहीं गाता है । आप पूछे कि ऐसा क्यों ? इसका उत्तर यही है कि वे दानी नहीं थे, उनमें त्याग वृत्ति का अभाव था । श्रेणिक महाराज के खजाने से किमिच्छक दान निरन्तर होता रहता था। वे सप्त क्षेत्रों में अपनी धनराशि को खर्च करते थे । आगम में सप्त क्षेत्रों में दिये गये दान को मुक्ति का कारण कहा है । उन सप्तक्षेत्रों के नाम इस प्रकार हैं: -
। जिन निम्नं जिनागारं जिन यात्रा प्रतिष्ठितम् ।"
दान पूजा च सिद्धान्त लेखनं क्षेत्र सप्तकम् ।। (१) जिन बिंब स्थापन (२) पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव (३) जिनालय निर्माण (४) तीर्थ क्षेत्र की यात्रा (५) पात्र को चारों प्रकार का दान करना (६) जिनपूजा (७) सिद्धान्त लेखन।
त्याग उत्तम किस्म का सावुन है जैसे साबुन लगाकर कपड़ा धोने से उसका पूरा मैल निकल जाता है उसी प्रकार सत्पात्र को दान करने से आरम्भ आदि पञ्च सूना से उपाजित पाप मल धुल जाता है । इमलिये श्रेणिक महाराज दान में अपने धन का सदुपयोग करते थे।
पनसूना कौन कौन हैं--प्रत्येक गृहस्थ श्रावक को प्रतिदिन चक्की पीसना चल्हा